मंदी के साथ बढ़ रहा है राज्यों का आर्थिक संकट | अभिषेक वाघमारे और दिलाशा सेठ / नई दिल्ली November 22, 2019 | | | | |
पांच राज्यों के वित्त मंत्रियों ने इस सप्ताह की शुरुआत में शिकायत की थी कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) मुआवजा जारी करने में देरी हो रही है। राज्यों ने इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताया था। राज्यों को 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा मिलने में देरी हो रही है।
इसकी वजह से राज्यों को नकदी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे प्रशासन और उनकी योजनाओं का वित्तपोषण व पूंजीगत व्यय होता है। और अगर हम आधिकारिक सरकारी खातों को देखें तो केंद्र जीएसटी राजस्व के मामले में ठीक स्थिति में हैं, वहीं राज्य अनिश्चितता की स्थिति में हैं।
बिनजेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि बिक्री कर व राज्य उत्पाद कर के संग्रह में वृद्धि दर सुस्त रही है। अगर अर्थव्यवस्था में मंदी लंबे समय तक बनी रहती है तो इनमें से 3 करों में से 2 खपत पर आधारित हैं और इससे राज्यों का वित्तीय संकट और गहरा होगा। कुल राष्ट्रीय पूंजीगत व्यय में दो तिहाई राज्यों के हिस्से होता है, ऐसे में इससे उत्पादक सार्वजनिक व्यय को नुकसान पहुंचेगा और नौकरियों के सृजन पर बुरा असर पड़ेगा।
यह ऐसे समय में हो रहा है जब आयकर में राज्यों की हिस्सेदारी पहले ही कॉर्पोरेट कर में कटौती की वजह से कम हो गई है और बंटवारा न होने वाले कर की हिस्सेदारी बढ़ी (उपकर और अधिभार के रूप में) है। इस साल पहले 6 महीनों में केंद्र सरकार ने मुआवजा उपकर 46,000 करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा वसूला वहीं वास्तव में राज्यों को 66,000 करोड़ रुपये जारी किए गए। वहीं संग्रह के मामले में जहां ऑटो सेल्स में गिरावट की वजह से संग्रह घटा है, कुल मिलाकर राज्यों का जीएसटी राजस्व का संकट बढ़ा है और इसकी वजह से उन्हें मुआवजा की राशि जारी किए जाने की जरूरत महसूस हो रही है। जीएसटी कानून के तहत अगर राज्यों का जीएसटी राजस्व कम से कम 14 प्रतिशत नहीं बढ़ता है तो केंद्र सरकार हर दो महीने बाद उस अंतर की भरपाई करेगी। इसमें पंजाब का उदाहरण अहम है।
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के मुताबिक केंद्र पर राज्य का 4,100 करोड़ रुपये बकाया है, जिसमें 2,100 करोड़ रुपये अगस्त और सितंबर का मुआवजा और पहले का बकाया शामिल है। बादल ने कहा, 'राज्य को स्वास्थ्य सेवाएं, जेल, शिक्षा, पुलिस व सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम चलाने होते हैं। इनके लिए इंतजार नहीं किया जा सकता। अगर मुआवजा नहीं आता है तो हमारा ओवरड्राफ्ट हो जाएगा।' बादल ने कहा कि इसके लिए विवाद समाधान व्यवस्था की जरूरत है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि हम वह पाने में सक्षम हैं, जो हमारा उचित अधिकार है।
मध्य प्रदेश की जीएसटी संग्रह में स्थिति खराब रही है और वहां सालाना लक्ष्य का महज 30 प्रतिशत संग्रह हुआ है। सीएजी की वेबसाइट से पता चलता है कि केरल, पंजाब, तमिलनाडु ने लक्ष्य का करीब 33 प्रतिशत कर संग्रह किया है।
राज्यों की वित्तीय चिंता यहीं खत्म नहीं होती है। जीएसटी में कमी की भरपाई का वक्त 2022 में खत्म हो रहा है और रिपोर्टों के मुताबिक 15वां वित्त आयोग कर बंटवारे खाते में से राज्यों की हिस्सेदारी कम कर देगा, जिसका संग्रह केंद्र सरकार करती है।
लेकिन इस समय राज्योंं की समस्या खपत में आई मंदी की वजह से है। हालांकि उन्हें मुआवजे के रूप में केंद्र द्वारा संग्रहित राशि से ज्यादा राशि मिलेगी, लेकिन राजस्व के अन्य स्रोत उम्मीद के मुताबिक नहीं हैं। एक बड़े उत्पादक राज्य के बिक्री कर आयुक्त ने कहा, 'मंदी की वजह से ऑटोमोबाइल से लेकर शराब तक की खपत प्रभावित हुई है। इसकी वजह से उत्पाद शुल्क, मूल्यवर्धित कर का संग्रह भी कम हुआ है।' गुजरात और कर्नाटक जैसे उत्पादक राज्यों के जीएसटी की वृद्धि दर बिहार जैसे खपत करने वाले राज्य की तुलना में सुस्त है।
राज्यों के वित्तमंत्रियों ने कहा कि इसकी वजह से राज्यों को ट्रेजरी बिल से और ज्यादा कम अवधि का कर्ज लेना पड़ रहा है, जो टिकाऊ नहीं है। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा, 'हम अनिश्चित समय तक उधारी नहीं ले सकते। हमें वित्तीय दायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम का पालन करना है, जब उधारी की बात आती है।' बंगाल ने आश्चर्यजनक रूप से सालाना लक्ष्य का 46 प्रतिशत 6 महीने में संग्रह किया है।
इन सभी वजहों पर विचार करते हुए राज्य और तीन साल तक मुआवजा अवधि बढ़ाने की मांग उठा रहे हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार और राजस्व संग्रह बढऩे को लेकर भरोसा कम होने की वजह उनका भरोसा घटा है।
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