अयोध्या जैसे महत्त्वपूर्ण मसले पर फैसले से पहले उच्चतम न्यायालय ने किताबों और यात्रा वृत्तांतों का अध्ययन किया। न्यायालय ने संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फारसी, तुर्की, फ्रेंच और अंग्रेजी जैसी भाषाओं में इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व विज्ञान और धर्म पर लिखी कई किताबों का अध्ययन किया और अपने फैसले में उन सभी के संदर्भ भी दिए। अदालत ने यह भी कहा कि इतिहास की व्याख्या करने के खतरे भी हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पीठ ने 533 दस्तावेज और सामग्री देखीं, जिनमें धार्मिक पुस्तकें, यात्रा वृत्तांत, पुरातात्विक खुदाई की रिपोर्टें, ढांचे को ढहाने से पहले की तस्वीरें और विवादित स्थल पर पाई गई वस्तुएं शामिल थीं। गैजेट और स्तंभों पर उकेरी गइ पंक्तियों का अनुवाद भी देखा गया। अदालत ने 10 जनवरी, 2019 को अपने पंजीयक से दस्तावेज देखने और जरूरत पडऩे पर उनका अनुवाद कराने को कहा था। मगर अदालत ने सतर्कता बरतते हुए बाबरनामा के अनुवादों का हवाला दिया और कहा कि अनुवाद अलग-अलग हो सकते हैं और उनकी सीमा होती है। अदालत को उनकी व्याख्या करने में सकर्तकता बरतनी पड़ी। जिस सामग्री को देखा गया, उसमें अयोध्या विष्णु हरि मंदिर पर उकेरी गई पंक्तियां, अकबर के नवरत्न अबुल फज्ल अल्लामी द्वारा लिखित आइन-ए-अकबरी और फादर जोसेफ टीफेनथेलर का यात्रा वृत्तांत शामिल था। अदालत ने कहा कि यात्रा वृत्तांतों के अनुसार भगवान राम के श्रद्घालुओं की उनमें प्राचीन और अटूट आस्था थी और वे उनके जन्मस्थल पर पूजा करते थे।
