उत्तर प्रदेश पीएफ घोटाले का पेच | |
वीरेंद्र सिंह रावत / 11 19, 2019 | | | | |
► 99 फीसदी राशि डीएचएफएल, पीएनबी हाउसिंग और एलआईसी हाउसिंग में निवेश की गई
► केवल डीएचएफएल में 65 फीसदी राशि निवेश की गई
► डीएचएफएल पर 2,267 करोड़ रुपये का बकाया
पीएफ ट्रस्टों ने संकट से जूझ रही डीएचएफएल में 4,122 करोड़ रुपये निवेश करने के लिए कथित रूप से नियमों को बदला था। कुल निधि का 99 फीसदी हिस्सा तीन एनबीएफसी में निवेश किया गया
उत्तर प्रदेश बिजली निगम (यूपीपीसीएल) के कर्मचारियों की भविष्य निधि (पीएफ) की राशि के निवेश में कथित गड़बडिय़ों का मामला दिन ब दिन उलझता जा रहा है। इस सिलसिले में यूपीपीसीएल के तीन मौजूदा और पूर्व अधिकारियों सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। यूपी पावर सेक्टर एंप्लॉयीज ट्रस्ट और प्रोविडेंट फंड ट्रस्ट का दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन डीएचएफएल में 4,122 करोड़ रुपये का निवेश है लेकिन इसका एक हिस्सा यानी 1,855 करोड़ रुपये ही वापस आए हैं। शेष 2,267 करोड़ रुपये की वसूली होनी है। यह कथित अवैध निवेश हाल के मार्च 2017 से दिसंबर 2018 के बीच किस्तों में किया गया था। साथ ही दो गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पीएनबी हाउसिंग फाइनैंस और एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस में असुरक्षित सावधि जमा किया गया था।
दोनों ट्रस्टों के कुल निवेश का 65 फीसदी डीएचएफएल में ही किया गया था, दोनों ट्रस्टों के पास शुद्ध निधि करीब 6,300 करोड़ रुपये है। दोनों ट्रस्टों ने अपनी कुल निधि का करीब 99 फीसदी हिस्सा इन तीन एनबीएफसी में निवेश किया था। ट्रस्ट के अधिकारियों ने इस पर चुप्पी साध रखी है और जांच एजेंसियां उनके कार्यालयों को सील करने और दस्तावेजों को जब्त करने में लगी हैं। ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पहले भी इस तरह के निवेश के लिए नियमों में बदलाव किया गया होगा।
हाल में डीएचएफएल ने एक बयान में दावा किया कि बंबई उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित किया था जिसमें कंपनी पर किसी भी सुरक्षित या असुरक्षित लेनदेन के पुनर्भुगतान करने पर रोक लगाई गई है जिसमें सावधि जमा भी शामिल है। जांचकर्ता इस बात की जांच कर रहे हैं कि इस कथित घोटाले में कमीशन या रिश्वत तो नहीं ली गई थी। संभवत: यह पहला मौका है जब योगी आदित्यनाथ सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है।
भगोड़े सरगना इकबाल मेमन उर्फ इकबाल मिर्ची के धन शोधन गिरोह के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय डीएचएफएल की जांच कर रहा है। अब तक यूपीपीसीएल के पूर्व प्रबंध निदेशक को गिरफ्तार किया गया था। उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में ही मार्च 2017 में डीएचएफएल में संदिग्ध निवेश की शुरुआत हुई और यह दिसंबर 2018 तक जारी रहा। गिरफ्तार किए गए अन्य व्यक्तियों में यूपीपीसीएल के दो निलंबित कर्मचारी भी शामिल हैं। इनमें यूपीपीसीएल के प्रबंध निदेशक और ट्रस्टों के सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता और यूपीपीसीएल के निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी शामिल हैं। इसके अलावा गुप्ता के पुत्र अभिनव और उसके सहयोगी तथा संदिग्ध फर्जी ब्रोकरेज फर्म के मालिक आशीष चौधरी को भी गिरफ्तार किया गया है।
