लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता : सर्वोच्च न्यायालय | आशिष आर्यन / November 04, 2019 | | | | |
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार के प्राधिकारियों को संबंधित राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में विफल होने पर आड़े हाथों लिया। इन घटनाओं के चलते नई दिल्ली समेत पूरे एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर खतरना हो गया है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता के पीठ ने कहा, 'क्या हम इस वातावरण में जीवित रह सकते हैं? हम इस तरीके से बच नहीं पाएंगे। दिल्ली हर साल घुट रही है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। सवाल यह है कि हर साल ऐसा हो रहा है। यह सभ्य देश में नहीं किया जा सकता।'
प्रशासन के सभी स्तरों पर जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि पराली जलाने की घटनाएं हर साल बेरोकटोक नहीं की जा सकती हैं। पीठ ने कहा, 'हर वर्ष पराली जलाने की घटनाएं सामने क्यों आती हैं? प्रत्येक वर्ष यह हाल होता है। सभी राज्य इसके बारे में जानते हैं और वे अभी तक इसका समाधान नहीं कर रहे।' सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई (6 नवंबर) के दौरान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को न्यायालय में उपस्थित रहने के लिए कहा है।
दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने का निर्देश देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अगले आदेश तक दिल्ली-एनसीआर में सभी निर्माण गतिविधियों के साथ-साथ कचरा और अपशिष्ट जलाने पर भी रोक लगा दी। न्यायालय द्वारा तीनों राज्यों के जिला कलेक्टरों के साथ-साथ पूरे पुलिस तंत्र को यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है कि उनके इलाकों में पराली जलाने की एक भी घटना न हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की स्थिति दोबारा होने से रोकने के लिए केंद्र सरकार और राज्यों द्वारा तीन सप्ताह के अंदर योजना तैयार की जानी चाहिए। वायु प्रदूषण के स्तर में और वृद्धि रोकने के लिए अन्य निर्देश देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में निर्माण और ढहाने की गतिविधियों को अंजाम देने वाले पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा, जबकि कूड़ा या कचरा जलाने में शामिल दोषियों पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
दो न्यायाधीशों वाले पीठ ने कहा कि किसी सभ्य देश में ऐसा नहीं किया जा सकता है। अगर लोग दूसरों के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं तो उनके पास भी कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। जीने का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण है। दिल्ली में रहने के लिए कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं है। लोग अपने घर तक में सुरक्षित नहीं है। यह भयानक है। पीठ ने कहा कि उसे इसमें शामिल (पराली जलाने में) किसानों से कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि वे दूसरों की जान जोखिम में डाल रहे हैं।
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