लिथियम आयन बैटरी ऊर्जा भंडारण का सहज उपकरण | तकनीकी तंत्र | | देवांग्शु दत्ता / October 29, 2019 | | | | |
लिथियम-आयन बैटरी हमारी आधुनिक जिंदगी में इतना अपरिहार्य बन चुकी है कि हम इसके इतिहास के बारे में सोचते भी नहीं हैं। हरेक मोबाइल फोन और लैपटॉप में इसी बैटरी का इस्तेमाल होता है। इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाने एवं नवीकरणीय ऊर्जा के भंडारण में भी इसका उपयोग होता है। वर्ष 2019 के लिए रसायन का नोबेल पुरस्कार लिथियम-आयन बैटरी के विकास से जुड़े रहे तीन वैज्ञानिकों को देने की घोषणा की गई है। न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के स्टैनली व्हिटिंघम, टैक्सस यूनिवर्सिटी के जॉन गुडएनफ और असाही कासेई कॉर्पोरेशन के अकिरा योशिनो को यह सम्मान दिया जाएगा।
कुछ की नजर में यह पुरस्कार ऐसे उपकरण के लिए दिया गया जो उनके 'बेबी' से चालित होता है। ये बैटरियां हल्की होने के साथ पुरानी बैटरियों से अधिक कॉम्पैक्ट भी हैं। छोटी-बड़ी ऊर्जा मांग पूरा करने के लिए बैटरी पैक को छोटा और बड़ा भी किया जा सकता है। वैसे बैटरी का इस्तेमाल 19वीं सदी के अंत तक ही आम हो चुका था। उस समय इलेक्ट्रिक टॉर्च का इस्तेमाल बेहद आम था। वाहन उद्योग एवं जहाजों में भी बैटरियों का इस्तेमाल होता है। 19वीं सदी के मध्य तक विद्युत परिपथ-तंत्र का सिद्धांत आ चुका था।
किसी भी परिपथ में दो इलेक्ट्रोड होते हैं- कैथोड और एनोड। इलेक्ट्रॉन और आयन विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होते हैं। इलेक्ट्रॉन एनोड से कैथोड की तरफ जाते हैं तो पॉजिटिव आयन इसकी उलटी दिशा में जाते हैं। इससे विद्युत धारा पैदा होती है। रिचार्ज के दौरान विद्युत धारा की दिशा पलट दी जाती है और इलेक्ट्रॉन का भंडारण होता है। परिपथ को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रोड को इलेक्ट्रोलाइट माध्यम के जरिये जोड़ दिया जाता है। शुरुआती बैटरियों में सीसा-तेजाब के संयोजन का इस्तेमाल होता था और वे भारी होने के साथ अधिक प्रभावी भी नहीं थीं। शीत युद्ध और अंतरिक्ष की होड़ के दौरान विकसित हथियारों ने आधुनिक बैटरी संबंधी शोध को गति दी।
सत्तर के दशक तक पेट्रोलियम ईंधन की आपूर्ति बाधित होने की आशंका जोर पकडऩे लगी थी। पर्यावरण को लेकर चिंताओं ने भी नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति रुचि जगाने का काम किया। पहले की रिचार्जेबल बैटरियों को हर बार रिचार्ज करने पर इलेक्ट्रोड्स कम होते जाते थे जिससे उनके चार्ज होने की क्षमता कम होती जाती थी। लिथियम धातु सबसे हल्की होने से आयन आसानी से पैदा होते हैं जिससे कम ह्रास होता है। लेकिन लिथियम रासायनिक रूप से काफी सक्रिय होता है। यह सामान्य तापमान पर हवा में मौजूद ऑक्सीजन के साथ विस्फोटक क्रिया करता है। इसी वजह से लिथियम-आयन बैटरियों में विस्फोट की समस्या भी देखी जाती है।
