प्लास्टिक पर लगी चोट तो फायदे में आया जूट | |
ईशिता आयान दत्त और नम्रता आचार्य / कोलकाता 11 04, 2019 | | | | |
एक समय माना जा रहा था कि जूट उद्योग का सूरज डूब रहा है, लेकिन जूट एक बार फिर चमकने लगा है। पर्यावरण को लेकर जागरूकता बढ़ने, सतत विकास करने और दुनिया भर में प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग बंद होने से जूट की चमक लौट रही है। मिलों के पास बड़ी तादाद में ठेके आ रहे हैं और उनका उत्साह साफ नजर आता है, जबकि पहले यह उद्योग औद्योगिक हिंसा और बार-बार तालाबंदी की वजह से बदनाम था।
वैश्विक और घरेलू खुदरा विक्रेता विभिन्न तरह के उत्पादों के लिए करार कर रहे हैं। परंपरागत जूट उत्पादों के विक्रेता भी पिछड़े हुए नहीं है। वे सरकार से मिल रहे ठेके पूरे करने में व्यस्त हैं। इस क्षेत्र में कहीं भी मांग की कमी नहीं है। कई दशकों बाद नई मिलें खोली जा रही हैं और उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा रही है।
बिड़ला कॉरपोरेशन की इकाई बिड़ला जूट मिल्स भी क्षमता बढ़ा रही है। बिड़ला जूट मिल्स के सहायक उपाध्यक्ष (मार्केटिंग) आदित्य शर्मा ने कहा, 'हमने पिछले साल थैलों की इकाई शुरू की थी और हर महीने 1.5 लाख थैले बनाने की हमारी क्षमता थी। हम दो महीनों के भीतर किसी नई जगह पर इतनी ही उत्पादन क्षमता वाला एक और कारखाना शुरू करेंगे।'
बिड़ला जूट ने हाल में जापान की खुदरा विक्रेता मूजी के साथ 20 लाख थैलों के लिए करार किया है। शर्मा ने बताया कि मूजी को 1 करोड़ थैलों की जरूरत है और बिड़ला उसका छोटा सा हिस्सा ही पूरी कर रही है। बिड़ला जूट ने निर्यात के लिए इतने ठेके ले लिए हैं कि उसने सरकार से आगे के सभी ठेके रद्द करने का आग्रह किया है।
देश की सबसे बड़ी जूट मिलों में से एक ग्लोस्टर लिमिटेड ने हाल में कोलकाता के बाहरी इलाके में 70 एकड़ जमीन खरीदी है। कंपनी अगले दो साल के दौरान एक आधुनिक जूट विनिर्माण इकाई पर 200 करोड़ रुपये (जमीन की कीमत सहित) निवेश करेगी। इस इकाई में रोजाना 100 टन जूट का प्रसंस्करण करने की क्षमता होगी।
ग्लोस्टर लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक डी सी बहेती ने कहा कि इससे ग्लोस्टर देश में सबसे बड़ी एकल जूट उत्पाद विनिर्माण इकाई बन जाएगी, जिसकी कुल दैनिक क्षमता करीब 270 टन होगी। वर्ष 2018-19 में ग्लोस्टर का राजस्व 501.38 करोड़ रुपये और शुद्ध लाभ 44.15 करोड़ रुपये रहा था। कंपनी का परिचालन लाभ मार्जिन 19.66 फीसदी रहा। जूट के विभिन्न उत्पादों में सबसे ज्यादा मांग थैलों की आ रही है। वैश्विक खुदरा कंपनियां थैले खरीदने के लिए भारतीय मिलों को ठेके दे रही हैं। थैलों के निर्यात की असल कहानी आंकड़े बयां करते हैं। थैलों का निर्यात वर्ष 2018-19 में बढ़कर 5.6 करोड़ पर पहुंच गया है, जो 2013-14 में 3 करोड़ था।
भारतीय जूट मिल संघ (आईजेएमए) के पूर्व चैयरमैन और जूट मिलों के मालिक संजय कजारिया के मुताबिक थैलों की मांग के कारण जूट मिलों की क्षमता में तत्काल 15 फीसदी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा, 'एकबारगी इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर रोक से जूट की मांग में अचानक तेजी आई है।'
