निजी निवेश बढ़ाने पर होगा जोर | |
अरूप रॉयचौधरी / नई दिल्ली 11 18, 2019 | | | | |
► आगामी बजट में कर छूट और व्यापक पहल से विकास को गति देने पर रहेगा ध्यान
► बजट बनाने की प्रक्रिया में राजनीतिक नेतृत्व की अहम भूमिका
► वित्त वर्ष 2020 के बजट के बाद कई प्रस्तावों को वापस लेने से सुधार की थमी गति
► दीर्घावधि पूंजी लाभ कर खत्म करने और लाभांश वितरण कर का बोझ कंपनियों से हटाने का हो सकता है प्रावधान
► वेतनभोगी वर्ग को आयकर में दी जा सकती है कुछ रियायत
► एमएसएमई क्षेत्र को भी कर में मिल सकती है कुछ छूट
चुनाव बाद पेश 2019-20 के बजट की आलोचना होने और कुछ प्रस्तावों को वापस लिए जाने के बाद 2020-21 के बजट बनाने की प्रक्रिया की कमान सरकार के राजनीतिक नेतृत्व ने काफी हद तक अपने हाथों में ले ली है। आगामी बजट निजी निवेश को बढ़ावा देने पर केंद्रित हो सकता है, जिस पर केंद्र में शीर्ष स्तर पर पहल की जा रही है। अधिकारियों ने कहा कि इस मकसद से प्रणाली में ज्यादा नकदी सुनिश्चित करने और निजी क्षेत्र में जोश भरने के लिए आगामी बजट में दीर्घावधि पूंजी लाभ कर को खत्म किया जा सकता है। साथ ही लाभांश वितरण कर के बोझ को कंपनियों से हटाकर शेयरधारकों पर डाला जा सकता है। इसके साथ वेतनभोगी वर्ग को आयकर में भी कुछ राहत दी जा सकती है और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों को करों में कुछ रियायत मिल सकती है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'पिछले बजट के बाद किसी वजह से यह पहल जोर नहीं पकड़ पाई क्योंकि सुपररिच कर को वापस ले लिया गया और विदेशी सॉवरिन बॉन्ड को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कंपनी अधिनियम में संशोधन कर कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व में चूक को आपराधिक बनाने के प्रावधान को भी वापस ले लिया गया।' उन्होंने कहा कि इससे आर्थिक कुप्रबंधन और नरमी को भी बढ़ावा मिला। नरेंद्र मोदी सरकार फिर से सुधारों को गति देने चाहती है और 2020-21 के बजट में कई सुधारों की घोषणा की जा सकती है। इसके साथ ही 2024-25 तक भारत को 5 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था बनाने के प्रधानमंत्री के स्वप्न को भी साकार करने की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं।
अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार में इसे लेकर आम राय है कि जब तक कि निजी निवेश में तेजी नहीं आती है, तब तक सार्वजनिक निवेश और केंद्र व राज्य सरकार की कंपनियों द्वारा पूंजी व्यय की प्रतिबद्धताओं से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा नहीं मिल सकता है। एक अन्य अधिकारी ने कहा, 'नरमी से उबारने के लिए निजी निवेश में वृद्धि अहम है। पिछले कुछ महीनों में इस दिशा में कदम उठाए गए हैं और बजट में कई और उपाय किए जाएंगे।'
अधिकारी ने कहा, 'पिछले पांच वर्षों में कल्याणकारी और सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं ज्यादा लक्षित और प्रभावी थीं। अगले पांच साल में विकास और निजी क्षेत्र पर जोर होगा।' दो अधिकारियों ने कहा कि आगामी बजट में प्रस्तावित कर उपायों पर सरकार के शीर्ष स्तर पर बैठे लोग विशेष रुचि दिखा रहे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट कर में कटौती की घोषणा कर इसे बढ़ावा दिया।
कारोबारी जगत में नरमी को थामने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सितंबर में कॉरपोरेट कर में कटौती का ऐलान किया था जो 1 अप्रैल से प्रभावी है। किसी तरह की रियायत नहीं लेने वाली कंपनियों के लिए इसे घटाकर 30 फीसदी से 22 फीसदी कर दिया गया और नई विनिर्माण कंपनियों के लिए इसे 25 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया गया। कॉरपोरेट कर में कटौती के अलावा सीतारमण ने मांग को बढ़ावा देने के लिए एमएसएमई, आवास, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और अन्य क्षेत्रों के लिए कई घोषणाएं की हैं। वित्त मंत्री ने विभिन्न शहरों में कर अधिकारियों, उद्योग और एमएसएमई के प्रतिनिधियों और अन्य शेयरधारकों से बातचीत की।
अधिकारियों ने कहा कि उन्हें बजट पूर्व बैठक से पहले व्यापक प्रतिक्रिया मिली है और इनमें से कुछ को बजट में शामिल किया जा सकता है। अप्रैल-जून तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5 फीसदी रही, जो 2013 के बाद सबसे कम है। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 8 फीसदी रही जो 2002-03 की तीसरी तिमाही के बाद सबसे कम है। जुलाई-सितंबर तिमाही में भी जीडीपी के आंकड़े 4 फीसदी के आसपास रहने के संकेत हैं। 2019-20 के लिए विभिन्न संस्थानों ने 5 से 6 फीसदी जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया है।
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