अब चेहरे से पहचान का समय आया | टी ई नरसिम्हन / December 08, 2019 | | | | |
करीब एक वर्ष पहले 30,000 संविदा कर्मियों वाली दक्षिण पूर्व एशिया की एक बड़ी कंपनी ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए मानव पूंजी प्रबंधन (एचसीएम) उपाय विकसित करने वाली चेन्नई स्थित रैमको सिस्टम्स से संपर्क साधा। कंपनी की अपनी अलग समस्या थी। उसका कहना था कि उसकी एक इकाई में प्रवेश द्वार से मशीन तक पहुंचने में कर्मियों को 15 मिनट का समय लगता है जबकि दूसरी इकाई में कर्मियों को 45 मिनट का समय लग रहा है। इसका अर्थ है कि कंपनी को प्रति कर्मचारी रोजाना 30 मिनट कामकाज के घंटों का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
पश्चिम एशिया में स्थित एक कंपनी की दूसरी समस्या है। उसके कर्मचारी अधिकांश समय कामकाज से दूरी बनाने की कोशिश करते रहते थे। विकासशील देशों में एक और समस्या भी देखी जाती है। वहां कई बार कम उम्र के कर्मी या केवल कागजों पर काम करने वाले कर्मी भी पाए जाते हैं।
थर्ड पार्टी एजेंसी से 28,000 कर्मियों को भर्ती करने वाली एक भारतीय खनन फर्म ने हाल ही में पाया कि लगभग 6,000-8,000 कर्मी वास्तव में नहीं वरन कागजों पर ही हैं। हालांकि कंपनी इन सभी के लिए वेतन का भुगतान कर रही है। उनके नाम से दूसरे लोग काम कर रहे थे जिनमें कम उम्र के बच्चे भी थे।
इन समस्याओं के समाधान के लिए रैमको की सिंगापुर इकाई ने चेहरे से पहचान करने वाली एक प्रणाली विकसित की। इससे किसी समय विशेष में व्यक्ति की पहचान करने और उपस्थिति के लिए बनाया गया। कंपनी ने इसके साथ ही ब्रीथ एनालाइजर भी बनाया जिससे यह पता लगाया जा सके कि कोई व्यक्ति कार्यस्थल पर शराब का सेवन कर तो नहीं आया।
कर्मियों के आने का समय तथा उपस्थिति सभी कंपनियों में एचआर विभाग की मुख्य चुनौती होती है। पारंपरिक तौर पर इसे गैर यांत्रिक तरीके से किया जाता था जिसमें गलत जानकारी की काफी संभावनाएं होती थीं। इसके बाद आए पहचान पत्र और पंच कार्ड की अपनी समस्याएं हैं और कई बार ये खो जाते हैं। रैमको द्वारा बनाई गई समय और उपस्थिति आधारित चेहरा पहचाने वाली प्रणाली 'रैमको गीक' प्रकाश की गति से काम करके और सभी कर्मियों की उपस्थिति दर्ज करके इन सभी समस्याओं का समाधान करती है।
कैसे करती है काम
एक बार सभी कर्मचारियों का चेहरा इस प्रणाली में पंजीकृत कराया जाता है और कंपनी में लगे कैमरे व्यक्ति को देखते ही उसके चेहरे की पहचान कर लेते हैं और तत्काल उपस्थिति दर्ज करके उसे अंदर जाने की अनुमति दे दी जाती है। सिंगापुर स्थित रैमको स्टिम्स की नवोन्मेष लैब के प्रमुख रमेश शिवा सुब्रमण्यम कहते हैं कि बड़े कार्यलयों में अलग-अलग जगह जाने के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है और इस तकनीक के चलते समय की काफी बचत होती है।
कंपनी माइक्रोसॉफ्ट की चेहरा पहचानने वाली तकनीक 'फेस एपीआई' का उपयोग करती है। क्लाउड आधारित यह तकनीक न सिर्फ चेहरा पहचानने वाले एल्गोरिद्म का उपयोग करती है बल्कि कैमरे द्वारा खींची गई तस्वीर का डेटाबेस से मिलान करने में बहुत से पैमानों का उपयोग करते हुए काफी सटीक होती है। इस तकनीक को सुपरवाइजर के मोबाइल फोन, टेबलेट या सीसीटीवी कैमरे पर भी चलाया जा सकता है जिससे कर्मचारी की उपस्थिति दर्ज करायी जा सके।
कृत्रिम मेधा (एआई) और मशीन लर्निंग भी इस प्रणाली में अहम भूमिका निभाती हैं। दूसरी कंपनियों में प्रयोग करने से पहले रैमको ने इस तकनीक का प्रयोग अपने यहां किया। अपने वेब-कैमरों में इसे लगाने के बाद कंपनी को अहसास हुआ कि इस तकनीक को सीधे सीसीटीवी से जोड़ा जा सकता है और उपस्थिति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। इस प्रणाली को क्लाउड पर विकसित किया गया था लेकिन व्यक्ति के फोटो से मिलान में लगने वाले समय को कम करने के लिए कंपनी ने एआई तकनीक पर काम करने वाली स्टार्टअप हाइपरवर्ज से साझेदारी की है।