मामले के तूल पकडऩे के बाद राज्य के बिजली विभाग के मुख्य सचिव और यूपीपीसीएल के चेयरमैन आलोक कुमार तथा बिजली सचिव तथा यूपीपीसीएल की प्रबंध निदेशक अर्पणा यू को हटा दिया गया। विपक्ष के निशाने पर चल रहे बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा ने मुख्यमंत्री से आलोक कुमार की शिकायत की थी कि उन्होंने अवैध निवेश की अनुमति दी थी और इस बारे में उन्हें नहीं बताया था। इस साल 10 जुलाई को यूपीपीसीएल को डीएचएफएल में कथित फर्जी निवेश की शिकायत मिली थी, जिसके बाद आलोक कुमार ने इसकी जांच के लिए 12 जुलाई को एक समिति गठित की। समिति ने 29 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
लेकिन इस मामले के सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने गुप्ता और द्विवेदी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। इस मामले में 2 नवंबर को पुलिस में मामला दर्ज कराया गया। सीबीआई जांच की सिफारिश की गई और केंद्रीय जांच एजेंसी के जांच संभालने तक इसे उत्तर प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा के हवाले कर दिया गया।
प्राथमिकी के मुताबिक 8 मई, 2013 को ट्रस्टियों ने सार्वजनिक बैंकों की सावधि जमा योजनाओं में निवेश करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। 21 अप्रैल, 2014 को हुई एक अन्य बैठक में ट्रस्टियों ने ज्यादा रिटर्न देने वाले निवेश के दूसरे अवसरों को तलाशने का फैसला किया। अक्टूबर 2016 में ट्रस्टों ने सरकारी बैंकों की सावधि जमा योजनाओं में निवेश किया।
दोनों ट्रस्टों ने दिसंबर 2016 में पीएनबी हाउसिंग की सावधि जमा योजना में निवेश किया। गुप्ता ने इस निवेश मार्ग का प्रस्ताव रखा, द्विवेदी और मिश्रा ने इसे अनुमति दी। अलबत्ता, जब मार्च 2017 में विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा की सरकार बनी तो ट्रस्टों ने यूपीपीसीएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक की मंजूरी के बिना डीएचएफएल में निवेश करना शुरू कर दिया। ट्रस्टों की 24 मार्च, 2017 को हुई बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि ट्रस्ट्रियों के बोर्ड ने सरकार के 2 मार्च, 2015 की अधिसूचना के मुताबिक सार्वजनिक बैंकों में जमा के अलावा ज्यादा सुरक्षित और ज्यादा ब्याज दर वाली प्रतिभूतियों में निवेश प्रस्तावों पर विचार करने पर सहमति जतार्ई है। ट्रिपल ए रेटिंग वाली कंपनियों की प्रतिभूतियों में आगे और निवेश का फैसला सचिव (ट्रस्ट) द्वारा अलग-अलग मामलों के आधार पर यूपीपीसीएल ट्रस्टी के निदेशक (वित्त) की मंजूरी/सहमति से लिया जाएगा।
यूपीपीसीएल के एक पूर्व चेयरमैन ने कहा कि अगर पीएफ कोषों के निवेश का फैसला किया गया था और यह निवेश दो वर्षों तक जारी रहा तो दोनों ट्रस्टों का पदेन चेयरमैन होने के नाते यूपीपीसीएल अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। इस बीच बिजली कंपनी के कर्मचारियों ने 18 और 19 नवंबर को काम का बहिष्कार किया। वे आलोक कुमार की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं क्योंकि डीएचएफएल में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश उन्हें के दौर में किया गया। उत्तर प्रदेश पावर एंप्लॉयीज ज्वाइंट एक्शन कमेटी के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने राज्य सरकार से एक गजट अधिसूचना जारी कर करीब 45,000 कर्मचारियों की पीएफ राशि का भुगतान करने की मांग की है।
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