बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से उलझी हुई 4 फर्मों को कोई राहत मिलने की संभावना कम है, जिन्होंने कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग को उधारी दी है। कार्वी ने अपने ग्राहक की प्रतिभूतियों को गिरवी रखा था। प्रतिभूति नियामक अपील न्यायाधिकरण (सैट) के दिशानिर्देशों के बाद सेबी ने पिछले सप्ताह एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, इंडसइंड बैंक और बजाज फाइनैंस को प्रतिभूतियों के हस्तांतरण के मसले पर सुनवाई का मौका दिया था। इन प्रतिभूतियों को कार्वी के खाते से संबंधित बैंकों के लिए गैर कानूनी तरीके से गिरवी रखा गया था। सूत्रों ने कहा कि बाजार नियामक कर्जदाताओं को प्रतिभूतियों के मालिकाना हक को लेकर उचित नियमों का पालन न करने के मामले में जवाबदेह ठहरा सकता है, जिसे कार्वी ने गिरवी रखा था। इस पूरे मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा, 'गिरवी शेयरों के मालिकाना हक और सही मालिकों को लेकर कर्जदाताओं ने कार्वी से कभी सवाल नहीं किए। ऐसे में उन्हें लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. यह नियामक का रुख है।' उन्होंने कहा, 'स्टॉक ब्रोकरों को कर्ज दिए जाने को लेकर उचित व्यवस्था की गई है। इसमें उधारी की पेशकश करने वालों को गिरवी की पूरी तरह से जांच की जरूरत होती है। बड़े वित्तीय संस्थान से उम्मीद की जाती है कि वह जमाकर्ता के शेयरों के मालिकाना हक को लेकर सक्रिय रुख अपनाए, जिसकी पेशकश ब्रोकर की ओर से गिरवी के रूप में की जा रही है। इसकी पूरी तरह जांच होनी चाहिए कि यह शेयर किसके हैं।' सैट ने 12 दिसंबर गुरुवार को निर्देश दिया था कि सेबी इस मामले में आदेश पारित करे। सेबी की जून की अधिसूचना में ब्रोकरों के लिए यह अनिवार्य किया गया था कि ग्राहकों की प्रतिभूतियां, जो पहले ही गिरवी रखी गई हैं उन्हें गिरवी से छुड़ाया जाए और ग्राहकों को वापस किया जाए। अगर ग्राहक चूक करता है तो ऐसे मामले में ब्रोकरों से कहा गया था कि वे प्रतिभूति को 5 दिन तक रखें और उसके बाद वे प्रतिभूति को नकदी में बदल सकते हैं और बकाये की वसूली कर सकते हैं। यह नियम 31 अगस्त से प्रभावी था, लेकिन इसकी अवधि एक महीने और बढ़ा दी गई और ब्रोकरों को 30 सितंबर तक का वक्त दिया गया। प्रावधान का मतलब यह था कि सभी ब्रोकर 1 अक्टूबर तक गिरवी को खत्म करें। सूत्रों ने कहा कि सेबी ने कड़ा रुख अपनाया है। सेबी का मानना है कि सभी कर्जदाताओं ने शेयरों के एवज में कर्ज देते समय अधिसूचना को संज्ञान में लेते हुए सभी गिरवी की सावधानी से पुष्टि की है। कार्वी पर आरोप है कि उसने अवैध रूप से अपने 95,000 ग्राहकों के 2,300 करोड़ रुपये की संपत्ति को गिरवी रखकर 600 करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाए हैं। कार्वी ने प्रतिभूतियोंं का इस्तेमाल अपने समूह की इकाइयों के वित्तपोषण के लिए किया, जिसमें उसकी रियल एस्टेट से जुड़ी सहायक इकाई भी शामिल है। इस मामले से जुड़े एक और व्यक्ति ने कहा कि यह ध्यान देना उचित होगा कि कार्वी ने कथित डीपी खाते का खुलासा कभी न तो एक्सचेंजों में किया और न डिपॉजिटरीज में। सेबी ने अपने अंतरिम आदेश में यह कहा है कि प्रतिभूतियां हमेशा ग्राहकों से जुड़ी होती हैं न कि कार्वी से। बाद में उसने डिपॉजिटरीज को आदेश किया कि एनएसई की निगरानी में लाभार्थी मालिकों को प्रतिभूतियां वापस दी जाएं। आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और इंडसइंड बैंक ने न्यायाधिकरण के सामने अनुरोध किया था कि वे प्रतिभूतियां गिरवी थीं और उनका हस्तांतरण कर्वी के ग्राहक खातों में किया जाना चाहिए। उनका तर्क था कि उनकी सहमति के बगैर दिशानिर्देश जारी किए गए थे। कर्जदाताओं ने न्यायाधिकरण से कहा था कि यह सामान्य औद्योगिक गतिविधि है कि गिरवी शेयरों के एवज में कर्ज दिया जाए और ऐसे में कार्वी के दावों पर अविश्वास करने का कोई मतलब नहीं था कि वह शेयरों की मालिक है। इस मामले के गुण दोष पर विचार किए बगैर सैट ने कहा था कि प्रतिभूतियों को वापस करने का अनुरोध पूरा करना संभव नहीं है और उसने इस मामले में सेबी को दिशानिर्देश दिए थे। सेबी ने 22 नवंबर को कार्वी ब्रोकिंग पर नया ग्राहक बनाने को लेकर प्रतिबंध लगा दिया और प्रतिभूतियों के दुरुपयोग की संभावना को देखते हुए ग्राहकों की ओर से दी गई पावर आफ अटार्नी (पीओए) के इस्तेमाल से भी रोक दिया था।