वर्ष 1941 में जन्मे व्हिटिंघम ने सुपर-कंडक्टर पर शोध किया था। सत्तर के दशक में उन्होंने द्रव्य विज्ञान की आधारशिला रखी थी जिसकी वजह से लिथियम-आयन कैथोड में इस्तेमाल पदार्थों की खोज की जा सकी। पहला पदार्थ टाइटैनियम डाइसल्फाइड था। यह एक क्रिस्टल की संरचना वाला रसायन है जिसमें आणविक स्तर पर लिथियम आयन मौजूद होते हैं। एनोड में लिथियम का मिश्रण था जो आसानी से इलेक्ट्रॉन मुक्त कर सकता है। बैटरी उच्च वोल्टेज वाली बिजली पैदा करने में सक्षम होने के बावजूद वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य नहीं थी। व्हिटिंघम की एक्सॉन स्थित प्रयोगशाला में बैटरी से जुड़े प्रयोगों के दौरान कई बार आग भी लगी थी।
98 साल की उम्र में दुनिया के सबसे बुजुर्ग नोबेल पुरस्कार विजेता बनने वाले गुडएनफ कई मायनों में अलहदा हैं। वह उस दौर में डिस्लेक्सिक बच्चे के तौर पर जन्मे थे जब पढऩे में दिक्कतों का सामना करने वाले ऐसे बच्चों के लिए शिक्षण के तरीके सामने ही नहीं आए थे। उन्होंने कंप्यूटरों में इस्तेमाल रैंडम एक्सेस मेमरी (रैम) के विकास में भी योगदान दिया था। वह इस उम्र में भी रोजाना प्रयोगशाला जाते हैं। गुडएनफ ने शोध में पाया था कि धातु सल्फाइड के बजाय धातु ऑक्साइड से बने कैथोड में अधिक क्षमता होती है। उन्होंने 1980 में दिखाया था कि लिथियम आयन से युक्त कोबाल्ट ऑक्साइड का कैथोड अधिक वोल्टेज वाली बिजली पैदा करता है।
गुडएनफ के विकसित कैथोड का इस्तेमाल करते हुए जापानी वैज्ञानिक योशिनो ने 1985 में वाणिज्यिक रूप से सक्षम पहली बैटरी बनाई। उन्होंने पेट्रोलियम कोक का इस्तेमाल कर एनोड में लिथियम की प्रतिक्रिया को काबू में रखा। पेट्रोलियम कोक में लिथियम के अंश होने का एक बड़ा लाभ यह है कि इलेक्ट्रोड्स पर उसकी परत चढ़ जाती है और आयन प्रतिक्रिया किए बगैर इलेक्ट्रोलाइट के जरिये आगे बढ़ता है। योशिनो ने बैटरी में धात्विक लिथियम का इस्तेमाल नहीं कर उसे अधिक सुरक्षित बना दिया।
इसका असर यह हुआ कि 1991 तक लिथियम आयन बैटरी बड़े पैमाने पर उपलब्ध हो चुकी थी। इस तरह की आधुनिक बैटरी प्रति किलोग्राम 150 वाट-घंटा बिजली का भंडारण करती है। वहीं निकल-मेटल हाइब्रिड बैटरियों में प्रति किलो अधिकतम 100 वाट-घंटे का भंडारण होता है जबकि पुरानी सीसा-तेजाब बैटरियां केवल 25 वाट-घंटा प्रति किलो ही जमा कर पाती थीं। एलआई बैटरी कहीं अधिक समय तक इसे संरक्षित रखती है और उसे रिचार्ज करने के लिए पूरी तरह डिस्चार्ज होने की जरूरत नहीं होती है। हालांकि एलआई बैटरी इस्तेमाल नहीं होने पर तेजी से खराब भी होती हैं और वे ऊष्मा को लेकर संवेदनशील भी होती है। कभी-कभार उनमें धमाका भी हो जाता है। एलआई बैटरियां अधिक महंगी भी हैं। इसकी एक वजह तो यह है कि विद्युत प्रवाह नियंत्रित करने के लिए स्मार्ट चिप नहीं लगाए बगैर बैटरी को पैक नहीं किया जा सकता है। कुछ नोबेल पुरस्कार ही ऐसे होते हैं जिनका आम जिंदगी से इतना ताल्लुक होता है।
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