सरकार के व्यय व प्राप्ति आंकड़ों से नहीं उभरती सही तस्वीर | दिल्ली डायरी | | ए के भट्टाचार्य / November 12, 2019 | | | | |
वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के केंद्र सरकार के राजस्व और व्यय आंकड़े जारी हो चुके हैं। अगर आप व्यापक प्रवृत्ति पर ध्यान दें और पिछले साल की समान अवधि की घटनाओं से तुलना करें तो आप यह मान सकते हैं कि हालात न केवल नियंत्रण में हैं बल्कि असल में कहीं बेहतर हुए हैं। सरकार का कुल व्यय 13.44 लाख करोड़ रुपये रहा है जो समूचे वित्त वर्ष के 27.86 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान का 53.4 फीसदी है। आप यह दलील दे सकते हैं कि पहले छह महीनों में इस दर से खर्च करना सरकारी व्यय पर सख्त नियंत्रण को दर्शाता है। पिछले साल भी पहली छमाही में सरकारी व्यय 2018-19 के बजट अनुमान का 53.4 फीसदी ही रहा था।
जहां तक अप्रैल-सितंबर 2019 में सरकार की कुल प्राप्तियों का सवाल है तो इसके 8.37 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जो वित्त वर्ष के 20.82 लाख करोड़ रुपये के प्राप्ति अनुमान का करीब 40 फीसदी है। गत वर्ष की पहली छमाही में सरकार की कुल प्राप्तियां वित्त वर्ष के लक्ष्य का 39 फीसदी रही थीं। ऐसे में आश्चर्य नहीं है कि 6.51 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा पूरे साल के लक्ष्य का 92.6 फीसदी पहुंच गया है। पिछले साल यह घाटा 95.3 फीसदी के ऊंचे स्तर पर रहा था। लेकिन सरकार की वित्तीय सेहत में स्पष्ट सुधार के ऐसे चिह्न हमें गलत दिशा में भी ले जा सकते हैं। हमें याद रखना होगा कि पिछले साल सरकार का व्यय दबाव में था और कुछ देनदारियां अन्य सार्वजनिक इकाइयों को हस्तांतरित करने से उसमें 1.5 लाख करोड़ रुपये की कमी आई थी। इसलिए ऐसा नजर आ सकता है कि इस साल भी कुछ वैसी ही कवायद की जाएगी क्योंकि वर्ष 2019-20 में सरकार का कुल व्यय 20 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी के साथ 27.86 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। गत वित्त वर्ष में सरकार का वास्तविक व्यय 23.11 लाख करोड़ रुपये रहा था।
यह अभी साफ नहीं है कि सार्वजनिक इकाइयों को कितनी व्यय राशि हस्तांतरित की जानी है और किसे एक बजट-इतर उधारी के तौर पर चिह्नित किया जाएगा? लेकिन अभी तक का व्यय रुझान यही संकेत देता है कि पिछले साल की घटनाएं ही दोहराई जाएंगी। चिंता का दूसरा क्षेत्र बड़ी सब्सिडियों पर सरकारी व्यय में छमाही रुझान के आधार पर है। सरकार ने वर्ष 2019-20 के समूचे साल के लिए खाद्य, उर्वरक एवं पेट्रोलियम सब्सिडी के मद में तीन लाख करोड़ रुपये खर्च का बजट लक्ष्य रखा था। लेकिन चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में ही 2.11 लाख करोड़ रुपये यानी 70 फीसदी राशि खर्च हो चुकी है। गत वर्ष की समान अवधि में सरकार ने 1.88 लाख करोड़ रुपये की अपेक्षाकृत कम राशि ही खर्च की थी लेकिन वह बजट अनुमान का 71 फीसदी था।
व्यय संपीडन के चलते सरकारी देनदारियों को सार्वजनिक इकाइयों के समूह को हस्तांतरित किया गया है। इस काम को प्रमुख सब्सिडियों के मद में अंजाम दिया गया है। अनुमानित सब्सिडी राशि का करीब 70 फीसदी हिस्सा पहले ही खर्च हो जाने से अगले कुछ हफ्तों में ही सब्सिडी का बोझ उठाने का जिम्मा सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय खाद्य निगम और पेट्रोलियम कंपनियों पर डाला जाने लगेगा। ऐसा होने की संभावना इसलिए है कि अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सरकार अपने खातों को साफ करने की योजना बना रही है और बजट से अधिक सभी उधारियों को सरकारी उधारी का हिस्सा दिखाने वाली है ताकि राजकोषीय घाटे का सटीक स्तर परिलक्षित हो सके।
चिंता का तीसरा बिंदु सरकारी प्राप्तियों से जुड़ा हुआ है। सरकारी प्राप्तियों में स्वस्थ बढ़ोतरी काफी हद तक करीब 58,000 करोड़ रुपये के आरबीआई अधिशेष के एकमुश्त हस्तांतरण की वजह से है। विनिवेश के मोर्चे पर वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में रुझान अधिक उत्साहजनक नहीं हैं। इस दौरान केवल 12,400 करोड़ रुपये ही मिले हैं जबकि सरकार ने बजट में 1.05 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश राजस्व का लक्ष्य रखा था। सार्वजनिक इकाइयों में सरकार का हिस्सा बेचने से होने वाली विनिवेश आय का लक्ष्य हासिल करने के लिए बाकी बचे समय में एयर इंडिया एवं बीपीसीएल को बेचने का काम पूरा करना होगा।
कराधान के मोर्चे पर पहली छमाही में सकल कर राजस्व की वृद्धि घटकर महज 1.43 फीसदी दर के साथ 9.19 लाख करोड़ रुपये पर आ चुकी है। साल के पहले पांच महीनों में तो वृद्धि दर 4.25 फीसदी के स्तर पर थी। अप्रैल-सितंबर में भी कॉर्पोरेट कर वृद्धि गिरकर दो फीसदी रह गई जबकि अप्रैल-अगस्त की अवधि में यह करीब पांच फीसदी रही थी। व्यक्तिगत आयकर और सीमा शुल्क के संग्रह में भी ऐसी ही सुस्ती देखी गई है। लिहाजा ऐसा लगता है कि वित्त वर्ष की पहली छमाही में व्यय एवं प्राप्तियों के आंकड़े सरकारी वित्त में तनाव को पूरी तरह नहीं दर्शाते हैं। तीन महीने से भी कम समय में सरकार अगले वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश करेगी। उसके पास केवल कुछ हफ्ते ही रह गए हैं जिसमें वह अपनी वित्तीय स्थिति के तनाव को पारदर्शी ढंग से स्वीकार कर सकती है या फिर वह असली तस्वीर नहीं दिखाने वाले हेडलाइन घाटे के आंकड़े ही देना जारी रख सकती है।
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