मशीनों से खुश नहीं हैं किसान | संजीव मुखर्जी / November 12, 2019 | | | | |
पंजाब में पटियाला जिले के नाभा क्षेत्र के नारायणगढ़ गांव के किसान मुख्त्यार सिंह के पास एक हैप्पी सीडर मशीन है जो उनके 40 एकड़ के खेत में बने गैराज में पड़ी है। ट्रैक्टर से चलनेे वाली इस मशीन से धान के फसल की कटाई होती है और पराली को उठाया जाता है। इस तरह पराली को जलाने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन इस साल जब उन्होंने अपने खेत में धान की फसल काटी तो मशीन का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला किया। उन्होंने कहा, 'यह मशीन 1,80,000 रुपये में खरीदी थी और मैंने पिछले साल इसका इस्तेमाल किया था। लेकिन इस बार मैंने इसे एक इंच भी नहीं खिसकाया है।'
हैप्पी सीडर न केवल धान की पराली काटती है बल्कि साथ-साथ मिट्टी को समतल भी करती है और गेहूं भी बोती है। इसके बावजूद पंजाब के किसान इसका इस्तेमाल करने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि इस मशीन के इस्तेमाल से गेहूं के उत्पादन में गिरावट आती है। सिंह ने कहा, 'हैप्पी सीडर का इस्तेमाल करने के बाद मुझे प्रति एकड़ औसतन 5 क्विंटल गेहूं का नुकसान हुआ।' कृषि उपकरण बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि इस बात को साबित करने का कोई प्रमाण नहीं है कि हैप्पी सीडर के इस्तेमाल से गेहूं के उत्पादन में कमी आती है। ये मशीनें फसल अवशेष को ठिकाने लगाने में कारगर हैं। लेकिन किसान इससे सहमत नहीं हैं।
सिंह ने कहा, 'हैप्पी सीडर पराली को पूरी तरह खेत से खत्म नहीं करता है। इसके बजाय यह गेहूं के बीज के ऊपर एक परत बता देता है और हमारा अनुभव बताता है कि इससे गेहूं पर कीड़ा लगने का खतरा बढ़ जाता है।' उन्होंने दावा किया कि पराली की परत के कारण उवर्रक अच्छी तरह से मिट्टी में मिल नहीं पाता है जिससे पैदावार में गिरावट आती है। मशीन की ऊंची कीमत भी बड़ी बाधा है। सिंह का कहना है कि रोटावेटर या रोटरी टिलर एक बेहतर विकल्प है। यह मशीन पराली को काटती है, जमीन को खेती के लिए तैयार करती है और गेहूं के बीजों को उवर्रक के साथ मिट्टी में मिलाती है। उन्होंने कहा कि इस साल उन्होंने अपनेे खेत में ज्यादातर रोटावेटर का ही इस्तेमाल किया।
हैप्पी सीडर की तुलना में रोटावेटर सस्ती पड़ती है जिससे यह किसानों को ज्यादा आकर्षित लगती है। इसी इलाके के एक अन्य किसान गुमान सिंह ने कहते हैं, 'रोटावेटर की औसत कीमत करीब 60,000 रुपये है जो हैप्पी सीडर मशीन की तुलना में आधी है।' किसान स्वीकार करते हैं कि रोटावेटर मशीनों की एक अहम खामी यह है कि इससे पराली जलाने की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होती है। फिर भी इससे कंबाइन हार्वेस्टर की तुलना में बहुत कम पराली बची रह जाती है। किसानों का कहना है कि पराली की ऊपरी परत को जलाया जाता है कि यह अच्छी तरह काम करती है।
फसल अवशेष प्रबंधन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक ज्यादा आधुनिक कटाई मशीन सुपर सीडर है जिसकी कीमत 200,000 रुपये है। यह दूसरी फसलों की बुआई के साथ-साथ कई तरह के काम करती है। इस तरह ट्रैक्टर से चलनेे वाली तीन मशीनें हैप्पी सीडर, रोटावेटर और सुपर सीडर पराली को ठिकाने लगाने में काम आती हैं। किसान सबसे अधिक रोटावेटर को ही पसंद करते हैं। इन मशीनों को लेकर एक बड़ी शिकायत यह रहती है कि इन्हें चलाने के लिए ज्यादा क्षमता वाले ट्रैक्टरों (90 एचपी) की जरूरत पड़ती है और इन्हें ज्यादातर इस्तेमाल होने वाले 50-60 एचपी ट्रैक्टरों पर नहीं चलॄी हैं। भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल गुट) के सदस्य गुमान सिंह ने कहा, 'उच्च क्षमता वाले ट्रैक्टर की औसत कीमत 10 लाख रुपये से अधिक है। कितने किसानों की हैसियत इसे खरीदने की है।'
आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक इस साल पंजाब सरकार ने किसानों को 29,000 रोटावेटर, हैप्पी सीडर और सुपर सीडर मशीनें वितरित की हैं। हालांकि जिन किसानों को ये मशीनें मिली हैं, वे इनसे खुश नहीं हैं। कई किसानों का मानना है कि उन्हें नई मशीनों को जांचने के लिए गिनी पिग की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा अगर वे उन्हें इस्तेमाल भी करना चाहें तो ये मशीनें पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं। नाभा में गुरुमुखी गांव के छोटे सिंह कहते हैं, 'कुछ साल पहले केंद्र और राज्य सरकारों ने हम पर रोटावेटर मशीनें थोपी थीं। फिर उन्होंने हैप्पी सीडर के बारे में बात करनी शुरू कर दी और अब सुपर सीडर आ गई है। क्या हम गिनी पिग हैं जिन पर इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं।'
छोटे सिंह ने दावा किया कि उन्होंने कभी भी पराली नहीं जलाई क्योंकि उनके पास केवल चार एकड़ का खेत है और वह अपनी फसल की कटाई मजदूरों से करवाते हैं। लेकिन वह लंबे समय तक इस पर अड़े नहीं रह सकते हैं और भविष्य में पराली जला सकते हैं। उन्होंने कहा, 'इस बार में रोटावेटर मशीन को किराये पर लेने के लिए स्थानीय सरकारी अधिकारी के पास गया था लेकिन उन्हें मुझे अपनी बारी आने तक इंतजार करने और दस दिन बाद आने को कहा। अगर मैं दस दिन इंतजार करता तो मिट्टी की नमी खत्म हो जाती और मुझे गेहूं की अच्छी पैदावार नहीं मिलती। अगर सरकार चाहती है कि किसान पराली जलने से बचने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करे तो उसे कम से कम यह तो सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों को समय पर मशीनें उपलब्ध हों।'
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