प्याज संकट | संपादकीय / December 04, 2019 | | | | |
हाल के वर्षों में मॉनसून के बाद प्याज की कीमतों में बार-बार आने वाली उछाल प्राय: नवंबर तक कम हो जाती थी। परंतु इस वर्ष कीमतें अब तक तेज हैं और निकट भविष्य में उनमें कमी आने की संभावना भी नहीं नजर आती। इसके लिए कुछ हद तक मॉनसून के चलते बुआई और खरीफ की प्याज की फसल लेने में देरी भी वजह है। परंतु सरकार के गलत समय पर किए गए गलत हस्तक्षेप को भी इस संकट के गहराने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।
प्याज के निर्यात पर रोक, पादप स्वच्छता और धूम्रीकरण के शिथिल मानकों के साथ प्याज आयात के आपात इंतजाम और प्याज भंडारण की सीमा तय करने जैसे कदमों से यह संकेत गया कि सरकार घबराई हुई है। कमी से उपजे इस डर में और इजाफा करते हुए खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने कहा कि असमय हुई बारिश और चक्रवाती तूफानों के कारण प्याज की फसल को 30 से 40 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है। यह राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील मसले के कुप्रबंधन के सिवा कुछ नहीं है। अतीत में तो यह सरकार गिरने का कारण तक बन चुका है।
प्याज संकट के बार-बार उभरने की मूल वजह इस हकीकत की अनदेखी करना है कि प्याज की मांग तो साल भर बनी रहती है लेकिन इसकी आपूर्ति मौसमी है। एक तरह से देखा जाए तो हम खुशकिस्मत हैं कि देश में प्याज की फसल तीन बार होती है। खरीफ के आरंभ में, खरीफ के अंत में और रबी के मौसम में। इन तीनों फसलों का प्याज नवंबर से जून के बीच बाजार में आता है। जुलाई से अक्टूबर तक ताजा आपूर्ति नहीं होती है और इस अवधि में बाजार में भंडारित प्याज की बिक्री होती है। ऐसे में प्याज की कीमतों और आपूर्ति प्रबंधन की सबसे अहम बात यह है कि जिस मौसम में ताजे प्याज की आवक नहीं होती है, उस दौरान आपूर्ति के लिए पर्याप्त भंडार रखा जाए। खेद की बात है कि ऐसा नहीं हो पाता क्योंकि भंडारण को मुनाफाखोरी की वजह से की गई जमाखोरी मानते हुए नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है।
इसमें दो राय नहीं कि भंडारण और जमाखोरी के बीच बहुत बारीक अंतर है लेकिन कम से कम प्याज के मामले में इस अंतर को समझना होगा। अनिवार्य जिंस अधिनियम के तहत प्याज भंडारण की सीमा तय करने जैसे कदम और ज्यादा प्याज जमा करने वालों पर छापा मारने जैसे कदमों के चलते कारोबारी और किसान दोनों ही अधिशेष उपज का भंडार करने से बचते हैं। ऐसे उपाय इस वर्ष जल्दी शुरू कर दिए गए जिसका नतीजा आपूर्ति में कमी और कीमतों में बढ़ोतरी के रूप में सामने आया।
जरूरत इस बात की है कि प्याज भंडारण को प्रोत्साहित करके निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। प्याज का रखरखाव न तो कठिन है, न ही यह लागत की दृष्टि से अच्छा है क्योंकि इसकी प्रकृति खराब होने की है। प्याज को खुली हवादार जगह में रखा जा सकता है। इसके लिए बांस जैसी चीजों का ढांचा बनाया जा सकता है। इसे बारिश से बचाना होगा। कीमतों में मौसमी उछाल को रोकने के लिए जो नीति बने उसमें प्रसंस्करण के जरिये प्याज के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। प्याज संरक्षण की सबसे सहज और कम लागत वाली तकनीक में प्याज को सुखाना और उसे पेस्ट के रूप में रखना शामिल है। ये उत्पाद उस मौसम में काम आ सकते हैं जब प्याज नहीं होता। उपभोक्ता ताजा या भंडारित प्याज की ऊंची कीमतों से बचने के लिए इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। आशा की जानी चाहिए कि प्याज का मौजूदा संकट, सरकार को अतीत की गलतियों से सबक सीखने पर मजबूर करेगा और वह भंडारण एवं प्रसंस्करण जैसे दीर्घकालिक तरीके तलाशेगी।
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