दो कंपनियों के बाजार की ओर बढ़ रहा दूरसंचार क्षेत्र
सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली October 24, 2019
उच्चतम न्यायालय के दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ आदेश से दूरसंचार बाजार के निजी क्षेत्र की दो कंपनियों की ओर बढऩे की संभावना है। इस फैसले से जहां रिलायंस जियो को भारी लाभ होगा, जिसे अपनी दो प्रमुख प्रतिस्पर्धी कंपनियों की तुलना में बहुत मामूली राशि का भुगतान करना पड़ेगा। इससे सरकार को भी बड़ी राहत मिलेगी, जो राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में लाने के संकट से जूझ रही है। इस फैसले से सरकार को कुछ अतिरिक्त राजस्व मिल जाएगा।
बहरहाल सरकार को इसका कितना लाभ मिलेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उच्चतम न्यायालय कंपनियों को इस राशि का भुगतान कितने समय में करने को कहता है। यह फैसला न्यायालय को करना है। साथ ही अगर सरकार दूरसंचार कंपनियों को कुछ वित्तीय छूट देने को तैयार है, जिससे कि वे अपने बकाये का भुगतान सरकार को कर सकें तो वह स्पेक्ट्रम के भुगतान के लिए दो साल का वक्त दे सकती है।
इससे उद्योग पर कितना गंभीर असर पड़ेगा, इसका आकलन इससे किया जा सकता है कि पिछले वित्त वर्ष में इस उद्योग का कुल राजस्व 2,61,991 करोड़ रुपये था। लेकिन समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) महज 1,80,728 करोड़ रुपये और ईबीआईडीटीए सिर्फ 53,953 करोड़ रुपये था। यह राशि उसकी आधी है, जितना शीर्ष न्यायालय ने भुगतान करने का आदेश दिया है। और इसमें ब्याज भुगतान का बोझ शामिल नहीं है, जो 4,00,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज पर करना है।
साफ है कि वोडाफोन इंडिया लिमिटेड (वीआईएल) को सबसे गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जिसे सबसे ज्यादा 28,308 करोड़ रुपये का भुगतान करना है, जिसमें स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क शामिल नहीं है, जिसका भुगतान कं पनी को करना है। इसका असर कंपनी के शेयरों पर नजर आया, जिसमें आज 26.55 प्रतिशत की तेज गिरावट हुई है और इसकी बाजार पूंजी 12,300 करोड़ रुपये कम हुई है। यह राशि उस राशि की आधी है, जिसका भुगतान करने को उच्चतम न्यायालय के आदेश में कहा गया है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने डीओटी की मांग के एवज में सिर्फ 10,771 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। यह राशि कंपनी की वित्त वर्ष 19 के बैलेंस शीट में शामिल है। कंपनी को न्यायालय के आदेश के बाद जिस राशि का भुगतान करना है, उसकी तुलना में यह एक तिहाई है।
शीर्ष न्यायालय के आदेश के बाद कंपनी एक बार फिर ज्यादा इक्विटी जारी कर सकती है या अपनी संपत्ति तेजी से बेच सकती है। अब सवाल यह है कि कंपनी के प्रमोटर क्या अभी भी भविष्य में कारोबार आकर्षक पाएंगे, खासकर ऐसे समय में जब कंपनी ग्राहक गंवा रही है।
इस फैसले से निश्चित रूप से भारती एयरटेल की वित्तीय स्थिति पर बहुत ज्यादा असर पड़ेगा। लेकिन बैंंक आफ अमेरिका मेरिल लिंच ने टेलको को खरीद का विकल्प दिया है और कहा है कि तीसरा कमजोर कारोबारी भारती एयरटेल के हिसाब से बेहतर है। इससे कंपनी तेजी से बाजार के राजस्व में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकती है। भारती की देनदारी करीब 6,000 करोड़ रुपये है, जो इसकी कुल 2,1000 करोड़ रुपये देनदारी (जिसमें एसयूसी शामिल नहीं है) का एक हिस्सा है। यही वजह है कि एयरटेल का शेयर शुरू में तो गिरा, लेकिन बाद में संभल गया।
निश्चित रूप से इस फैसले का सबसे बड़ा लाभार्थी रिलायंस जियो है, जिसे एसयूसी को छोड़कर महज 13 करोड़ रुपये भुगतान करने होंगे। इससे साफ है कि जहां दो प्रतिस्पर्धी ऑपरेटरों के ऊपर दबाव बढ़ेगा, वहीं जियो को इसका लाभ मिलेगा और वह आक्रामक रूप से ग्राहकों को लुभाने की कवायद कर सकती है और 50 करोड़ ग्राहक बनाने के लक्ष्य तक पहुंच सकती है, जिसके अभी 35 करोड़ ग्राहक हैं।
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