पुणे के एमएसएमई क्षेत्र में मंदी की मार | |
अमृता पिल्लई / 12 04, 2019 | | | | |
पुणे औद्योगिक क्षेत्र के पास बसे देहु कस्बे के रहने वाले चंद्रकांत कुंभार को पिछले तीन वर्षों में दो बार अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। पहला, नोटबंदी के बाद और दूसरा तीन महीने पहले। कुंभार स्टील फैब्रिकेशन में कौशल रखते हैं और आर्थिक मंदी के इस दौर में भोसारी स्थिति कंपनियों में दूसरी नौकरी खोजने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
भोसरी शहर महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम द्वारा विकसित औद्योगिक क्लस्टर के बीचोबीच स्थित है और वहां पूंजीगत सामान बनाने वाली कई कंपनियां हैं। कुंभार के कौशल से जुड़े काम वाली छोटी फर्म बड़ी कंपनियों को सामान आपूर्ति करने वाले विक्रेताओं के लिए आपूर्तिकर्ता का काम करती हैं।
हालांकि पूंजीगत वस्तु निर्माता आर्थिक मंदी के चलते मांग में आई कमी की भरपाई किसी तरह से कर लेते हैं लेकिन इनपर निर्भर सूक्ष्म, लघु और मझोले (एमएसएमई) उद्योगों की अर्थव्यवस्था लडख़ड़ा रही है। जिस दर पर पूंजी-गहन उद्योग पूंजीगत सामान खरीदते हैं या अर्थव्यवस्था में निवेश की मांग को देखते हैं, उसे सकल स्थायी पूंजी निर्माण (ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन) द्वारा दर्शाया जाता है। सितंबर तिमाही में इसमें महज 1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साथ ही, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) द्वारा दर्शाया गया पूंजीगत माल का उत्पादन लगातार दो महीनों (अगस्त एवं सितंबर) के लिए 20 प्रतिशत कम हो गया।
भारत का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग समूह और पूंजीगत सामान उत्पादन में अग्रणी कंपनी लॉर्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के जुलाई-सितंबर 2019 के दौरान घरेलू ऑर्डर में गिरावट आई है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय ऑर्डरों की बदौलत कंपनी की कुल ऑर्डर संख्या में बढ़ोतरी देखी गई। भोसारी से 20 मिनट का सफर करके आप पुणे फैसिलिटि इंजीनियरिंग फर्म थर्मेक्स पहुंच जाते हैं। सितंबर में समाप्त तिमाही में कंपनी ने 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। घरेलू ऑर्डरों ने इस बढ़ोतरी में योगदान दिया लेकिन कंपनी प्रबंधन ने हालिया बाजार स्थिति को 'बहुत, बहुत कठिन' के रूप में वर्णित किया है।
जबकि पूंजीगत सामान वाली बड़ी कंपनियों ने वृद्धि दर को बनाए रखा है, लेकिन उद्योग में आने वाले ऑर्डरों में गिरावट आई है। पुणे स्थित उद्योग लॉबी समूह महराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्रीज ऐंड एग्रीकल्चर के महानिदेशक प्रशांत गिरबेन का कहना है कि इसके असर से लंबी अवधि में स्थिति काफी खराब हो सकती है।
वह कहते हैं, 'बड़ी कंपनियों ने शिफ्ट में कटौती की है जिससे उनको आपूर्ति करने वाली कंपनियों पर असर पड़ा है। जिससे प्राथमिक निर्माता और कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं के लिए सामान बनाने वाले बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ये सभी एक ही उत्पाद शृंखला पर आधारित हैं।' बाजार की गंभीर स्थिति ने उन कंपनियों को मजबूर किया है जो बड़ी कंपनियों को उत्पाद एवं सेवाएं उपलब्ध कराती हैं।
मार्टिन इंजीनियरिंग कंपनी के प्रबंध निदेशक अनूप नायर का कहना है कि हालांकि कंपनी दो शिफ्ट में कार्य संचालन कर सकती है, लेकिन फिलहाल केवल एक शिफ्ट ही चल रही है, क्योंकि या तो मांग बढ़ नहीं रही, या स्थिर है। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'हम वर्ष 2018 के बराबर ही उत्पाद कर रहे हैं।' कंपनी ने अपनी भर्ती प्रक्रिया पर भी फिलहाल रोक लगाई हुई है।
नायर क्षेत्र में बदलाव की योजना बना रहे हैं और फिलहाल सीमेंट क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वहां विकास की अधिक संभावनाएं हैं। हालांकि छोटी सहायक इकाइयों के पास क्षेत्र विशेष में बदलाव के अधिक विकल्प नहीं होते। भोसरी स्थित धातु काटने वाली एक वर्कशॉप के मालिक ने कहा, 'मुझे इस कारखाने को शुरू किए एक साल से भी कम समय हुआ है और यह कारोबार अनिश्चितता से भरा है। एक दिन मेरी दुकान पर 10 घंटे काम होता है और अगले दिन बस चार घंटे।' उन्होंने कहा, 'मैं कर्मियों की संख्या को कम रख रहा हूं जिससे बाद में मुझे पीछे हटने की जरूरत न पड़े।'
इस पूरी शृंखला के आखिरी पायदान पर कुंभार जैसे कर्मी आते हैं। अपनी पिछली नौकरी में वह एक फैक्ट्री शॉप पर उत्पाद प्रबंधक के पद पर काम करते थे। उनके साथ काम करने वाले श्रमिक उन्हें पसंद करते थे। इन गतिविधियों से औद्योगिक क्षेत्र में चाय और स्नैक्स का कारोबार भी अच्छा चल रहा था। एक चाय दुकान के मालिक ने कहा, 'अब मैं खुद ही अपनी दुकान को संभालता हूं। मंदी की वजह से कारोबार धीमा है।'
भोसारी में काम करने वाले संविदा कर्मी और फैक्ट्री कर्मी बताते हैं कि फिलहाल संविदा कर्मियों की मांग में काफी कमी आई है। एक फैक्ट्री कर्मी ने कहा, 'मुझे लगता था कि इस वर्ष मेरी वेतन-वृद्धि होगी। हमारी कंपनी में अब संविदा कर्मियों की संख्या कम हो गई है। कंपनी उपलब्ध कर्मियों के जरिये काम पूरा करने की कोशिश में लगी है।'
मंदी और इसका प्रभाव छोटी इंजीनियरिंग इकाइयों तक सीमित नहीं है। यह उनके बिजनेस आपूर्तिकर्ताओं को भी प्रभावित कर रहा है। भोसारी में चाय की दुकान पर मिले एक मसाला आपूर्तिकर्ता ने कहा, 'कैंटीन से मांग में कमी आई है। शुक्र है कि मेरे कारोबार का बड़ा हिस्सा होटल उद्योग से जुड़ा है, जो अभी भी अच्छा चल रहा है।'
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