कम बजट स्वास्थ्य योजना की राह में बाधा | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली November 18, 2019 | | | | |
नीति आयोग की ओर से आज जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर कम खर्च किया जाना (जीडीपी का 0.9 से 1.1 प्रतिशत) स्वास्थ्य के क्षेत्र में सब्सिडाइज्ड रिस्क पूलिंग मॉडल की राह में सबसे बड़ी बाधा है। खासकर उनके लिए समस्या है, जो गरीब और बीमार हैं और उन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, जिसे आयुष्मान भारत के नाम से जाना जाता है, यह स्वास्थ्य क्षेत्र में सब्सिडाइज्ड रिस्क पूलिंग मॉडल का एक उदाहरण है। 'हेल्थ सिस्टम फार ए न्यू इंडिया : बिल्डिंग ब्लॉक्स- पोटैंशियल पाथवे टु रिफॉम्र्स' नाम से नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने रिपोर्ट जारी की। इस दौरान बिल गेट्स भी उपस्थित रहे। इसमें कहा गया है कि बेहतर साक्ष्य आधारित फैसला वक्त की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों के स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च तीन गुने से ज्यादा किया जाना चाहिए, अगर सिर्फ गरीबों को लक्षित करके योजना बनती है। स्वास्थ्य पर भारत का सार्वजनिक खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 0.9 से 1.1 प्रतिशत है। वहीं चीन में जीडीपी का 3.2 प्रतिशत, चिही में 4.9 प्रतिशत और जर्मनी में 9.4 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है। स्वास्थ्य सेवाओं के वित्तपोषण के लिए बहुत सीमित राजकोषीय जगह है और सार्वजनिक कोष का गरीबों के लिए लक्षित इस्तेमाल की कमी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आउट आफ पॉकेट (ओओपी) व्यय, जो स्वास्थ्य क्षेत्र का व्यय है, जिसे बीमा में शामिल नहीं किया जाता है, अगले एक दशक तक ज्यादा बने रहने की संभावना है, जब तक कि रिस्क पूलिंग मॉडल में उल्लेखनीय सुधार नहीं कर लिया जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में एक व्यक्ति द्वारा स्वास्थ्य पर किए गए कुल खर्च का करीब 62 प्रतिशत ओओपी पर खर्च होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिस्क पूलिंग मॉडल में बदलाव किए जाने की जरूरत है। पीएमजेएवाई को बेहतर शुरुआत बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना का लक्ष्य बेहतर है और इसे उचित तरीके से बढ़ाए जाने की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह विरासत है, जो आज भी लागू होने की शुरुआती अवस्था में है। बहरहाल सब्सिडाइज्ड रिस्क पूलिंग वृद्धि को गति देने, सार्वजनिक क्षेत्र में मांग व आपूर्ति के वित्तपोषण के लिए बुनियाद हो सकता है। इसके माध्यम से निजी बीमा विकास सही दिशा में जा सकता है।' रिपोर्ट में कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएशआईसी) अस्पतालों की इस आधार पर आलोचन ाकी गई है कि इनका विस्तार या आपूर्ति, ईएसआईएस लाभार्थियों के लिए स्वास्थ्य सेवा का इस्तेमाल बहुत कम है। यह दुनिया के सामाजिक बीमाकर्ताओं की तुलना में भारत में न्यूतनम है।
नीति आयोग ने कहा है, 'खराब प्रदर्शन न सिर्फ इसके सदस्यों को हतोत्साहित करता है, बल्कि यह देश के श्रम बाजार के योगदान को प्रभावित कर सकता है।' रिपोर्ट में केंद्र की पीएम-जेएवाई, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई), राज्य स्वाथ्य बीम योजना और साथ ही ईएसआईसी के बीच तालमेल बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया गया है, जिससे जरूरतमंदों व गरीबों को लाभ हो सके। रिपोर्ट में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए 6 बिंदु के दिशानिर्देश दिए गए हैं, जिसमें स्वास्थ्य व्यवस्था के वितत्तपोषण के ढांचे में बदलाव, आउट आफ पॉकेट व्यय कम करना, मजबूत रणनीतिक खरीद क्षमता, जोखिम पूल और स्वास्थ्य सेवा प्रावधान के अलगाव को दूर करना शामिल हैं।
|