वायु प्रदूषण से निपटने की खातिर कुछ कदम तत्काल उठाना जरूरी | जमीनी हकीकत | | सुनीता नारायण / December 02, 2019 | | | | |
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण को लेकर जो आपात स्थिति बनी है, उस सिलसिले में यह मेरा तीसरा आलेख है। सबसे पहले मैंने इस विषय पर चर्चा की कि आखिर अब तक उत्सर्जन कम करने के लिए क्या किया गया है। उसके बाद मैंने संकट की प्रकृति के बारे में लिखा कि आखिर क्यों ठंड के दिनों में प्रदूषण इतना विकराल नजर आता है और हमें इससे निपटने के लिए और कदम क्यों उठाने होंगे? इस बार मैं इस विषय पर बात करना चाहती हूं कि आखिर कौन से कदम तत्काल उठाए जाने की जरूरत है और संकट से निपटने के लिए उन्हें किस पैमाने पर उठाना होगा। मैं इस बारे में लिखना चाहती हूं क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो हम जिस हवा में सांस लेते हैं, उसकी गुणवत्ता को लेकर नाराज तो होंगे लेकिन उस स्थिति में हम स्वच्छ आकाश और साफ फेफड़े नहीं हासिल कर पाएंगे।
लब्बोलुआब यह कि हमें उस पैमाने पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है ताकि इतना बदलाव आ सके कि हम निरंतर बढ़ते प्रदूषण को पछाड़ सकें। जब दिल्ली में कंप्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी) का इस्तेमाल शुरू हुआ तो एक-दो साल में ही काफी सुधार हुआ। एक लाख से अधिक सार्वजनिक परिवहन वाले वाहनों को सीएनजी के रूप में स्वच्छ ऊर्जा माध्यम पर स्थानांतरित कर दिया गया। ऐसे में हमारे प्रदूषण के आंकड़ों में भी नाटकीय बदलाव आया। हमें आसमान में तारे देखने को मिले। बीते तीन सालों में अहम कदम उठाए गए हैं। दिल्ली में कोयले के इस्तेमाल पर प्रतिबंध से लेकर वाहनों के लिए स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल और ट्रकों से होने वाले प्रदूषण में कमी लाने तक तमाम उपाय किए गए लेकिन ये अपर्याप्त साबित हुए।
प्रश्न यह है कि आगे हम क्या करेंगे? हमें प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों के बारे में पता है। यह प्रमुख तौर पर वाहनों, फैक्टरियों, ताप बिजली घरों, डीजल जेनरेटरों, खुले में कचरा जलाने, धूल आदि से फैलता है। फसल अवशेष जलाए जाने के कारण भी महीने भी तक प्रदूषण का प्रकोप बना रहता है। मौसम में बदलाव आते ही यानी हवा बंद होने और नमी बढऩे पर इसका असर नजर आने लगता है। हमें यह भी पता है कि प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए जाने वाले किसी भी कदम का प्रतिरोध भी होता है। वायु प्रदूषण में योगदान करने वाला हर व्यक्ति कहता है कि समस्या हममें नहीं कहीं और है। तो हम क्या करें?
