धनतेरस पर अब भी बही की खरीद | सुशील मिश्र / October 25, 2019 | | | | |
धनतेरस पर सोने-चांदी के साथ बही-खाते वाली पुस्तक चोपड़ा खरीदने की परंपरा रही है। चोपड़े की दुकानों में शुक्रवार को व्यापारियों की भारी भीड़ देखने को मिली। आज कंप्यूटर का जमाना है, लेकिन फिर भी कारोबारी चोपड़े खरीदते हैं। हालांकि अब यह महज एक औपचारिकता रह गई है। सोने-चांदी के आभूषणों के सबसे बड़े जवेरी बाजार में शुक्रवार सुबह सबसे ज्यादा भीड़ सराफों की दुकानों पर नहीं बल्कि बही-खाता, चोपड़ा यानी खाता लिखने वाली पुस्तकों की दुकानों पर थी। चोपड़ों की बिक्री करने वाले अरबिंद बुक डिपो के मालिक अरविंद भाई कहते हैं कि धनतेरस के दिन सभी हिंदू कारोबारी चोपड़ों की खरीदारी करते हैं। व्यापारियों की मान्यता है कि लक्ष्मी सदैव हिसाब-किताब यानी बही खाते में निवास करती है। धन त्रयोदशी पर बही-खाता यानी पुस्तक खरीदने और उसके पूजन का विशेष महत्त्व है। हालांकि अब पहले जैसे बिक्री नहीं रही।
बही खातों की खरीद पर बुजुर्ग कारोबारी शंकर केजरीवाल कहते हैं कि यह हमारी परंपरा है, जिसे निभाया जा रहा है। कारोबारी घराने अपने हिसाब से चोपड़ों की खरीद करते हैं, जिसकी बुकिंग तीन महीने पहले से कर दी जाती है ताकी जिस साइज का चोपड़ा हम चाहते हैं वह आज बनकर मिल जाए। कुछ साल पहले हम 51 चोपड़े खरीदते थे, लेकिन अब महज पांच खरीदते हैं। कपड़ा कारोबारी राजीव सिंगल कहते हैं कि यह हमारी परंपरा है, इसलिए इसे अगली पीढिय़ों तक पहुंचाना हमारा फर्ज है।
कारोबारी चैंबर्स में भी बही खातों की पूजा धनतेरस से ही शुरू हो जाती है। भारत मर्चेंट्स चैंबर के अध्यक्ष विजय लोहिया कहते हैं कि परंपरा के मुताबिक धनतेरस के दिन चोपड़े लाए जाते हैं और इनकी पूजा होती है। लक्ष्मी पूजा यानी दीवाली के दिन भी इनकी पूजा होती है। दीवाली के बाद लाभ पंचम तक बाजार बंद रहते हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल लाभपंचम के दिन से किया जाता है। लेकिन अब संवत के हिसाब से बाजार नहीं चलता है, इस बात को ध्यान में रखते हुए कारोबारी बही-खातों की पूजा करके रख देते हैं और एक अप्रैल (वित्त वर्ष) से इनका उपयोग करना शुरू करते हैं।
कारोबारियों ने कहा कि अब बही खातों वाली पुस्तक का इस्तेमाल महज पूजा तक ही सीमित हो गया है, इसलिए इनकी बिक्री बहुत कम हो गई है। अगर 10 साल पहले 100 चोपड़े बिकते थे तो इस समय महज 10 की बिक्री होती है। पुराने कारोबारियों का कहना है कि कंप्यूटर युग में भी इनका महत्त्व है। यह सिर्फ परंपरा नहीं बल्कि हमारे कारोबारी हिसाब का सुरक्षित संग्रह है, जिसको कोई हैकर उड़ा नहीं सकता है। इसलिए हम अपने बच्चों को कारोबार की यह कला भी सिखाते हैं, भले ही परंपरा के नाम पर ही इन्हें इस्तेमाल किया जाए लेकिन बंद कभी भी नहीं किया जाना चाहिए।
|