कृषि निर्यात को एमएसपी से आघात | दिलीप कुमार झा / मुंबई November 04, 2019 | | | | |
ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर कृषि जिंसों के दामों में अधिक आपूर्ति की वजह से गिरावट आ रही है, भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में निरंतर वृद्धि करने से विश्व बाजार में देश की कृषि जिंसों के दाम बढ़ गए हैं जिससे देश की प्रतिस्पर्धा में कमी आई है। वित्त वर्ष 13 से वित्त 19 के बीच केंद्र सरकार ने विभिन्न कृषि जिंसों के एमएसपी में 40-70 प्रतिशत तक इजाफा किया है। जिंस परिदृश्य के संबंध में विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक कृषि के दाम कुछ और समय तक कमजोर रहने के आसार हैं। कृषि जिंसों के निर्यातकों को निकट भविष्य में कोई राहत नहीं मिलने वाली है। आरसेप जैसे समझौतों से आगे चलकर कृषि निर्यात बढ़ाने की संभावनाओं में कमी ही आएगी क्योंकि इनसे आयात की बाढ़ आ सकती है।
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2019 में समाप्त हुए वित्त वर्ष के दौरान देश का कृषि जिंसों का कुल निर्यात 28.62 अरब डॉलर रहा। हालांकि निर्यात में निचले स्तर की अपेक्षा कुछ सुधार हुआ है, लेकिन यह वित्त वर्ष 14 में देखे गए शीर्ष स्तर के मुकाबले अब भी 13 प्रतिशत तक कम रहा है। चालू वर्ष में भी गिरावट का यह सिलसिला जारी रहा है। अप्रैल और सितंबर 2019 के बीच की अवधि में भारत के कृषि उपज का निर्यात पिछले साल के13.79 अरब डॉलर के मुकाबले 4.8 प्रतिशत तक घटकर 12.86 अरब डॉलर रह गया।
कृषि और खाद्य क्षेत्र के विशेषज्ञ विजय सरदाना ने कहा कि वैश्विकअर्थव्यवस्था और ऐसे परिदृश्य में जिसमें भारत सरकार विभिन्न मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) समझौतों को लेकर बातचीत आगे बढ़ा रही है, एमएसपी की भूमिका निरर्थक हो गई है क्योंकि अगर अंतरराष्टï्रीय बाजार भारत के एमएसपी की तुलना में कम कीमत पर कोई उत्पाद प्रदान करता है तो कारोबारी स्थानीय किसान से खरीद करने के बजाय आयात करेंगे। इसके परिणामस्वरूप आगे चलकर भारत का निर्यात कम हो जाएगा क्योंकि एमएसपी में लगातार बढ़ोतरी से भारत की कृषि वस्तुओं के दाम दुनिया में अधिक हो जाएंगे।
दक्षिण भारत में गेहूं और मक्के जैसी जिंसों के थोक उपभोक्ताओं ने अपनी मांग पूरी करने के लिए आयात करना शुरू कर दिया है क्योंकि स्थानीय किसानों से खरीद महंगी हो गई है। जूस विनिर्माताओं ने भी कच्चे माल का आयात करना शुरू कर दिया है। सरदाना ने कहा कि इसलिए सरकार को किसी भी कृषि उत्पाद का एमएसपी निर्धारित करने से पहले जहन में अंतरराष्टï्रीय दामों को जरूर रखना चाहिए। वरना उपभोक्ता आयातित उत्पाद लेंगे और किसानों को अपना वजूद बचाने के लिए कम दामों पर उत्पाद बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इससे उनकी आजीविका, कल्याण और स्वास्थ्य को नुकसान होगा। मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का भी मानना है कि एमएसपी में इजाफे से कुछ जिंसों के निर्यात को हानि होगी।
इस बीच हाल ही में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट में जिंसों की कीमतों में कमी के रुख से काफी दबाव रहने का अनुमान जताया गया है क्योंकि स्टॉक का स्तर कई वर्षों के शीर्ष पर है। अधिकांश कृषि जिंसों के दाम हाल के दिनों में स्थिर नजर आ रहे हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि चावल और गेहूं जैसे कुछ अनाजों के स्टॉक के अधिक स्तर, प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में मौसम की अनुकूल स्थिति, मौजूदा व्यापारिक तनाव, ऊर्जा की कम लागत और कुछ जिंसों की कमजोर मांग के कारण कीमतों पर दबाव जारी रहेगा।
दरअसल जुलाई-सितंबर 2019 में विश्व बैंक के कृषि मूल्य सूचकांक में करीब दो प्रतिशत की गिरावट आई है जो एक साल पहले की तुलना में 3.3 प्रतिशत कम बैठता है। इस तिमाही में ज्यादातर उप-सूचकांकों में गिरावट आई है। वर्ष 2019 के दौरान दामों में तकरीबन पांच प्रतिशत गिरावट का अनुमान है। वर्ष 2020 के दौरान दामों में स्थिरता आएगी।
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