बिजली की खपत और आपूर्ति 5 साल के निचले स्तर पर | |
श्रेया जय / नई दिल्ली 12 02, 2019 | | | | |
► आपूर्ति के लिए पूर्व भुगतान व्यवस्था प्रभावित कर रही बिजली की मांग
► आर्थिक मंदी की वजह से भुगतान करने वाले उनके औद्योगिक ग्राहक ज्यादा बिजली नहीं खरीद रहे
► जून को छोड़ दें तो चालू कैलेंडर में साल के 9 महीनों के दौरान मांग में आई 2.75 से 14.3 प्रतिशत तक की गिरावट
► जून और जुलाई को छोड़कर हर महीने बिजली की मांग पिछले 5 साल के समान महीने की तुलना में कम
भारत में ऊर्जा की खपत और बिजली आपूर्ति की वृद्धि 5 साल के निचले स्तर पर है। दरअसल जून को छोड़कर इस साल के हर महीने में मांग गिरी है। सरकार ने मौसम और अक्षय ऊर्जा का हवाला देते हुए मांग में कमी को हल्के में लेने की कवायद की है, वहीं देश में बिजली उत्पादन और आपूर्ति की गणित बिगड़ी है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों से बिजली खरीद का भुगतान पहले करने को कहने के बाद खासकर बिजली की मांग ज्यादा घटी है। जून को छोड़ दें तो चालू कैलेंडर साल के 9 महीनों के दौरान मांग में 2.75 से 14.3 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने पिछले 5 साल के बिजली उत्पादन और आपूर्ति के मासिक और सालाना आंकड़े देखे हैं। इससे पता चलता है कि परिकल्पित मांग के मुताबिक राज्य बिजली नहीं खरीद रहे हैं। चालू साल के जून और जुलाई महीने को छोड़ दें तो हर महीने में बिजली की मांग पिछले 5 साल के समान महीने की तुलना में कम रही है।
इस सिलसिले में भेजी गई प्रश्नावली का बिजली मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया है। सितंबर और अक्टूबर महीने में घटी हुई मांग की बड़ी वजह यह हो सकती है कि इस साल मॉनसून की अवधि आगे बढ़ गई थी। लेकिन इस साल जनवरी से ही सरकार के अनुमान की तुलना में वास्तविक मांग कम है। पिछले 5 साल में सभी महीनों के लिए योजनाबद्ध बिजली उत्पादन की तुलना में मांग किसी भी महीने में कभी गिरी नहीं है।
योजनाबद्ध बिजली उत्पादन का अनुमान साल के लिए लगाया जाता है। यह आर्थिक वृद्धि के अनुमान पर निर्भर होता है। वहीं वास्तविक मांग बिजली की आपूर्ति या बिजली कंपनियों द्वारा उत्पादकों से बिजली खरीद से पता चलती है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यों की बिजली खरीद मांग के मुताबिक नहीं है, बल्कि वे उतनी ही बिजली खरीद रहे हैं, जिसका उत्पादन कंपनियों को पहले भुगतान कर सकते हैं। योजना की तुलना में कम खरीद से यह भी संकेत मिलता है कि ग्राहकोंं को कम आपूर्ति हो रही है और बिजली कटौती हो रही है।
भारत में शहर व परिवार के स्तर के बिजली आपूर्ति व कटौती के आंकड़े नहीं हैं। बिजली मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया उर्जामित्र पोर्टल यह काम करता है, जिसमें दिखाया गया है कि देश में औसतन 99 प्रतिशत बिजली उपलब्धता है। इसमें जिलावार कटौती और परिवारोंं को औसत आपूर्ति के आंकड़े नहीं दिए गए हैं।
केंद्र सरकार ने जून में घोषणा की थी कि बिजली वितरण कंपनियों के लिए बिजली उत्पादकों को बैंकों द्वारा जारी लेटर आफ क्रेडिट (एलसी) के माध्यम से भुगतान करना होगा। उसके अगले महीने में बिजली की मांग 0.33 प्रतिशत गिर गई और यह पिछले साल की तुलना में 6.46 प्रतिशत कम हो गया जब नई सरकार ने अगस्त में कार्यभार संभाला था। अक्टूबर में यह अंतर बढ़कर 14.35 प्रतिशत हो गया। उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा कि इसके अलावा कोई भी बैंक उदय योजना में हाथ जलाने के बाद डिस्कॉम के एलसी के वित्तपोषण को तैयार नहीं हुआ।
आर्थिक संकट से जूझ रही राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां समस्या में हैं। आर्थिक मंदी की वजह से भुगतान करने वाले उनके औद्योगिक ग्राहक ज्यादा बिजली नहीं खरीद रहे हैं और उन्हें ग्रामीण इलाकों में ज्यादा आपूर्ति करनी पड़ रही है, जहां सब्सिडी पाने वाले उपभोक्ता हैं और हाल ही मेंं वे सौभाग्य योजना के माध्यम से जुड़े हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड ने हाल ही में खबर दी थी कि प्रमुख औद्योगिक राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में बिजली की मांग घटी है। इस क्षेत्र के एक अधिकारी ने कहा, 'हमें खबरें मिल रही हैं कि फैक्टरियां एक दिन से एक सप्ताह के लिए बंद हो रही हैं, काम के घंटे कम किए जा रहे हैं। इसकी वजह से बिजली की मांग पर असर पड़ा है। बड़े खरीदार नहीं हैं इसकी वजह से डिस्कॉम का राजस्व प्रभावित हुआ है।'
सरकार द्वारा देश के सभी गांवों (99.9 प्रतिशत) के विद्युतीकरण की घोषणा के एक महीने के भीतर यह झटका लगा है। लेकिन बिजली का दाम बढऩे के बावजूद इससे वितरण कंपनियों का खर्च बढ़ गया है। अब उनके ऊपर पहले भुगतान की तलवार लटक रही है, ऐसे में डिस्कॉम अपनी बिजली खरीद घटा रही हैं।
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