कार्वी घटना के बाद थर्ड-पार्टी जमानत सुविधा के लिए बैंक और ब्रोकर से संबंधित कानूनों पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और नैशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज (एनएसडीएल) ने जमानत के तौर पर रखी गईं प्रतिभूतियों को हस्तांतरित करने का आदेश दिया है। ऋणदाताओं ने शेयर के बदले ऋण आवंटित करने के पुराने कारोबारी मॉडल को अपनाया और कथित तौर पर कुछ मानदंडों को नजरअंदाज किया। कानून विशेषज्ञों का मानना है कि इससे शेयर के बदले ऋण देने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है क्योंकि यह गिरवी प्रतिभूतियों के आवंटन पर सवाल उठाता है। पूर्व न्यायाधीश और एलऐंडएल पार्टनर्स के पार्टनर भरत चुग ने कहा, 'गिरवी शेयरों को जमानत करार देने से पहले आपको ध्यान रखना होगा कि कार्वी के पास गिरवी शेयरों को जमानत के तौर रखने का कोई अधिकार नहीं था। इसलिए ऋणदाताओं द्वारा गिरवी शेयरों के लिए अधिकार पर दावा करने से समस्या पैदा होती है क्योंकि वे अवैध तौर पर हासिल अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं जो निवेशकों के वैध स्वामित्व के खिलाफ है।' उन्होंने कहा कि यदि कार्वी के पास पर्याप्त अधिकार नहीं थे तो लेनदारों पास रखी गई गिरवी शेयरों को नहीं भुनाया जा सकता है।हालांकि इस मुद्दे पर बहस हो सकती है कि लेनदारों अथवा ग्राहकों में किसे अपना दावा छोडऩा चाहिए। गिरवी प्रतिभूतियां लेने का अधिकार लेनदारों के पास भी है। लेकिन अधिकतर विश्लेषकों का मानना है कि प्रतिभूतियां वापस ग्राहकों को हस्तांतरित करने संबंधी बाजार नियामक की पहल अप्रत्याशित है। एनएसडीएल ने प्रतिभूतियों को कार्वी के डीमैट खाते से उन संबंधित ग्राहकों (95,000 में से 82,559) के डीमैट खाते में हस्तांतरित कर दिया है जिन्होंने इन शेयरों के एवज में पूरा भुगतान किया था। ऐसा सेबी के 22 नवंबर के आदेश के अनुपालन में और निवेशकों के हितों की रक्षा में किया गया है। विशेषज्ञों ने कहा कि प्रतिभूतियों के हस्तांतरण के लिए पर्याप्त कानूनी आधार है। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टïया पाया गया कि कार्वी ग्राहकों के गिरवी शेयरों को बैंकों के पास गिरवी रखकर अपनी सहायक इकाइयों के लिए रकम जुटाने के लिए प्राधिकृत नहीं थी और इसे देखते हुए बाजार नियामक ने यह पहल की है। चुग के अनुसार, यह पिछले कुछ वर्षों के दौरान बाजार नियामक द्वारा जारी उन तमाम विनियमन पर आधारित है जिनके तहत इस गंभीर प्रथा को रोकने की बात कही गई है। लेकिन ऐसा लगता है कि वह अभी भी बेरोकटोक जारी है। हालांकि इस बात को लेकर भी चिंता जताई गई है कि कार्वी मामले में लेनदारों के अधिकारों का सम्मान नहीं किया गया क्योंकि बाजार नियामक ने अपना आदेश पारित करने से पहले उनका पक्ष नहीं सुना। सेबी के आदेश को लागू करने से पहले एनएसडीएल ने भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।कार्वी के लेनदारों ने एनएसडीएल के इस कार्रवाई को प्रतिभूति अपीलीय ट्रिब्यूनल (एसएटी) में शिकायत की है। इस ब्रोकरेज ने कथित तौर पर इन प्रतिभूतियों के एवज में आईसीआईसीआई बैंक, इंडसइंड बैंक और एचडीएफसी बैंक से कुल करीब 3,000 करोड़ रुपये की उधारी ली। हालांकि सैट से लेनदारों को तत्काल कोई राहत नहीं मिली है लेकिन उन्हें बाजार नियामक के सामने अपना पक्ष रखने का एक मौका दिया गया है। दलील के दौरान लेनदारों ने एक सुर में कहा कि इस पहल से पूरे जमानत कारोबार में घबराहट है क्योंकि उन्हें लगता है कि गिरवी रखी गई प्रतिभूतियों को कहीं भुनाया न जा सके। लेनदारों ने दो मुद्दों पर दलीलें दी हैं। पहला, कार्वी के गिरवी को लेकर आशंका जताने के लिए उनके पास कोई कारण नहीं है क्योंकि सबकुछ मानक परिचालन प्रक्रिया के अनुरूप किया गया था और डिपॉजिटरी, एक्सचेंज और सेबी द्वारा उसकी पूरी निगरानी की गई थी। दूसरा, प्रतिभूतियों के बदले ऋण आवंटित करना सामान्य और लेनदारों के लिए उचित कारोबारी गतिविधि है। यदि उन्हें अपने बोनाफाइड अधिकारों का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं दिया गया तो उसका उधारी कारोबार पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और धीरे-धीरे यह कारोबार खत्म हो जाएगा। इसके अलावा इन शेयरों के खुले बाजार में आने पर उन्हें दोबारा हासिल करना लगभग असंभव हो जाएगा और बैंकों के पास कोई प्रतिभूति नहीं बचेगी।वरिष्ठï बैंकरों ने कहा कि लेनदारों को कार्वी जैसी कंपनियों से वसूली करने का अधिकार है। लेकिन बैंक गिरवी रखे गए शेयरों की बिक्री नहीं कर सकते। उन शेयरों के वास्तविक स्वामी के अधिकार अक्षुण्ण रहने चाहिए। हालांकि बैंकरों ने निजी तौर पर सहमति जताई कि स्वामित्व और जमानत संबंधी विभिन्न पहलुओं को सत्यापित करना उनकी जिम्मेदारी थी। विशेषज्ञों ने कहा कि यदि सेबी अपने पहले के दिशानिर्देशों के तहत ब्रोकरों को इन शेरयों को गिरवी रखने की अनुमति भी दी होगी तो जून के परिपत्र के तहत उसे बदल दिया गया है। जून के परिपत्र में बाजार नियामक ने ब्रोकरों को किसी भी उद्देश्य के लिए शेयरों को गिरवी रखने से रोका है। इसके अलावा सेबी ने ब्रोकरों से कहा है कि उन्हें ग्राहकों की प्रतिभूतियों के लिए और खुद की प्रतिभूतियों के लिए अलग-अलग खाते रखने होंगे। हालांकि बैंकरों ने अभी भी उचित जांच परख करना होगा और मामले को अपने पक्ष में स्थापित करना होगा। साथ में अभिजित लेले
