क्लाइंट के धन का दुरुपयोग | संपादकीय / November 27, 2019 | | | | |
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कार्वी समूह के खिलाफ जो कार्रवाई की है उसे लेकर शेयर ब्रोकिंग उद्योग के भीतर कुछ आशंकाएं उत्पन्न हो गई हैं। बाजार नियामक ने कार्वी को नए क्लाइंट लेने से रोका है और तमाम ब्रोकरेज हाउस से कहा है कि वे क्लाइंट के खाते को ब्रोकर के निजी खाते से अलग करने के लिए कड़े नियम अपनाएं। इसका लक्ष्य है क्लाइंट की परिसंपत्तियों का दुरुपयोग रोकना। परंतु इससे कई ब्रोकर प्रभावित भी हो सकते हैं। प्रभावित पोजीशन को जबरन तेजी से समेटने के कारण बड़े नुकसान और डिफॉल्ट की स्थिति बन सकती है। कार्वी समूह पर यह आरोप है कि उसने अपने क्लाइंट के खातों से प्रतिभूति और फंड को समूह की अन्य कंपनियों में स्थानांतरित किया। इसमें उसकी खुद की रियल एस्टेट कंपनी भी शामिल है। इसके अलावा इन परिसंपत्तियों का इस्तेमाल शेयर बाजार की प्रतिबद्धताएं पूरी करने में किया गया। हो सकता है यह शुरुआत हो और तमाम अन्य ब्रोकरेज हाउस ऐसा कर रहे हों। तमाम रिटेल ब्रोकरेज में क्लाइंट की परिसंपत्ति का दुरुपयोग करना आम बात है। ऐसा करना आसान है: ब्रोकर क्लाइंट से पावर ऑफ अटॉर्नी लेकर काम करते हैं। इससे उन्हें डीमैट शेयरों का शीघ्र स्थानांतरण करने में मदद मिलती है। पावर ऑफ अटॉर्नी की व्यवस्था वैध भी है और अनिवार्य भी। अगर यह नहीं हुई तो हर लेनदेन के लिए संबंधित पक्षों को भौतिक दस्तावेजीकरण करना होगा। इससे प्रक्रिया धीमी और असुविधापूर्ण होगी।
परंतु पावर ऑफ अटॉर्नी की वजह से ब्रोकरेज हाउस को सीधे क्लाइंट का खाता चलाने की अनुमति मिल जाती है। इसमें कई तरह की जटिल परिस्थितियां निर्मित हो सकती हैं। उदाहरण के लिए एक ब्रोकरेज हाउस क्लाइंट की ओर से मार्जिन पर शेयर खरीद सकता है और बाद में इन शेयरों को वह बिन चुकता बता कर अपने खाते में शामिल कर सकता है। ऐसी खबरें भी आई हैं कि क्लाइंट द्वारा मार्जिन के रूप में लिए गए शेयरों का अपने कारोबार में इस्तेमाल किया गया हो। कार्वी मामला तथा ऐसे अन्य मामले तब प्रकाश में आए जब नैशनल स्टॉक एक्सचेंज में अंकेक्षण हुआ। आगे और जांच होने पर ही इस विषय में विस्तृत जानकारी मिल सकेगी। क्लाइंट के खाते का इस्तेमाल निश्चित रूप से अनैतिक है। इससे ब्रोकर को यह अवसर मिलता है कि वह उन परिसंपत्तियों के इस्तेमाल से कारोबार कर सके जो दरअसल उसकी नहीं हैं। इससे वह अनुमति से अधिक कारोबार करने में सक्षम होता है। कार्वी मामला और खराब हो सकता है अगर परिसंपत्तियों का इस्तेमाल समूह की अचल संपत्ति शाखा द्वारा जमानत के रूप में किया गया। क्लाइंट के खातों का इस्तेमाल आम है और इसकी लंबे समय से अनदेखी की जाती रही है। सेबी ने इस विषय में निर्देश जारी किए हैं और क्लाइंट खातों को ब्रोकर के खातों से अलग करने को कहा है।
नैतिक पहलू को छोड़ दें तो इसके कई खतरे भी हैं। यदि एक ब्रोकरेज जो क्लाइंट की परिसंपत्तियों का दुरुपयोग कर रहा है, वह घाटे में चला जाता है तो डिफॉल्ट कर सकता है। इससे ऐसी स्थिति निर्मित होती है जहां शायद अन्य ब्रोकर भी इसी प्रकार क्लाइंट की परिसंपत्तियों का दुरुपयोग कर रहे हों। ऐसे डिफॉल्ट निवेशकों को बहुत बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। ऐसा बड़े पैमाने पर हो सकता है। इसका असर बाजार पर होगा। नियामक को ऐसी स्थिति से निपटने में सावधानी बरतनी होगी। आशंका यह भी है कि कड़े कदम निवेशकों को भयभीत कर सकते हैं और वे बिकवाली कर सकते हैं। सेबी को शेयर बाजारों के साथ तालमेल के साथ निवेशकों को आश्वस्त करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हालात पूरी तरह व्यवस्थित हो जाएं। उसे गलती करने वाले ब्रोकरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन साथ ही सुनिश्चित करना चाहिए कि सामान्य निवेशक प्रभावित न हों।
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