कोलकाता का नया रिजर्व बैंक संग्रहालय | नम्रता आचार्य / November 28, 2019 | | | | |
क्या आप उसी हैंड आयरन प्रेस- प्रिंटिंग मशीन से अपना नाम छपवाना चाहते हैं जिससे 20वीं शताब्दी के पहले दशक में सरकारी बॉन्ड छपा करते थे? भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कोलकाता में खुले अपने नए संग्रहालय में आपको यह मौका दे रहा है। अंग्रेजों के जमाने में बनी 112 साल पुरानी यह मशीन 2016 तक इस्तेमाल में थी। मशीन का कामकाज संभालने वालों का कहना है कि यह अब भी अच्छी हालत में है और कई साल काम कर सकती है। इसलिए जब 2016 में बॉन्ड छापने के लिए मैन्युअल प्रिंटिंग की जगह कंप्यूटराइज्ड प्रिंटिंग की शुरुआत हुई तो इसे धूल चाटने के लिए गोदाम में रखने के बजाय संग्रहालय में रखने का विचार आया।
मार्च 2019 में जब आरबीआई ने देश में अपना दूसरा संग्रहालय कोलकाता में खोला। दस साल पहले इसकी परिकल्पना की गई थी और इसे उसी इमारत में खोला गया है जहां भारत में इसका पहला दफ्तर था। आरबीआई का सबसे बड़ा संग्रहालय मुंबई में है। लेकिन इसके उलट कोलकाता संग्रहालय में बहुत ज्यादा कलाकृतियां नहीं हैं। इसके बजाय इसमें देश के मौद्रिक इतिहास को दिखाने के लिए ऑगमेंटेड रिएलिटी और इंटरेक्टिव सिमुलेशन जैसी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया है। संग्रहालय के कर्मचारियों का कहना है कि इसी वजह से इस संग्रहालय को विकसित करने में दस साल लग गए। आरबीआई ने हाल में संग्रहालय में हेरिटेज वॉक की शुरुआत की जहां वरिष्ठ कर्मचारी लोगों को आरबीआई की समृद्घ विरासत से रूबरू कराते हैं। संग्रहालय की इमारत 8 काउंसिल हाउस कोलकाता के दशकों पुराने वाणिज्यिक केंद्र बीबीडी बाग के बीचोबीच स्थित है। बीबीडी बाग का खुद अपना समृद्घ इतिहास रहा है। इसी इमारत में 1935 में आरबीआई के पहले कार्यालय का उद्घाटन किया गया था। तब आरबीआई ने एलायंस बैंक ऑफ शिमला से यह इमारत पट्टे पर ली थी। बाद में एलायंस बैंक ऑफ शिमला बिक गया और आरबीआई ने इसे परिसमापकों से ले लिया। यह इमारत मशहूर बांग्ला इंजीनियर और उद्योगपति सर राजन मुखर्जी की फर्म ने बनाई थी। उन्हें विक्टोरिया मेमोरियल और हावड़ा ब्रिज बनाने का श्रेय भी जाता है।
कुछ साल पहले तक 8 काउंसिल हाउस में सोने की एक तिजोरी थी और कटे-फटे नोटों की काटछांट होती थी। आज यह प्राचीनता और आधुनिकता के संगम का प्रतीक है। उदाहरण के लिए संग्रहालय के बीचोबीच एक मूर्ति रखी गई है जो करेंसी नोटों के चलन में कमी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के उभार को दिखाती है। आरबीआई के इतिहास को पैनलों में दिखाया गया है जो घूमने वाली टेबल को चलाने पर रोशन होते हैं। इसकी शुरुआत 1934 में आरबीआई के शुुरू होने के साथ होती है और समापर 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी की घोषणा के साथ। इस दौरान 12 जनवरी, 1946 की नोटबंदी के इतिहास को देखा जा सकता है जब आजादी से पहले की सरकार ने 1,000 और 10,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था। इसमें एक आभासी पुस्तिका में आप हवा में हाथ से पन्ने पलटकर भारत में बैंकिंग के इतिहास को देख सकते हैं। एक गेमिंग स्टेशन में आप धन के समय और वेग को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर आभासी नियंत्रण कर सकते हैं।
सोने की मूल तिजोरी में दिखाया गया है कि इस बहुमूल्य धातु को कैसे संभालकर रखा जाता है। आप यह आभास कर सकते हैं कि सोने की 12.5 किलो की सिल्ली को उठाना कैसा लगता है। संग्रहालय में आप खुद को सोने की सिल्लियों में तौल सकते हैं। संग्रहालय में देश के मौद्रिक इतिहास को दिलचस्प अंदाज में दिखाया गया है। जैसे पाई को चलन से बाहर करने के लिए आरबीआई और सरकार के बीच कविता के रूप में हुए संदेशों का आदानप्रदान। पाई को 1942 में चलन से बाहर किया गया था। एक रुपये में 192 पाई होते थे। मुद्रास्फीति के दबाव और ढलाई की ऊंची लागत के कारण इसे बंद करना पड़ा। लेकिन दस साल बाद मिंट मास्टर ने इसे फिर शुरू करे का प्रस्ताव दिया। 1952 में तत्कालीन वित्त सचिव के जी अंबेगांवकर ने कविता के रूप में पाई का मृत्युलेख लिखा था। इसे संग्रहालय में दिखाया गया है। उन्होंने कविता के अंत में लिखा था कि क्या मंत्री इसमें अंतिम शब्द कहेंगे? तत्कालीन वित्त मंत्री सीडी देशमुख ने भी इसका जवाब कविता के रूप में दिया था। कोलकाता के आरबीआई संग्रहालय में कम ही कलाकृतियां हैं लेकिन यह सही मायनों में आपको भारत के मौद्रिक इतिहास की उतारचढ़ाव भरी यात्रा पर ले जाता है।
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