तमिलनाडु में बनेगा नया रॉकेट लॉन्च पैड | टी ई नरसिम्हन / November 28, 2019 | | | | |
केंद्र सरकार तमिलनाडु में एक नया रॉकेट लॉन्च पैड स्थापित करने की योजना बना रही है। वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पास आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में दो लॉन्च पैड हैं। भारत से घरेलू और विदेशी उपग्रहों के लॉन्च की बढ़ती संख्या को देखते हुए नया लॉन्च पैड बनाया जा रहा है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास (डोनेर), एमओएस पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, 'सरकार ने तमिलनाडु राज्य में कुलसेकरपत्तनम के पास रॉकेट लॉन्चिंग पैड स्थापित करने का प्रस्ताव तैयार किया है।' हालांकि मंत्री ने इसके उपयोग के बारे में विस्तार से नहीं बताया और अभी इसरो अधिकारियों से बात नहीं की जा सकी लेकिन नए लॉन्च पैड का उपयोग भारत के भविष्य के रॉकेट जैसे यूनिफाइड मॉड्यूलर लॉन्च व्हीकल (यूएमएलवी), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (जीएसएलवी मार्क-3) और अवतार रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (अवतार आरएलवी) के साथ साथ छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान तथा पीएसएलवी रॉकेट के प्रक्षेपण के लिए किया जाएगा।
इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले रॉकेटों की संख्या इस वर्ष 30 पार कर गई है। वर्ष 2018 में अंतरिक्ष एजेंसी ने 17 मिशन लॉन्च किए थे। वर्तमान में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा का एसएचएआर स्पेसपोर्ट लांचरों के एकीकरण का कार्य करता है। इसमें दो ऑपरेशनल लॉन्च पैड हैं, जहां से सभी जीएसएलवी और पीएसएलवी उड़ानें होती हैं। इसरो ने वर्कहोर्स पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के साथ अपने अधिकांश उपग्रह लॉन्च किए हैं। अंतरिक्ष एजेंसी के मुताबिक, वर्ष 1994 से 2015 तक पीएसएलवी ने 84 उपग्रहों को लॉन्च किया है, जिनमें से 51 अंतरराष्ट्रीय उपग्रह थे। इसरो स्वदेशी हाई थ्रस्ट क्रायोजेनिक इंजन एवं स्टेज के साथ जीएसएलवी के अगले संस्करण जीएसएलवी मार्क-3 विकसित कर रहा है जो 4 टन वाले उपग्रह लॉन्च करने की क्षमता रखता है। अंतरिक्ष एजेंसी छोटे रॉकेटों को ले जाने के लिए छोटे रॉकेटों पर भी काम कर रही है। स्वदेशी रूप से विकसित स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) को वैज्ञानिकों द्वारा छोटे वाणिज्यिक उपग्रहों को पृथ्वी की सतह से 2,000 किमी से कम दूरी वाले लो-अर्थ ऑर्बिट में ले जाने के लिए डिजाइन किया जा रहा है।
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