शर्मा ने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान दुनिया भर में जागरूकता कई गुना बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन की नामी खुदरा कंपनी टेस्को जूट के थैलों की सबसे बड़ी खरीदार कंपनियों में शामिल है। उद्योग के सूत्रों ने कहा कि टेस्को ने अपने स्टोरों में प्लास्टिक की थैलियां बंद कर दी हैं। कंपनी ने वैश्विक स्तर पर अपने स्टोरों में जूट के थैले शुरू किए हैं, जिनकी कीमत करीब एक यूरो है। कंपनी प्लास्टिक की थैली तभी देती है, जब ग्राहक मांगता है। अन्य ïवैश्विक खुदरा कंपनियों ने भी जूट के थैलों को अपनाया है। विदेशों में ही प्लास्टिक से इतर सामग्री के थैले नहीं मांगे जा रहे हैं, देश में भी उनकी खूब मांग है।
कोलकाता के सारडा समूह के मालिक घनश्याम सारडा ने कहा, 'घरेलू बाजार में भी इसकी मांग बढ़ी है। खुदरा विक्रेता और दुकानदार जूट के थैले अपना रहे हैं। ग्राहक भी बार-बार इस्तेमाल करने लायक थैलों का उपयोग कर रहे हैं।' सारडा समूह की करीब आठ मिलें हैं। उन्होंने कहा, 'विभिन्न तरह के जूट उत्पाद बनाने वाली 20 से अधिक मिलें लाभ में आ गई हैं। शेष मिलें भी लागत निकालने की स्थिति में पहुंच गई हैं।'
शर्मा ने कहा कि अब किसी भी मिल को ठेकों की किल्लत नहीं है। यह स्थिति उस दौर से बिल्कुल अलग है, जब मिलें हमेशा जूट की बोरियों के सरकारी ठेकों पर निर्भर थीं। शर्मा ने कहा, 'सरकार ने ऐसी व्यवस्था शुरू की है, जिसमें उसे हरेक मिल की क्षमता का पता होता है और मिल की क्षमता के आधार पर ठेके दिए जाते हैं।' उन्होंने कहा, 'हरेक मिल को ठेके मिल रहे हैं और 10 दिन के भीतर भुगतान भी हो जा रहा है। यही वजह है कि छोटी मिलें भी अपना वजूद बनाए रखने में कामयाब हो पाई हैं।'
इसके अलावा केंद्र सरकार ने 2018-19 में 100 फीसदी खाद्यान्न और 20 फीसदी चीनी जूट की बोरियों में भरने का आदेश दिया था। इससे पहले 90 फीसदी खाद्यान्न में जूट की बोरियों का इस्तेमाल किया जाता था। इससे उद्योग को बड़ा सहारा मिला है। सरकार की नीतियों ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी मिलों को मांग में बढ़ोतरी का फायदा मिले। मिलों के पास इतने ठेके आ गए हैं कि उनके मजदूर कम पड़ रहे हैं। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक उद्योग में करीब 21,000 कामगारों की कमी है।
बहेती ने कहा कि मांग इतनी है कि मिलें 100 फीसदी क्षमता पर चल सकती हैं। मगर श्रमिकों की किल्लत के कारण वे 70 से 75 फीसदी क्षमता पर ही चल रही हैं। पिछले साल जूट कामगारों के न्यूनतम वेतन में दैनिक 100 रुपये की बढ़ोतरी की गई थी। इससे औसत वेतन 500 रुपये पर पहुंच गया है। बहेती ने कहा, 'हम कामगारों को लाने के लिए मेहनताने में और बढ़ोतरी करेंगे। हम उन्हें काम करने का अच्छा माहौल मुहैया कराना चाहते हैं।'
इससे पहले जूट उद्योग वर्ष 2014 में सुर्खियों में था। उस समय नॉर्थब्रुक जूट कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी एच के माहेश्वरी की गुस्साए मजदूरों ने हत्या कर दी थी। मजदूर काम के घंटे कम किए जाने से गुस्साए हुए थे। कंपनी अधिक माल इकट्ठा होने की वजह से काम के घंटे कम कर रही थी। लेकिन अब कोई भी मिल काम के घंटे कम करने के बारे में बात नहीं कर रही है।
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