फ्लैट पड़े हैं खाली प्लॉट की मारामारी | सिद्घार्थ कलहंस / October 21, 2019 | | | | |
देश भर की रियल्टी कंपनियां जब मंदी से परेशान थीं तब उत्तर प्रदेश के रियल्टी कारोबारी उससे बचने की जुगत भिड़ा रहे थे और उन्होंने मंदी से बचने की राह तलाश भी ली है। यही वजह है कि राज्य में अब महंगे विला, बंगलों, लक्जरी फ्लैट और डुप्ले के दिन लद गए हैं। निजी रियल्टी कंपनियों और सरकारी संस्थाओं का जोर सस्ते मकान बनाने पर है। प्रधानमंत्री आवास योजना से सस्ते मकानों को और बल मिला है। इसमें गरीबों को 2 लाख रुपये से भी कम दाम पर शहरों में मकान मिल रहे हैं और महंगे फ्लैट खरीदने वालों को आवास ऋण में 2.67 लाख रुपये तक की राहत मिल रही है। शायद इसीलिए रेरा के अधिकारी बता रहे हैं कि नई परियोजनाओं में 90 फीसदी सस्ते मकानों वाली हैं। रियल एस्टेट विशेषज्ञ अशोक तिवारी कहते हैं कि पांच साल पहले एनसीआर में 35-40 लाख रुपये के फ्लैट दिखते भी नहीं थे। अब ऐसे फ्लैटों की ही भरमार है। राजधानी लखनऊ में भी हर महीने 2-3 नई आवासीय परियोजनाएं आ रही हैं। कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी में आवासीय गतिविधियां फिर शुरू हो गई हैं।
प्लॉट पर हर कोई निसार
उत्तर प्रदेश के रियल्ट एस्टेट क्षेत्र में फ्लैटों के खरीदार अब भी आसानी से नहीं मिल रहे, लेकिन प्लॉटों के लिए खरीदारों की भरमार है। उत्तर प्रदेश की आवास विकास परिषद और विकास प्राधिकरणों की तमाम परियोजनाओं में हजारों फ्लैट खरीदारों की बाट जोह रहे हैं, लेकिन प्लॉटों के लिए मारामारी हो रही है। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने हाल ही में वसंत कुंज आवासीय परियोजना में प्लॉट का पंजीकरण शुरू किया और कुछ ही दिनों में सामान्य श्रेणी के 300 प्लॉटों के लिए 10,000 से ज्यादा आवेदन आ गए। पंजीकरण अब भी चालू है। इसी तरह प्रबंधनगर योजना में प्लॉटों की बिक्री का ऐलान भर हुआ है और पूछताछ तेज हो गई है। यह देखकर आवास विकास परिषद भी आगे ऐसी ही योजना लाने की तैयारी हैं।
घटे दाम पर भी फ्लैट के नहीं खरीदार
प्लॉट हाथोहाथ बिक रहे हैं तो सरकारी और निजी परियोजनाओं में तैयार फ्लैट यूं ही खड़े हैं। फ्लैट बेचने के लिए आवास विकास परिषद को तो एकमुश्त भुगतान करने वाले आवंटियों को कीमत में 5 फीसदी छूट देने का फैसला भी करना पड़ा है। पहले केवल 2 फीसदी छूट दी जा रही थी। परिषद की अगली बैठक में फ्लैटों की कीमत 15 से 27 फीसदी घटाने का प्रस्ताव भी आ सकता है। इस समय परिषद के पास गाजियाबाद में वसुंधरा और मंडोला कॉलोनी में 7,426 फ्लैट तथा लखनऊ में वृंदावन आवासी परियोजना में 1,172 फ्लैट खाली पड़े हैं। इसी तरह मेरठ के जागृति विहार में 1,141 और लखनऊ की अवध विहार योजना में 946 तैयार फ्लैट खरीदने कोई नहीं पहुंच रहा। इनमें से ज्यादातर फ्लैट ऊंची कीमत वाले हैं, इसीलिए बोर्ड की अगली बैठक में इनकी कीमत 27 फीसदी तक घटाई जा सकती है। आवास विकास परिषद के अधिकारी बताते हैं कि कुल 13,000 तैयार फ्लैट बिना बिके खड़े हैं, जिनसे बहुत वित्तीय नुकसान हो रहा है। इसी तरह लखनऊ विकास प्राधिकरण की योजनाओं में 3,000 से अधिक फ्लैटों को बार-बार पंजीकरण खोलने पर भी खरीदार नहीं मिल रहे।
सस्ते मकानों का दौर
मगर जानकार बताते हैं कि सुधारों के बाद इस क्षेत्र में भी गिरावट आई है। निवेश करने वाले ग्राहक गायब हुए हैं और वास्तविक खरीदार आ गए हैं। विकास प्राधिकरण में काम करने वाले मुकेश अग्रवाल कहते हैं कि कम कीमत वाले फ्लैटों और सस्ते प्लॉटों के लिए मारामारी मची हुई है। बैंक में काम कर रहे अमिताभ भट्टाचार्य को लगता है कि ब्याज दर कम होने से भी रियल एस्टेट को राहत मिलेगी। मध्य वर्ग का खरीदार बैंकों से कर्ज सस्ता होने का इंतजार कर रहा है और इसीलिए खरीदार पूछताछ के लिए आने लगे हैं, जिसका मतलब है कि अब बिक्री बढ़ेगी। लेकिन वह भी यही देख रहे हैं ग्राहक 15 से 30 लाख रुपये के मकानों को प्राथमिकता दे रहे हैं। यही वजह है कि पिछले दो साल में लक्जरी फ्लैट की कोई भी परियोजना नहीं आई है। जो लक्जरी फ्लैट बन गए हैं, उन्हें खरीदने वाले भी नहीं दिख रहे हैं।
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