एक तरफ बैंकों में जमा पर ब्याज दर घटती जा रही है, दूसरी ओर पीएमसी बैंक जैसों के ढहने की खबरें आती हैं। शेयर बाजारों में जारी अनिश्चितता के कारण म्युचुअल फंड भी बेहतर रिटर्न नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में अपनी बचत को लेकर चिंतित लोग कम रिटर्न के बावजूद लघु बचत योजनाओं पर ज्यादा ऐतबार कर रहे हैं। हालांकि बचत योजनाओं की दरें हर तीन महीने में बदलती हैं। पर सितंबर तिमाही में थोड़ी से घटने के बाद सरकार ने इस साल अक्टूबर से दिसंबर तक की तिमाही के लिए इन दरों में कोई कटौती नहीं की है। मौजूदा आर्थिक हालात में इन योजनाओं के निवेशकों के लिए यह बहुत बड़ी राहत है। सॉवरिन गारंटी के कारण लघु बचत योजनाएं आम निवेशक के लिए सुरक्षित विकल्प के तौर पर उभरी हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड ने कुछ समय पहले खबर छापी थी कि लघु बचत योजनाओं में इस साल अप्रैल और जुलाई के बीच निवेश 37 प्रतिशत बढ़ा है। इसकी वजह यह कि मौजूदा हालात में निवेशक प्रतिफल की गारंटी वाली योजनाओं में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इक्विटी म्युचुअल फंडों के प्रतिफल में गिरावट के कारण इन योजनाओं में प्रतिफल अब ज्यादा आकर्षक हो गया है। फिर भी, निवेशकों को दीर्घावधि नजरिया अपनाना चाहिए और कुछ अतिरिक्त सावधानियों के साथ ही इन योजनाओं में दांव लगाना चाहिए। निवेश अवधि का रखें ध्यान लघु बचत योजनाएं अवधि के हिसाब से प्रतिफल मुहैया कराती हैं। आप एक, दो, तीन और पांच साल के लिए डाकघर की सावधि जमाओं में निवेश कर सकते हैं। राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) पांच साल के लिए और किसान विकास पत्र (केवीपी) 113 महीने के लिए जारी किए जाते हैं। सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) की अवधि 15 वर्ष की है और सुकन्या समृद्घि योजना (एसएसवाई) में लड़की की उम्र 18 साल हो जाने के बाद ही पहली निकासी की अनुमति है। जो निवेशक एक से तीन वर्ष की संक्षिप्त अवधि चाहते हैं, वे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सावधि जमाओं पर विचार कर सकते हैं। ये जमाएं बेहतर प्रतिफल दर मुहैया कराती हैं और इनमें जोखिम भी कम होता है। जिनको पांच साल से ज्यादा की अवधि के लिए निवेश करना है, उनको इक्विटी और निश्चित आय वाली योजनाओं में निवेश करना चाहिए। इनमें छोटी बचत योजनाएं भी शामिल हैं। जब निवेश अवधि पांच साल से अधिक हो तो आपके पोर्टफोलियो का ज्यादा हिस्सा इक्विटी या शेयरों सेे जुड़ा होना चाहिए। लंबी अवधि के दौरान इक्विटी से जुड़े उतार-चढ़ाव का असर कम हो जाता है और प्रतिफल में सुधार आता है। जर्मिनेट वेल्थ सॉल्युशंस के संस्थापक एवं मैनेजिंग पार्टनर संतोष जोसफ कहते हैं, 'जब आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हों तो मुद्रास्फीति से ज्यादा रिटर्न देने वाली योजनाओं को अपनाना चाहिए जो अच्छा प्रतिफल देती हों। निवेशक के जोखिम प्रोफाइल के आधार पर पोर्टफोलियो में इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंडों के साथ-साथ लघु बचत योजनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। यहां तक कि 20 साल बाद के लक्ष्य के हिसाब से बचत करने वाले कई निवेशक इक्विटी में अपना पूरा यानी 100 प्रतिशत पैसा नहीं लगाना चाहते। वे इक्विटी और डेट के लिए 80:20 या 75:25 आवंटन अनुपात को ज्यादा ठीक समझते हैं। निवेशक ऐसे पोर्टफोलियो में निश्चित आय के हिस्से के लिए पीपीएफ जैसी लघु बचत योजनाओं को अपना सकते हैं।' अपनी नकदी जरूरतों का रखें ध्यान छोटी बचत योजनाएं तुरंत नकदी के पैमाने अव्वल नहीं मानी जातीं। इनकी तुलना में शेयर और म्युचुअल फंड जैसे विकल्प ऐसे होते हैं जिनको तुरंत बेच पैसा पाया जा सकता है। हालांकि डाकघर की योजनाओं में