हम वापस उस फैक्टरी की ओर लौटते हैं जहां कर्मचारियों के काम के घंटे बेकार हो रहे थे, रैमको ने सीसीटीवी कैमरों का प्रयोग किया और कर्मचारियों को काम शुरू करने से पहले उस जगह से गुजरते हुए कैमरों की तरफ देखने के लिए कहा गया। चेहरा पहचानने वाली तकनीक प्लांट में कर्मचारी की गतिविधियों पर नजर रखती है और काम शुरू करने में देरी के दूसरे कारणों का भी पता लगता है।
रियल टाइम डेटा
इस तकनीक की एक मुख्य विशेषता यह है कि ये रियल टाइम में डेटा उपलब्ध कराती है। समय आधारित दूसरी प्रणालियों, जैसे बायोमीट्रिक या आईडी कार्ड आदि में आंकड़ों का सिन्क्रोनाइज देरी से होता है और इसके चलते चेहरा पहचानने वाली तकनीक अधिक कारगर दिखाई देती है। रियल टाइम में निगरानी से कार्यक्षमता बेहतर करने में काफी मदद मिलती है।
वहीं, उपस्थिति दर्ज कराने वाली दूसरी तकनीकों के स्थान पर इसमें सेंध लगाना काफी मुश्किल होता है। इसके अलावा इस प्रणाली को आईओटी सेंसर और स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली से भी जोड़ा जा सकता है। ऑफलाइन होने पर भी यह प्रणाली काम कर सकती है जिससे इंटरनेट की पहुंच से दूर वाली जगहों पर भी इसका प्रयोग हो सकता है। पश्चिम एशिया और अफ्रीका में कई जगहों पर ऐसा किया जा रहा है।
कर्मियों की निजता का ध्यान रखते हुए रैमको इस बात को सुनिश्चित करती है कि सॉफ्टवेयर चित्र के बजाय केवल बाइनरी डेटा ही सहेजे। सॉफ्टवेयर किसी भी व्यक्ति की फोटो को बाइनरी में बदलकर उसका सहेजे गए आंकड़े से मिलान करती है और व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करती है।
रैमको की चेहरा पहचानने वाली प्रणाली में व्यक्ति की उम्र पहचानने वाली तकनीक भी है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कर्मी अपनी उम्र गलत न बता सके और कम उम्र वाले कर्मियों को काम पर न रखा जाए। इससे कंपनी कई शिफ्ट में काम करने वाले कर्मियों की भी पहचान कर पाती है।
नशे की हालत में काम पर आने वाले कर्मियों की पहचान करने के लिए रैमको ने ऑस्ट्रेलिया स्थित कंपनी द्वारा बनाई गई ब्रीथ एनालाइजर ऐप्लिकेशन एल्कोलाइजर के साथ साझेदारी की है। इस विशेषता को आईओटी तकनीक के साथ जोड़ दिया जाता है जिससे प्रणाली में सेंध लगाने की संभावना को न्यूनतम किया जा सके। अगर किसी कर्मी को मादक पदार्थों के सेवन में लिप्त पाया जाता है तो उसे कंपनी के सर्वर में बैकएंड पर चिह्नित कर दिया जाता है और वह कंपनी की किसी भी इकाई में प्रवेश नहीं कर सकता। रैमको के अनुसार पश्चिम एशिया की कुछ कंपनियों में इस प्रणाली का उपयोग हो रहा है।
रैमको का कहना है कि चेहरे से पहचान करने वाली प्रणाली और ब्रीथ एनालाइजर लगाने की शुरुआती लागत अधिक हो सकती है लेकिन इससे होने वाले लाभ से खर्चों की भरपाई हो जाती है। शिवा सुब्रमण्यम के अनुसार फिलहाल 25,000 जगहों पर रैमको की चेहरे से पहचान करने वाली प्रणाली का उपयोग हो रहा है और अगले 3-4 महीनों में ये आंकड़े दोगुने होने की उम्मीद है। कंपनी फिलहाल सामान की पहचान करने वाली प्रणाली पर काम कर रही है जो ग्राहकों को नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने और कारखाना परिसर में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी से बचने में मदद कर सकता है।
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