उद्योग में सफेदपोश अपराधों की सेंध | |
रुचिका चित्रवंशी / 12 04, 2019 | | | | |
सर्वेक्षण के मुताबिक वित्त, दवा और आईटी जैसे क्षेत्रों में धोखाधड़ी, गबन जैसे मामले बढ़े
सभी उद्योगों विशेष रूप से वित्तीय, दवा, सूचना तकनीक और विनिर्माण में व्हाइट कॉलर (सफेदपोश) अपराधों ने सेंध लगा ली है। नेट्रिका कंसल्टिंग और इंडियन नैशनल बार एसोसिएशन के एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक इन क्षेत्रों में धन शोधन, कर चोरी, गबन, प्रतिभूति, क्रेडिट कार्ड एवं बीमा धोखाधड़ी के मामले बढ़ रहे हैं। इस सर्वे के मुताबिक वित्त वर्ष 2019 में धोखाधड़ी के कुल 3,766 मामले पकड़े गए हैं। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2018 की तुलना में 15 फीसदी अधिक है। इसके अलावा धोखाधड़ी की वजह से होने वाले नुकसान में 80 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।
व्हाइट कॉलर अपराधों को उच्च सामाजिक वर्गों के लोगों द्वारा वेतन चोरी, धन शोधन, कॉपीराइट के उल्लंघन जैसे गैर-हिंसक आपराधिक कार्यों के रूप में परिभाषित किया गया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि दवा क्षेत्र में फर्जी योजनाओं, एक्पायर माल की बिक्री, सरकारी संस्थानों को दवाओं की आपूर्ति के एवज में व्यावसायिक घूस में संलिप्तता, गैर-परामर्शी दवाओं की बिक्री आदि के जोखिम हैं।
जिन लोगों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया, उनमें से करीब 54 फीसदी का मानना है कि व्हाइट कॉलर अपराध परिवार के स्वामित्व वाले उद्यमों में कम हैं। हालांकि सर्वेक्षण में कहा गया है कि अगर परिवार के स्वामित्व वाले उद्यमों में परिवार से इतर कार्याधिकारियों के साथ 'दोयम दर्जे के बर्ताव' के कारण जानबूझकर अपराध किया जाता है तो उसी स्थिति में पारिवारिक उद्यमों में अपराधों की अधिकता हो सकती है।
नेट्रिका कंसल्टिंग के प्रबंध निदेशक संजय कौशिक ने कहा, 'वैश्विक घटनाक्रम और बदलते सामाजिक-आर्थिक माहौल ने संगठनों की सफलता में व्हाइट कॉलर अपराधों को प्रमुख बाधा बना दिया है। हालांििक सरकार इस जोखिम को कम करने के लिए नीतिगत स्तर पर काम कर रही है, लेकिन जमीन स्तर पर और कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि कानूनों को प्रभावी और असरदार बनाया जा सके।'
सर्वेक्षण में कहा गया है कि सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर लोगों का मानना है कि ऐसे अपराध काराबोरी घरानों के बरबाद होने के लिए जिम्मेदार हैं। कंपनी की प्रतिष्ठा कम होने से उसके उत्पादों की बिक्री में भी भारी गिरावट आती है। ऐसे में कंपनी के लिए लाभ कमाना और अपने ऋणों और कर्मचारियों को भुगतान करना नामुमकिन हो जाता है, जिससे उसका वजूद ही खत्म हो जाता है। सर्वेक्षण में 77.6 फीसदी लोगों का मानना था कि पोंजी योजनाएं व्हाइट कॉलर अपराध ही हैं।
सर्वेक्षण में 52 फीसदी से अधिक लोगों ने कहा कि व्हाइट कॉलर अपराध रेसीड्यूअल रिस्क (नियंत्रण के बाद बचने वाले जोखिम) से अधिक इनहेरेंट रिस्क (नियंत्रण के अभाव में मौजूद जोखिम) हैं। इनहेरेंट रिस्क को इस प्रकार परिभाषित किया गया है। यह जोखिम का वर्तमान स्तर है, जो मौजूदा नियंत्रणों के बाद रहता है। वहीं रेसीड्युअल रिस्क वह जोखिम है, जो अतिरिक्त नियंत्रणों को लागू करने के बाद बचता है।
इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुछ मामलों में यह भी सामने आया है, जिन क्षेत्रों में नियम सख्त हुए तो उनमें जोखिम भी बढ़ गया। उन्होंने कहा, 'व्हाइट कॉलर अपराध करने का इच्छुक व्यक्ति तब तक ऐसा करता है, जब तक उसमें जोखिम उठाने की इच्छा बनी रहती है।' इसमें 46 फीसदी से अधिक लोगों ने कहा कि व्हाइट कॉलर अपराधों का कंपनी की वृद्धि पर सबसे बुरा असर पड़ता है। वहीं 37 फीसदी का मानना है कि इन अपराधों का सबसे बड़ा असर यह पड़ता है कि कंपनी की प्रतिष्ठा कम हो जाती है। इस सर्वेक्षण में भागीदार विधि कंपनियों, मीडिया और कॉरपोरेट हाउस के व्यक्ति थे।
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