आंशिक निकासी के लिए कुछ प्रावधान होते हैं। उदाहरण के लिए, पीपीएफ में आप पांच साल बाद रकम निकाल सकते हैं। वैलिडस वेल्थ में मुख्य निवेश अधिकारी राजेश चेरुवु कहते हैं, 'लघु बचत योजनाएं काफी हद तक ऐसी होती हैं जिनसे तुरंत नकदी नहीं मिल सकता। इन योजनाओं में निवेश तभी करें जब आपको इनकी लॉक-इन अवधि से बहुत दिक्कत नहीं हो।' दरों में फेरबदल से रहें सतर्क श्यामला गोपीनाथ समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार हर तिमाही में लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों की समीक्षा करती है। यदि दरों में कमी की जाती है तो पीपीएफ और एसएसवाई के मामले में मौजूदा और आगामी निवेश पर देय दर कम हो जाती है। पिछले कु सालों में ब्याज दरों में कमी आई है। इस साल 28 जून को सरकार ने सभी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 10 आधार अंक तक की कटौती की थी। जोसफ कहते हैं, 'दरों में कमी इन योजनाओं में सबसे बड़ा जोखिम है। इस समय पीपीएफ की दर 7.90 प्रतिशत है जो कई दशकों का निचला स्तर है। इसमें और कमी आ सकती है।' जहां सरकार पर निवेशकों की उम्मीदों का खयाल रखने का दबाव है, वहीं वह ऐसे परिवेश में ब्याज दरें ऊंची नहीं रख सकती जब दुनिया भर में इनमें गिरावट आ रही हो, क्योंकि ऐसा करने से उसकी वित्तीय स्थिति पर असर पड़ेगा। कुछ योजनाएं कर-मुक्त हैं ज्यादातर लघु बचत योजनाओं से प्राप्त ब्याज की आय को प्राप्तकर्ता की आय में जोड़ा जाता है और इन पर मामूली दर से कर लगता है। पीपीएफ और एसएसवाई के मामले में ऐसा नहीं है। इन पर ब्याज आय कर-मुक्त है। कर प्रावधानों के कारण 30 प्रतिशत कर दायरे में आने वाले कई लोग पीपीएफ को छोड़कर दूसरी छोटी बचत योजनाओं में निवेश करने से परहेज करते हैं। लेकिन इनमें से कई योजनाएं कम कर दायरे वाले लोगों के लिए काफी मुनासिब हैं। कर लाभ उठाएं आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत इनमें 1.5 लाख रुपये तक की कटौती की अनुमति है। पीपीएफ, एसएसवाई सभी धारा 80सी के लाभ के दायरे में शामिल हैं। एकमात्र समस्या यह है कि क्या निवेशक इस लाभ का वास्तविक फायदा उठाने में सक्षम होंगे, क्योंकि कई अन्य योजनाएं भी उपलब्ध हैं। किसे करना चाहिए निवेश? पीपीएफ ईईई (एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट-एक्जेम्प्ट) कर श्रेणी में आती है और लघु छोटी बचत योजनाओं में एक अच्छा विकल्प है। सेवानिवृत्ति, बच्चों की शिक्षा और शादी जैसे लक्ष्यों के लिए लंबी अवधि का पोर्टफोलियो तैयार करने वाले लोग इसे अपने निश्चित आय आय आवंटन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। आकर्षक प्रतिफल मुहैया कराने वाली अन्य दो योजनाएं खास उपयोगकर्ताओं पर केंद्रित हैं। वरिष्ठ नागरिक बचत योजना का प्रतिफल 8.6 प्रतिशत है और इसका इस्तेमाल सेवानिवृत्ति के बाद नियमित आय के लिए किया जा सकता है। याद रखें कि ब्याज हर तिमाही में चुकाया जाता है। 8.4 प्रतिशत के सालाना प्रतिफल के साथ एसएसवाई उन लोगों के लिए बेहतर विकल्प है जो अपनी बेटी की शिक्षा या शादी के लिए बचत करना चाहते हैं। जहां तक अन्य योजनाओं का सवाल है तो निवेश का निर्णय लेने से पहले दूसरे निश्चित आय विकल्पों (बैंक सावधि जमा और डेट फंड आदि) के साथ कर-बाद प्रतिफल की तुलना करें। कुल मिलाकर, लघु बचत योजनाओं में निवेश अपने जोखिम प्रोफाइल, निवेश की अवधि और लक्ष्य को ध्यान में रखकर करें। जोसफ कहते हैं, 'डेट में निवेश की संभावना तलाश रहे और निश्चित अवधि के लिए रकम फंसाने वाले निवेशक इन योजनाओं पर विचार कर सकते हैं।' वह कहते हैं कि लेकिन सारी ही राशि एक ही जगह नहीं डाल देनी चाहिए। इनमें रिटर्न कम ज्यादा होता रह सकता है और बहुत संभव है कि लंबी अवधि में इनमें से कई मुद्रास्फीति को थोड़ी सी ही मात दे पाएं।
