ऑस्ट्रेलिया के नॉर्थ वेस्ट क्वींसलैंड में स्थित चांदी और सीसे की कैनिंगटन खदान में पहली बार साल 2017 में ड्रोन ने उड़ान भरी। भूमिगत खदानों में ड्रोन की मदद से सर्वे कराने में माहिर ऑस्ट्रेलियाई कंपनी एमीसेंट ने इस ड्रोन को बनाया था। कंपनी ने होवरमैन नामक एक नई प्रणाली विकसित की है जिसकी मदद से ड्रोन को टक्कर से बचाना, जीपीएस के बिना उड़ाना और स्लैम आधारित लाइट डिटेक्शन ऐंड रेंजिंग (लीडार) मैपिंग की जा सकती है।
दो वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया में शुरू हुआ यह प्रयास अब भारत में भी कदम रख रहा है। जुलाई 2019 में वेदांत समूह के स्वामित्व वाली धातु और खनन क्षेत्र की प्रमुख कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) ने राजस्थान की भूमिगत खदानों में ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया है। कंपनी का कहना है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया में भूमिगत खदानों के लिए ड्रोन का उपयोग करने वाली वह पहली कंपनी है और इस काम में मदद के लिए उन्होंने भूमिगत ड्रोन तकनीक में माहिर कनाडा स्थित क्लिकमोक्स कंपनी को अपने साथ लिया है। एचजेडएल के मुख्य कार्याधिकारी सुनील दुग्गल कहते हैं, 'हमारा लक्ष्य है कि सुरक्षा और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सभी कार्यों में तकनीक का अधिक इस्तेमाल किया जाए। सिंदेसर खुर्द वाली खदान में डिजिटल खदान का एक प्रोटोटाइप पहले से ही परिचालन में है। हम आने वाले तीन वर्षों में अपनी खदानों में स्वचलित खुदाई और ढुलाई, दूर से ही परिचालन को नियंत्रित करना, रियल टाइम में सामान ट्रैक करना और खदान की निगरानी करने जैसे विभिन्न कार्यों का मानकीकरण करने की योजना पर काम कर रहे हैं।'
फिलहाल एचजेडएल की राजस्थान के सिंदेसर खुर्द की सीसा खदान में इसका परीक्षण चल रहा है। इसके तहत ड्रोन द्वारा संकलित किए गए आंकड़ों को जांचने का काम किया जा रहा है। गहन परीक्षण और परिणामों की जांच के बाद कंपनी का मानना है कि अब इसे सभी खदानों में पूरी तरह इस्तेमाल करने का समय आ गया है। एचजेडएल में मुख्य तकनीकी और नवोन्मेष अधिकारी वरुण गोरेन कहते हैं, 'आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद हम कह सकते हैं कि अब बड़े पैमाने पर ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है लेकिन अभी कुछ महीनों तक परीक्षण जारी रहेगा। सिंदेसर खुर्द और आगूचा खदानों में परीक्षण चल रहा है और हम दूसरी जगहों पर भी परीक्षण शुरू करेंगे।' हिंदुस्तान जिंक फिलहाल दृश्यता सीमा तक उड़ान भरने वाले ड्रोन का उपयोग कर रही है और वह अगले वर्ष तक पूर्णतया स्वचलित ड्रोन के उपयोग का इंतजार कर रही है। एचजेडएल की ओंटेरियो स्थित तकनीकी प्रदाता क्लिकमोक्स सॉल्यूशंस इंक ऐसी पहली कंपनी है जिसने 3डी लिडार स्कैनिंग को यूएवी तकनीक के साथ मिला दिया है जिससे भूमिगत खदानों में आसानी से निरीक्षण किया जा सके। कंपनी एक कदम आगे बढ़ाते हुए संपूर्ण डिजिटल खदान उपाय उपलब्ध करा रही है।
खदानों में ड्रोन बहुत से कार्य कर सकते हैं। जैसे, स्कैंनिंग, पहुंच से दूर वाले क्षेत्रों की जांच और टनल में निगरानी करना। ड्रोन के ऊपर लगा स्कैनर लीडार तकनीक का उपयोग करके चट्टानों की स्कैनिंग करता है और सटीक चित्र लेता है। सतह तक पहुंचने के बाद ड्रोन द्वारा संग्रहीत आंकड़े क्लाउड आधारित सॉफ्टवेयर को प्रसंस्करण के लिए भेज दिए जाते हैं और बैकएंड पर बैठी टीम आंकड़ों की जांच करती है।
अपर्याप्त वेंटिलेशन के कारण दुर्गम या असुरक्षित क्षेत्रों में ड्रोन सबसे अधिक सहायक होते हैं। गोरेन बताते हैं, 'मानव सर्वे में आप चट्टानों के पार नहीं जा सकते क्योंकि वहां पत्थरों के गिरने का खतरा रहता है। लेकिन ड्रोन काफी आसानी से ऐसा कर सकता है। अगर आप पारंपरिक तरीके से किए गए सर्वे की तस्वीर को ड्रोन की तस्वीर के साथ तुलना करेंगे तो आपको बहुत अधिक अंतर दिखेगा।' ड्रोन तकनीक अयस्क की रिकवरी के बारे में अधिक जानकारी देने और खदानों में खुदाई का करीबी चित्रण करने में मदद करती है। इसमें लगे सेंसर तापमान और आर्द्रता को रिकॉर्ड करती है और किसी अनहोनी का अनुमान लगाती है जो किसी दूसरे तरीके से करना काफी मुश्किल है।
भूमिगत खदानों में खुली खदानों के मुकाबले काफी जटिल परिस्थितियां होती हैं। सिंदेसर खुर्द और आगूचा खदानों में 500 मीटर से एक किलोमीटर तक खुदाई की जाती है। गोरेन कहते हैं, 'इसका अर्थ है कि ड्रोन को विशेष तौर पर भूमिगत खदानों के हिसाब से बनाना होगा, जिसमें मजबूती भी अहम कारक होगी।' इसलिए, 3डी लेजर स्कैनिंग और मैपिंग प्रणाली से लैस ड्रोन, 'माइनफ्लाई' विशेषतौर पर जीपीएस की अनुप्लब्धता वाले क्षेत्रों के लिए बनाया गया है। सुगठित और कम वजन वाले इस ड्रोन में 3 डी लेजर स्कैनर, एलईडी लाइट, सोनार सेंसर, एचडी कैमरा और कई निम्न रिजॉल्यूशन वाले कैमरे लगे हैं।
एचजेडएल को उम्मीद है कि ड्रोन तकनीक से होने वाले फायदे जल्द ही दिखाई देने लगेंगे। कम संसाधन और लगभग पहले जितनी या उससे कम लागत पर कंपनी ने ड्रोन के पूर्ण परिचालन के बाद अपनी उत्पादकता में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है।
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