कागज आयात 30 प्रतिशत बढ़ा | टीई नरसिम्हन / चेन्नई December 02, 2019 | | | | |
कागज आयात (अखबारी कागज को छोड़कर) में अप्रैल से सितंबर की अवधि के दौरान पिछले साल के मुकाबले मात्रा के हिसाब से करीब 30 प्रतिशत तक और डॉलर के हिसाब से 17.28 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईऐंडएस) के आंकड़े बताते हैं कि इस साल अप्रैल से सितंबर के दौरान आयात बढ़कर 70.6 करोड़ डॉलर हो गया है, जबकि एक साल पहले इस अवधि में आयात 60.2 करोड़ डॉलर था। मात्रा के लिहाज से यह 683.5 हजार टन की तुलना में बढ़कर 887.8 हजार टन हो चुका है।
इस वित्त वर्ष के पहले छह महीने के दौरान मूल्य के लिहाज से कुल आयात 19.69 प्रतिशत बढ़कर 4,941 करोड़ रुपये हो गया है, जबकि पिछले साल की इस अवधि में यह 4,128 करोड़ रुपये था। आंकड़े बताते हैं कि मात्रा के लिहाज से चीन और आसियान देशों से आयात में क्रमश: 40 प्रतिशत और 75 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। भारतीय कागज निर्माता संघ (आईपीएमए) ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संबंध में कदम उठाने के लिए कहा है जिसमें मूल सीमा शुल्क में बढ़ोतरी और भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की समीक्षा भी शामिल है। इससे तरजीही शुल्क व्यवस्था के तहत काफी कम लागत पर कागज और गत्ते का आयात बढ़ा है और घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचा है।
आईपीएमए के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत-आसियान एफटीए और भारत-कोरिया सीईपीए के अंतर्गत कागज और गत्ते पर मूल सीमा शुल्क में लगातार कमी आई है और वर्तमान में यह शून्य प्रतिशत बैठता है। इसके अलावा एशिया प्रशांत व्यापार समझौते (एपीटीए) के तहत भारत ने चीन (और अन्य देशों) के लिए भी आयात शुल्क छूट बढ़ा दी है तथा कागज के अधिकांश वर्गों पर मूल सीमा शुल्क को मौजूदा 10 प्रतिशत से घटाकर सात प्रतिशत कर दिया है। आईपीएमए के अध्यक्ष एएस मेहता ने कहा कि भारत ने चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने के दौरान 5,000 करोड़ रुपये का कागज (अखबारी कागज छोड़कर) और गत्ता आयात किया है, जबकि घरेलू उद्योग में मांग पूरी करने के लिए बहुत अधिक क्षमता है। अगर शून्य दरों पर आयात की अनुमति दी जाती है तो घरेलू निवेश सार्थक नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि संभवत: भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढऩे वाला कागज बाजार है। दुर्भाग्य से मौजूदा घरेलू निर्माण क्षमता का कम इस्तेमाल होने से इस मांग वृद्धि को आयात में इजाफे के जरिये पूरा किया जा रहा है। आईपीएमए का कहना है कि भारत का कागज उद्योग 80 प्रतिशत क्षमता पर चल रहा है जो कागज जैसे लगातार सक्रिय रहने वाले उद्योग और अधिक पूंजी निवेश के लिहाज से कम है। कुछेक कंपनियों के अलावा ज्यादातर क्षेत्र दबाव में है और बढ़ते शुल्क-मुक्त आयात की वजह से वाणिज्यिक रूप से अव्यावहारिक होने की राह पर बढ़ रहा है। कागज उद्योग, विशेष रूप से लकड़ी पर आधारित कागज निर्माताओंं से उन लगभग पांच लाख किसानों को मदद मिलती है जो कृषि वानिकी में लगे हुए हैं और कागज मिलों को कच्चे माल की आपूर्ति करते हैं।
आईपीएमए के महासचिव रोहित पंडित ने कहा कि सस्ते आयात से न केवल घरेलू विनिर्माण के हितों को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि बड़ी संख्या में उन किसानों को भी नुकसान पहुंच रहा है जो कृषि वानिकी में लगकर अपनी आमदनी बढ़ाते हैं। उन्होंने वस्तुओं में आसियान-भारत व्यापार समझौते (एआईटीआईजीए) की समीक्षा शुरू करने के फैसले की हालिया घोषणा और आरसेपपर उसके मौजूदा स्वरूप में भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षर नहीं करने के फैसले का स्वागत किया है। आईपीएमए के अनुसार वैश्विक व्यापारिक तनावों के परिणामस्वरूप भारतीय बाजार में बड़ी मात्रा में कागज और गत्ते की डंपिंग होने से देश का लुगदी और कागज उद्योग बहुत कमजोर हो गया है। इसके पीछे मुख्य रूप से इंडोनेशिया और चीन के वे निर्माता हैं जिन्हें बड़ी मात्रा में निर्यात प्रोत्साहन और सस्ते कच्चे माल का लाभ मिलता है।
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