बढ़ती आशंकाएं | संपादकीय / November 28, 2019 | | | | |
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार के आर्थिक प्रदर्शन का बुधवार को जोरदार बचाव किया लेकिन केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर राजकोषीय स्थिति लगातार चिंताजनक होती जा रही है। अब तक समस्या का कोई हल भी नजर नहीं आ रहा है। गत सोमवार को संसद में पेश किए गए आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर माह में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 17 फीसदी की गिरावट आई। इसका अर्थ यह हुआ कि वित्त वर्ष की पहली छमाही में कर संग्रह की वृद्धि दर 4.7 फीसदी से नीचे आ गई जबकि पूरे वर्ष के दौरान इसके 17 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कॉर्पोरेशन कर दर में कटौती ने इस संग्रह को किस हद तक प्रभावित किया है। चूंकि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मोर्चे पर भी प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं है इसलिए केंद्र सरकार के राजस्व संग्रह में भारी कमी आ सकती है। ऐसे में यह भी स्पष्ट नहीं है कि केंद्र सरकार चालू वर्ष के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को कैसे पूरा करेगी। व्यय को कम करना या उसे टालना भी एक विकल्प है लेकिन इसका मध्यम अवधि में देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होगा।
इस बीच राज्यों की शिकायत है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति जारी करने में देर की जा रही है। जानकारी के मुताबिक इसकी बकाया राशि 20,000 करोड़ रुपये से अधिक है। यदि जीएसटी राजस्व की वृद्धि 14 फीसदी से कम रहती है तो केंद्र को राज्यों की क्षतिपूर्ति करनी होगी। इसका केंद्र की वित्तीय स्थिति पर बुरा असर होगा। जीएसटी के मोर्चे पर हर्जाने की गारंटी के बावजूद राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति खराब है क्योंकि मंदी ने उत्पाद और बिक्री कर संग्रह को भी प्रभावित किया है। परिणामस्वरूप एक अनुमान के मुताबिक राज्य सरकारों की उधारी चालू वर्ष में 20 फीसदी तक बढ़ सकती है। ऐसे में काफी संभावना है कि राज्यों का बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 2.6 फीसदी के बजट अनुमान से अधिक हो जाए। साथ ही राज्य सरकार के व्यय की गुणवत्ता में हाल के वर्षों में गिरावट आई है क्योंकि राजस्व व्यय बढ़ा है। ऐसा आंशिक तौर पर कृषि ऋण माफी जैसी लोकलुभावन योजनाओं के कारण हुआ। राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति बताती है कि निकट भविष्य में इस रुझान में कोई बदलाव नहीं आने वाला। राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर पडऩे वाले दबाव का असर व्यापक अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है क्योंकि सरकार के पूंजीगत व्यय के दो तिहाई के लिए राज्य उत्तरदायी होते हैं। चालू वर्ष में राज्यों के पूंजीगत व्यय में भी काफी गिरावट आने की बात देखी गई है। इसका असर निकट भविष्य में मांग और संभावित वृद्धि दोनों पर होगा। इतना ही नहीं उच्च सरकारी ऋण भी कम ब्याज दरों के पारेषण को प्रभावित करेगा। बल्कि सरकारी घाटे में अहम वृद्धि मौद्रिक समायोजन की संभावनाओं को वैसे भी सीमित करती है।
चूंकि निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था के स्थायी रूप से उच्च वृद्धि दर के मार्ग पर लौटने की संभावना नहीं है इसलिए सरकार को राजकोषीय स्थिति की व्यापक समीक्षा करनी चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर अगले कुछ सप्ताह में ऐसा किया जाना चाहिए और इसमें विशेषज्ञ समूह की सहायता ली जानी चाहिए। इससे न केवल सरकार की वित्तीय स्थिति का सही आकलन होगा बल्कि नीति निर्माताओं को राजकोषीय खाका नये सिरे से खींचने का अवसर भी मिलेगा। सरकार को जीएसटी व्यवस्था के तमाम लंबित मसलों को हल करना चाहिए ताकि कर संग्रह में सुधार हो सके। यह स्वीकार करना होगा कि व्यय को स्थगित रखने और जवाबदेहियों को सरकारी उपक्रमों पर टालने से समस्या हल नहीं होगी। इससे केवल भ्रम पैदा होगा और सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा।
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