डीएचएफएल: एसबीआई का आईबीसी पर जोर | हंसिनी कार्तिक / मुंबई November 19, 2019 | | | | |
ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) की धारा 227 को लागू होने के कुछ ही दिनों बाद बैंक संकटग्रस्त गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को दिए गए ऋण के समाधान के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं। इस मामले से सीधे तौर पर अवगत एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दीवान हाउसिंग फाइनैंस (डीएचएफएल) को सावधि ऋण के जरिये सबसे अधिक 9,000 करोड़ रुपये का कर्ज देने वाले भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) आईबीसी के जरिये समाधान पर गौर कर सकता है।
सूत्र ने बताया कि कि बैंक फिलहाल भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी अधिसूचना का इंतजार कर रहा है। समझा जाता है कि आरबीआई एनबीएफसी के लिए दिवालिया प्रक्रिया संबंधी दिशानिर्देश तैयार कर रहा है और उम्मीद की जा रही है कि वह जल्द ही अधिसूचना जारी करेगा। एसबीआई के नेतृत्व में बैंकों ने एक औपचारिक सूचना के तहत आरबीआई को प्रस्तुति दी है जिसमें कहा गया है कि मौजूदा समाधान प्रक्रिया को अधिक सफलता नहीं मिली है और इसलिए वे आईबीसी के तहत समाधान प्रक्रिया शुरू करना चाहते हैं।
उस व्यक्ति ने कहा, 'आरबीआई को यदि लगता है कि उसकी दलील वैध है तो वह आईबीसी के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरू कर सकता है।' आईअीसी की धारा 227 के तहत केवल उपयुक्त नियामक ही वित्तीय सेवा प्रदाताओं के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू कर सकता है। एसबीआई फिलहाल इस मुद्दे पर कानून फर्म साइरिल अमरचंद मंगलदास से सलाह ले रहा है। नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में मामला दायर करने के बाद आरबीआई एक प्रशासक नियुक्त करेगा और एक तीन सदस्यीय सलाहकार समिति भी गठित की जा सकती है जिसमें डीएचएफएल के प्रमुख लेनदार भी सदस्य के तौर पर शामिल होंगे।
इस बीच, लेनदार एनसीएलटी में डीएचएफएल के खिलाफ आईबीसी प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक नई समाधान योजना पर काम कर रहे हैं। इस योजना के तहत बैंक अपने ऋण के एक हिस्से को इक्विटी में तब्दील कर सकते हैं और लेनदार भी ताजा पूंजी निवेश के लिए निजी इक्विटी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए योजना बनाएंगे। बैंकों के पास 25 फीसदी हिस्सेदारी होगी जबकि निजी इक्विटी कंपनियों के पास 26 फीसदी हिस्सेदारी होगी। इस मामले से अवगत एक व्यक्ति ने कहा, 'कंपनी में 51 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने के बाद तमाम नियामकीय जरूरतों को पूरा करना होगा और इसलिए बैंकों ने अपने ऋण के एक हिस्से के बदले कंपनी हिस्सेदारी 25 फीसदी रखने का निर्णय लिया है।' उन्होंने कहा, 'इस दौरान बैंक 12 से 18 महीनों के दौरान परिवर्तन के साथ शेयरों की खरीदारी के लिए दिलचस्पी दिखाने वाले निवेशकों के साथ बैक-टु-बैक समझौता करेंगे। बैंकों के पास खुले बाजार में अपनी हिस्सेदारी बेचने का अधिकार भी होगा।' समझा जाता है कि एऑन कैपिटल और सेरबेरस कैपिटल जैसे पीई निवेशकों का इस मुद्दे पर बैंकों से बातचीत जारी है।
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