सरकार कर रही प्रतिस्पर्धा कानून में बदलाव की तैयारी | रुचिका चित्रवंशी / November 03, 2019 | | | | |
आखिरकार सरकार प्रतिस्पर्धा कानून में संशोधन करने जा रही है। लंबे समय से इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी। करीब एक दशक बाद सरकार नई दौर की डिजिटल अर्थव्यवस्था के अनुरूप इस कानून में बदलाव करने जा रही है। साथ ही मुकदमेबाजी के बोझ को कम करने के लिए भी प्रावधान किए जा रहे हैं। इन उपायों से देश में कारोबार के लिए ज्यादा अनुकूल व्यवस्था बनाने में मदद मिलनी चाहिए।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने हाल में कहा था कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) को डेटा से संबंधित कारोबार के लिए निगरानी क्षमताएं विकसित करनी चाहिए ताकि सारी शक्तियों को किसी एक समूह के हाथ में जाने से रोका जा सके।
इस कानून को नए दौर की अर्थव्यवस्था के मुताबिक बनाने के लिए सौदे के आकार की सीमा में बदलाव करना अहम है। यह इस बात का पैमाना है कि कोई मामला प्रतिस्पर्धा कानून के दायरे में आएगा या नहीं। सीसीआई अब दूरसंचार जैसे बहुत अधिक गतिशील और तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों की पहचान की प्रक्रिया से गुजर रहा है। इससे प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार का अध्ययन किया जा सकेगा और साथ ही यह भी पता चलेगा कि बाजार को कैसे विकृत किया जा सकता है।
सीसीआई के अध्यक्ष अशोक कुमार गुप्ता ने कहा, 'हमें कुछ क्षेत्रों के समक्ष पेश आ रही समस्याओं से वाकिफ होने की जरूरत है। जब भी कोई मामला हमारे सामने आता है तो हम उस पर फैसला ले सकते हैं।' दूरसंचार से लेकर ई-कॉमर्स तक सीसीआई बाजार अध्ययनों की एक शृंखला तैयार करने की प्रक्रिया में है।
इस कानून में प्रतिबद्घता और निपटान प्रावधान को शामिल करने की योजना इस बात का संकेत है कि आगे क्या होने जा रहा है। कंपनी जगत की मांगों की सूची में यह सबसे ऊपर है। सरकार ने महसूस किया कि ऐसी कंपनियों को तिलांजलि देने का समय आ गया है जिनके कारण बाजारों में गिरावट आ रही है।
पीऐंडए लॉ ऑफिसेज में मैनेजिंग पार्टनर आनंद पाठक ने कहा, 'वैश्विक रुझानों के अध्ययन के बाद कुछ प्रावधानों को इस कानून में शामिल किया जा रहा है। पहले इन्हें शामिल नहीं किया जा सका था। इन कमियों को दूर करने की जरूरत महसूस की जा रही थी।' पिछले कुछ महीनों के दौरान सरकार कॉरपोरेट गवर्नेंस और निगरानी व्यवस्था की तरफ बढ़ रही है जिससे कानून का उल्लंघन करने वाली कंपनियों का तेजी से समाधान का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इसके तहत कंपनी कानून के तहत अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया है।
इसके पीछे मकसद राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) पर मुकदमेबाजी का बोझ कम करना है। इससे नियामकीय क्षमता पर भी बोझ कम होगा जिससे कॉरपोरेट गवर्नेंस को सुधारने में लगाया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीसीआई भी अपनी नियामकीय क्षमता के अधिकतम इस्तेमाल की दिशा में काम कर रहा है। साथ ही आयोग अपने जांच संसाधनों की बेहतर तैनाती करना चाहता है और प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की कानून की असल मंशा पर जोर देना चाहता है।
प्रतिस्पर्धा कानून में बदलाव के लिए सरकार की पहल की उद्योग जगत ने सधे शब्दों में सराहना की है लेकिन कुछ प्रस्तावित बदलावों पर चिंता भी व्यक्त की है। महानिदेशक और सीसीआई के कार्यालयों का विलय भी इनमें शामिल है।विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम चिंताजनक है। जे सागर एसोसिएट्स में पार्टनर अमिताभ कुमार कहते हैं, 'दोनों दफ्तर अलग-अलग रहने चाहिए और डीजी कार्यालय सीसीआई के निर्देश पर नहीं चल सकता है। जांच की निष्पक्षता को बनाए रखना जरूरी है।'
इस संशोधन का मतलब होगा कि डीजी कार्यालय की नियुक्ति का अधिकार सीसीआई को मिलेगा। हालांकि सीसीआई जांच और सख्त समयसीमा लागू करने के लिए एकल बिंदु जवाबदेही बनाना चाहता है लेकिन साथ ही जांच की प्रक्रिया से दूर रहना चाहता है। डिजिटल अर्थव्यवस्था की तेज वृद्घि और प्रभाव के कारण नीतिनिर्माताओं के समक्ष चुनौतियां बढ़ गई हैं। आयोग चुनौतियों का समाधान करना भी आयोग की प्राथमिकता में शामिल है। प्रतिस्पर्धा कानून पहली बार अपने तरकश में सौदा मूल्य परीक्षण शामिल करेगा। प्रतिस्पर्धा कानून में बदलाव के बाद अब बड़े सौदों के लिए सरकार की मंजूरी लेनी होगी। इनमें फेसबुक द्वारा व्हाट्सऐप का अधिग्रहण जैसे अरबों डॉलर के सौदे शामिल होंगे जो अब तक सीसीआई की परिधि से बाहर थे।
कुमार ने कहा, 'सौदा मूल्य को कानून की परिधि में लाना अच्छा कदम है लेकिन इसकी सीमा को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।' कुमार जैसे कुछ विशेषज्ञ प्रतिस्पर्धा कानून के कुछ प्रावधानों को कमजोर किए जाने से खुश नहीं हैं। कुमार ने कहा कि विशेष कंपनियां अपना दबदबा बना सकती हैं और कुछ क्षेत्रों में यह सीमा गतिशील होनी चाहिए। अभी ऐसे मामले आयोग के दायरे में आते हैं जब अधिग्रहीत कंपनी का टर्नओवर कम से कम से 1,000 करोड़ रुपये और उसकी परिसंपत्तियों का मूल्य 350 करोड़ रुपये या इससे अधिक हों।
हालांकि, डेटा के मूल्यवान जिंस बनने से आयोग नए दौर की अर्थव्यवस्था के इस पहलू को अपने दायरे में लाने के लिए अपने कानूनों को संशोधित कर रहा है। यह एक निश्चित सीमा से परे किसी भी राशि के अधिग्रहण के सौदे को देखेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि आयोग इस कशमकश से जूझ रहा है कि प्रतिस्पर्धा कानून डेटा आधारित कारोबार से कैसे निपटेगा। हालांकि, यह मसला केवल सीसीआई के साथ ही नहीं है। जर्मनी, यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी प्रतिस्पर्धा कानून नियामक भी डिजिटल अर्थव्यवस्था के अनुरूप तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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