उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए केंद्र को ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है, जिससे इस काम में संघ परिवार विशेष रूप से विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की भूमिका सीमित हो गई है। संघ परिवार उम्मीद कर रहा था कि वह मंदिर निर्माण में बड़ी भूमिका निभाएगा। हालांकि शीर्ष अदालत ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया, लेकिन उसे जल्द ही स्थापित किए जाने वाले ट्रस्ट में शामिल करने के लिए कहा है। इससे संतों को अपनी यह मांग आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिला है कि प्रस्तावित ट्रस्ट में मुख्य रूप से हनुमानगढ़ी मंदिर के 13 अखाड़े और अयोध्या के अन्य मंदिर शामिल हों। केंद्र को अखाड़ों और विहिप की मांगों को पूरा करने में संतुलन साधने की जरूरत होगी। केंद्र के सामने मंदिर ट्रस्टों के उदाहरण श्री माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड और श्री सोमनाथ ट्रस्ट हैं। 'संत समाज' ने 29 दिसंबर 2017 को अखिल भारतीय सम्मेलन में लिया गया फैसला सरकार को याद दिलाया है। इसमें संत समाज ने कहा था कि दिवंगत बाबा अभिराम दास नए मंदिर के पुजारी होंगे। उन्होंने कहा कि दास ने 1949 में मूर्तियां रखी थीं। जो 'बाहरी पक्ष' अयोध्या के साधु समाज का हिस्सा नहीं हैं, उनकी कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। उन्हें जल्द ही तैयार होने वाले मंदिर में पुजारी की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को तीन महीनों के भीतर ट्रस्ट स्थापित करने के लिए कहा है। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय संस्कृति एवं विधि मंत्रालय अगले कुछ सप्ताह में विचार-विमर्श करेंगे और 18 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीत सत्र से पहले ट्रस्ट की स्थापना के विधेयक का प्रारूप तैयार करेंगे। सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट एक धार्मिक धमार्थ ट्रस्ट है, जो गुजरात पब्लिक ट्रस्ट ऐक्ट 1950 के तहत पंजीकृत है। वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड जम्मू में मंदिर का परिचालन करता है। इसकी स्थापना 1988 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के एक अधिनियम के जरिये की गई थी। अमरनाथ श्राइन बोर्ड भी वैष्णों देवी श्राइन ऐक्ट पर आधारित है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के पदेन चेयरमैन होते थे और वही बोर्ड के नौ सदस्यों को नामित करते थे। इस कानून के अनुसार, बोर्ड सदस्यों में हिंदू धर्म के दो ख्याति प्राप्त लोग, हिंदू धर्म की ख्याति प्राप्त अथवा सामाजिक कार्य करने वाली दो महिलाएं, प्रशासन, कानूनी मामलों एवं वित्तीय मामलों में अनुभव प्राप्त तीन व्यक्ति और जम्मू-कश्मीर के दो जानेमाने हिंदू शामिल हैं। सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का है। बोर्ड के मौजूदा सदस्यों में श्री श्री रविशंकर, एक पूर्व न्यायाधीश, सेवानिवृत्त अफसरशाह आदि शामिल हैं। बोर्ड एक मुख्य कार्याधिकारी जो फिलहाल भारतीय प्रशासनिक सेवा एक अधिकारी हैं और अन्य कार्यकारी प्रमुखों के जरिये अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है। उसकी आय में श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए चंदे और जमा पर मिलने वाला ब्याज एवं लाभांश शामिल है। बोर्ड की जिम्मेदारी मंदिर के विकास एवं रखरखाव कार्यों की है। हालांकि सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट में पूरी तरह राजनेताओं का वर्चस्व है। फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल उस आठ सदस्यीय ट्रस्टी बोर्ड में शामिल हैं। बोर्ड में एक चेयरमैन और एक सचिव भी शामिल हैं। ट्रस्टी बोर्ड के सदस्यों को आजीवन के लिए चुना जाता है लेकिन उन्हें हटाया भी जा सकता है।सोमनाथ ट्रस्ट सोमनाथ मंदिर के अलावा प्रभास पाटन में 64 अन्य मंदिरों, उसके अतिथि गृहों और 2,000 एकड़ भूमि का प्रबंधन करता है। ट्रस्ट मंदिर की आय से सरकार को कोई हिस्सा नहीं देता है और हाल में एक सार्वजनिक सूचना जारी कर कहा है कि गैर-हिंदुओं को मंदिर के मुख्य परिसर में प्रवेश करने के लिए महाप्रबंधक अनुमति लेनी होगी। देश के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने उस मंदिर के पुननिर्माण के लिए जोर लगाया था। जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उस मंदिर के निर्माण में सार्वजनिक धन के व्यय के पक्ष में नहीं थे। इसलिए पटेल और शिक्षाविद केएम मुंशी ने आम जनता से रकम जुटाई जिसमें जीडी बिड़ला जैसे उद्योगपति भी शामिल थे। बिड़ला मंदिर के पहले ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य भी थे। आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ मंदिर से ही अपनी रथ यात्रा शुरू की थी।