सबसे पहले, हमें स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना होगा। इस मसले पर किसी बहस की गुंजाइश नहीं है। हर कोई कहता है कि पेइचिंग ने अपनी हवा साफ कर ली। उन्होंने इसके लिए यही तरीका अपनाया। पेइचिंग के आम परिवारों को और फैक्टरियों सेे कहा गया कि वे कोयले की जगह स्वच्छ प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल करें। हमें यही करने की जरूरत है। केवल दिल्ली नहीं बल्कि आसपास के जितने भी राज्य खराब मौसम और प्रदूषण से परेशान हैं, वहां यह कदम उठाया जाना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि इस क्षेत्र में गैस को लेकर दूसरा बदलाव लाया जाए। पहली बार वाहनों के लिए सीएनजी व्यवस्था लागू की गई थी, अब उद्योगों, बिजली संयंत्रों और घरों में ऐसा करना होगा। तथ्य तो यह है कि गैस की कीमत उस कोयले से अधिक होती है जिसका इस्तेमाल इस क्षेत्र में अत्यधिक प्रदूषणकारी पेट कोक के स्थान पर किया जाता है। उद्योग जगत का कहना है कि यदि वह गैस को अपनाती है तो वह इस क्षेत्र के बाहर के लोगों के साथ प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाएगी। उन्हें बंद करना पड़ेगा। तो आखिर काम कैसे चलेगा? या तो गैस कीमत कम करनी होगी या फिर कीमतों से परे इस उद्योग को बंद होने देना होगा। आगे की राह मुश्किल है। कोई आसान विकल्प नहीं है।
दूसरा हल है उद्योग-धंधों और घरों को व्यक्तिगत बिजली उत्पादन (डीजल जेनरेटर) से बिजली पर स्थानांतरित करना। तीसरा उपाय यह सुनिश्चित करना है कि बिजली का उत्पादन यथासंभव स्वच्छ हो। इस क्षेत्र के बड़े हिस्से में (आप आंकड़ों के बारे में चकित होंगे) अभी भी डीजल से चलने वाले जेनरेटरों का इस्तेमाल जमकर होता है। इसके प्रयोग में अपार्टमेंट्स में रहने वाला समृद्घ तबका भी पीछे नहीं है। इस स्थिति में जल्दी बदलाव लाना होगा। यह न तो आसान है और न ही सहज लेकिन स्वच्छ हवा हासिल करने के लिए यह आवश्यक है।
हमें स्वच्छ बिजली संयंत्रों की भी जरूरत होगी। दिल्ली ने पहले ही अपने कोयला आधारित बिजली संयंत्र बंद कर दिए हैं। हमें अब यह सुनिश्चित करना होगा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी उत्पादन संयंत्र वर्ष 2015 के सख्त उत्सर्जन मानकों का पालन करते हुए गैस का इस्तेमाल करें या बंद कर दिए जाएं। ऐसा करना आसान नहीं है। इसके अलावा वाहनों की बिक्री को भी सीमित करना होगा। उन्हें अधिक स्वच्छ भी बनाना होगा। हमें यह सब पता है लेकिन इस दिशा में कुछ खास नहीं किया जा रहा है।
फसल अवशेष जलाने की समस्या का भी हल तलाश करना होगा। आदर्श हल तो यही होगा कि फसल अवशेष खासकर धान के अवशेष के लिए बाजार मुहैया कराया जाए ताकि किसान उसे जलाने के बजाय बेचें। एक विकल्प यह भी है कि उन्हें ऐसी मशीन मुहैया कराई जाएं जिसकी मदद से वे उन अवशेष को दोबारा मिट्टी में मिला सकें। हल मौजूद हैं केवल उन्हें अपनाने के तरीके तलाश करने हैं। इन सब बातों के अलावा हमें प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों पर भी अंकुश लगाना होगा। इसमें कूड़ा जलाने से लेकर कचरा प्रबंधन तक तमाम चीजें शामिल हैं। इसके लिए प्रवर्तन और व्यवस्थित सुधार की आवश्यकता होगी। हमें कूड़े को अलग-अलग करके उसका प्रबंधन करना होगा। यह बात हम सभी जानते हैं।
सबसे अहम बात, हमें इन सभी मोर्चों पर ठोस और वर्ष लंबी कार्य योजना के साथ काम करना होगा। अभी तक प्रदूषण के बढऩे पर हुए हो हल्ले के बाद हम अगले जाड़े तक शांत हो जाते हैं। ऐसे काम नहीं चलेगा। दिल्ली की हवा को साफ करना सालाना कवायद नहीं बननी चाहिए। इसलिए क्योंकि इसका रिश्ता हमारे स्वास्थ्य और सांस लेने के हमारे अधिकार से है।
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