खाद्य तेल से गाड़ियां भर रहीं रफ्तार | |
शाइन जैकब / 12 02, 2019 | | | | |
राजस्थान के 48 वर्षीय ट्रक ड्राइवर काला राम के लिए पिछले दो दशकों से भोजन, पानी और डीजल जिंदगी के अहम पहलू रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों में यह थोड़ा बदला है। वह इन दिनों अपने ट्रक में जिस डीजल का इस्तेमाल कर रहे हैं वह थोड़ा अलग है। काला राम बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहते हैं, 'इसका माइलेज थोड़ा कम है लेकिन पिकअप ज्यादा है। मगर लोग बोलते हैं कि ये सबसे शुद्ध है।' वह हरियाणा के बावल में बायो-डीजल बनाने वाली कंपनी बायो-डी एनर्जी के एक रिफिलिंग डिस्पेंसर पर डीजल भरवाने आए थे।
राम जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी से जुड़े हैं, उसके मालिक गत अगस्त से ही अपने ट्रकों एवं टैंकरों में बायो-डीजल का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि राम को भी यह नहीं पता था कि उनके ट्रक में भरा जा रहा बायो-डीजल दिल्ली के रसोईघरों में इस्तेमाल हो चुके कुकिंग ऑयल का ही बदला रूप है। खानपान उत्पादों की आपूर्ति करने वाली कंपनी जोमैटो पुराने कुकिंग ऑयल को इकट्ठा कर बायो-डीजल बनाने वाले विनिर्माताओं तक पहुंचा रही है। रेवाड़ी जिले के बावल में स्थित बायो-डी एनर्जी ऐसी ही बायो-डीजल विनिर्माता है।
बावल से करीब 70 किलोमीटर दूर रेस्टोरेंट शृंखला ओम स्वीट्स के मुख्य रसोईघर में चारों तरफ मिठाइयां, नमकीन, बिस्कुट एवं नाश्ते के तमाम व्यंजनों को तैयार किया जा रहा है। करीब 350 कर्मचारी इस रसोईघर में तमाम उत्पादों को तैयार करने में लगे हुए हैं। उसी समय जोमैटो की एक पिकअप वैन रसोईघर के बाहर खड़ी होती है और उसमें इस्तेमाल हो चुके पुराने तेल से भरे कनस्तर भर दिए जाते हैं। फिर यह वैन तेलों से भरे कनस्तर लेकर बायो-डीजल निर्माताओं के कारखाने की तरफ रवाना हो जाती है।
जोमैटो को पुराने खाद्य तेल की आपूर्ति करते हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। ओम स्वीट्स के महाप्रबंधक (परिचालन) रजनीश पुरी कहते हैं, 'पहले हम अपने रसोईघरों में इस्तेमाल होने के बाद बचे तेल की आपू्र्ति स्थानीय वेंडरों को करते थे। जोमैटो से जुडऩे का फायदा यह है कि इस तेल के गंतव्य के बारे में पूरी जानकारी मिलती रहती है।' वह इस मकसद से बनाया गया एक मोबाइल ऐप दिखाते हैं जिसमें तेल के वजन एवं सफर के बारे में पूरा विवरण देखा जा सकता है। पुराने तेल से पैदा होने वाले स्वास्थ्य खतरों को देखते हुए खानपान शृंखलाओं के लिए यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि उनके यहां इस्तेमाल हो चुके तेल को कहीं और खानपान के लिए तो नहीं इस्तेमाल किया जा रहा है। इस लिहाज से जोमैटो जैसे ऑपरेटर से जुडऩा उन्हें भरोसा दे रहा है। यह बात वैज्ञानिक तौर पर साबित हो चुकी है कि कई बार इस्तेमाल हो चुके तेल में बना खाना खाने से मोटापा, दिल की बीमारी, कैंसर और मधुमेह हो सकता है।
ओम स्वीट्स के रसोईघर में रोजाना करीब 120 लीटर तेल का इस्तेमाल होता है। इसमें पाम ऑयल, देसी घी, सनफ्लॉवर, रिफाइंड और सोया तेल शामिल होते हैं। रसोईघर के प्रबंधक दिनेश यादव कहते हैं, 'हम हरेक दो घंटे पर तेल का गुणवत्ता परीक्षण करते हैं और जरूरत होने पर ताजा तेल डालते हैं। हम हफ्ते में औसतन 450 किलोग्राम तेल जोमैटो को आपूर्ति करते हैं।' अपने घनत्व एवं अशुद्धता की वजह से प्रयुक्त रसोई गैस को लीटर के बजाय किलोग्राम में मापा जाता है। इस्तेमाल के अनुपयुक्त करार दिए जा चुके तेल को कंटेनर में भरने के बाद उन पर बारकोड लगाया जाता है और वैन में भर दिया जाता है। कंटेनर पर लगे बारकोड की मदद से मोबाइल ऐप के जरिये आसानी से नजर रखी जा सकती है।
ओम स्वीट्स के रसोईघर से वैन को हरियाणा के समालखा स्थित जोमैटो गोदाम तक पहुंचने में करीब आधा घंटा लगता है। आपूर्ति सहयोगी शिवम कुमार कहते हैं कि कंटेनर को लादने या उतारने के समय केवल ऐप में दिए गए मार्ग का ही अनुसरण किया जाता है। वह कहते हैं, 'रोजाना मैं करीब 15-17 जगहों से तेल इकट्ठा करता हूं।'
हालांकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ऐसे वाहनों के प्रवेश पर लगी समय की पाबंदी से परिचालन में थोड़ी दिक्कत होती है। जोमैटो इस समय दिल्ली-एनसीआर में 1,000 से भी अधिक जगहों से पुराने तेल को इकट्ठा करने का काम कर रही है। इनमें रेस्टोरेंट और छोटे होटलों के अलावा बिरयानी बाइ किलो, यम यम चा, मिठास और बर्कोस जैसे फूड चेन भी शामिल हैं। पुराने तेल के एवज में जोमैटो प्रति किलो 15-32 रुपये का भुगतान भी करती है।
रसोईघरों से इकट्ठा तेल को समालखा स्थित गोदाम में ले जाया जाता है और वहां पर उसे थोड़ा-बहुत फिल्टर किया जाता है। इसके लिए दस लोगों का स्टाफ रखा गया है। फिलहाल जोमैटो महीने भर में करीब 150 टन तेल इकट्ठा कर रही है जिसके मार्च 2019 तक 1,000 टन तक पहुंच जाने की उसे उम्मीद है। जोमैटो के उपाध्यक्ष (संपोषणीयता) रितेश खेड़ा कहते हैं कि तेल को खानपान की गुणवत्ता के मामले बड़ा दोषी माना जाता है और इस तेल का एग्रीगेटर बनकर कंपनी इसे दूर करने में अपना योगदान दे रही है। हालांकि इस कारोबार में कंपनी को कुछ कमाई भी हो रही है। रसोईघरों से इकट्ठा तेल बायो-डी कंपनी को मामूली मार्जिन पर बेच दिया जाता है।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) का कहना है कि बड़े रेस्टोरेंट एवं बड़े रसोईघरों से निकले खराब तेल को छोटे वेंडर खरीदते हैं और उन्हें छोटे दुकानदारों को बेच देते हैं। इस स्थिति में कुछ लोगों को लगता है कि जोमैटो जैसी संगठित कंपनी के इस कारोबार में उतरने से प्रयुक्त खाद्य तेल के प्रबंधन में कुछ हद तक पेशेवर रवैया आएगा।
खेड़ा कहते हैं, 'हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि कंटेनर में भरे गए तेल की हरेक बूंद को बायो-डीजल संयंत्र तक पहुंचाया जाए। इस प्रक्रिया में बहुत-कुछ स्वचालित तरीके से होता है।' जोमैटो अब इस कारोबार को अन्य शहरों में भी ले जाने की सोच रहा है। इसके लिए बेंगलूरु स्थित इकोग्रीन फ्युल्स और मुंबई स्थित यूनिकॉर्न के साथ जोमैटो की बातचीत की भी चर्चाएं हैं। इसके अलावा उत्तर भारत के पांच अन्य शहरों में भी वह रसोईघरों से खराब तेल जमा करने का काम शुरू करने वाली है।
जोमैटो समालखा के अपने गोदाम में तेल को तीन चरणों में फिल्टर करती है। इस दौरान तेल में मौजूद अवशिष्ट, पानी एवं फ्री फैटी एसिड (एफएफए) को हटाया जाता है। वहां से उसे बायो डीजल बनाने वाली कंपनी के संयंत्र तक भेज दिया जाता है। बायो-डी की प्रयोगशाला में तैनात इंद्रपाल सिंह कहते हैं, 'हम अपने यहां लाए गए तेल का घनत्व, नमी और आयोडीन मूल्य देखने के बाद ही उसे बड़े भंडार टैंकों में भरते हैं।' इस संयंत्र की क्षमता रोजाना 100 किलो लीटर तेल की है। वहां पर पुराने तेल को चार चरणों से शोधित किया जाता है जिसमें एफएफए जैसी अशुद्धियों को दूर करना, ग्लिसरीन जैसे उप-उत्पादों को अलग करना और डिस्टिल किया जाता है।
करीब 100 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित बायो-डी संयंत्र के निदेशक शिवा विग कहते हैं, 'हमारी खासियत यह है कि यहां तैयार होने वाला तेल डिस्टिल्ड बायो-डीजल होता है जिसे किसी भी डीजल इंजन चालित वाहन में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।' राजस्थान के खुदरा बिक्री केंद्रों में यह बायो-डीजल बेचा जाता है। इसके इस्तेमाल से वाहन मालिक को प्रति लीटर तेल पर 2-3 रुपये की बचत होती है।
तेल विपणन कंपनियां गैर-आसवित बायो-डीजल को 51 रुपये प्रति लीटर के तय दाम पर खरीदती हैं। फिर परंपरागत डीजल में पांच फीसदी बायो-डीजल मिलाकर बेचती हैं। जहां तक तैयार बायो-डीजल इस्तेमाल करने वाली कंपनियों का सवाल है तो उन्हें इस पर 10 रुपये प्रति लीटर से भी अधिक फायदा होता है क्योंकि इस पर केवल 12 फीसदी जीएसटी ही लगता है। शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए बायो-डी कंपनी जनवरी में दस खुदरा बिक्री केंद्र भी खोलने जा रही है जिससे काला राम जैसे वाहन चालकों को सीधा लाभ होगा।
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