हरेक परिसंपत्ति वर्ग को गुणवत्ता की जांच से गुजरना होता है। पिछले पांच वर्षों में खुदरा ऋण तेजी से बढ़ता क्षेत्र बन गए हैं, इसमें कोई अपवाद नहीं है। सतर्कता के पहले संकेत के तौर पर, कुछ महीने पहले एचडीएफसी बैंक, ऐक्सिस बैंक और बजाज फाइनैंस के प्रबंधन ने संकेत दिया था कि वे इस क्षेत्र को लेकर चौकस बने हुए हैं।
एचडीएफसी जैसे कुछ बैंकों ने जून तिमाही में खासकर असुरक्षित ऋणों समेत खुदरा कर्ज के लिए कई प्रावधान किए, जबकि आईसीआईसीआई बैंक ने पहली तिमाही में 1.9 प्रतिशत का सकल एनपीए दर्ज किया। आंकड़ों से संकेत मिलता है कि कैलेंडर वर्ष 2018 के आंकड़े सहज स्तर से मामूली ही ऊपर रहे।
मैक्वायरी कैपिटल के सुरेश गणपति का मानना है कि हालांकि खुदरा ऋण सेगमेंट में फंसे कर्ज में इजाफा नहीं हो सकता है, लेकिन वृद्घि से जुड़ी मंदी और देश में बढ़ रही बेरोजगारी को देखते हुए चिंताएं निश्चित तौर पर गहरा रही हैं।एक्सपेरियन क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक आशिष सिंघल का कहना है कि मौजूदा ऋण चक्र में पर्सनल लोन और लोन अगेन्स्ट प्रॉपर्टी पर सतर्क होने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'कर्जदार पहला ऋण बढऩे के बाद पर्सनल लोन ले रहे हैं। सभी परिसंपत्ति वर्गों में भुगतान चूक की समस्या भी बढ़ रही है। हालांकि यह समस्या ज्यादा चिंताजनक नहीं है।'
विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले महीनों में पर्सनल लोन की गुणवत्ता और उसके इस्तेमाल पर गंभीरता से नजर रखने की जरूरत होगी, क्योंकि बैंकिंग उद्योग को हाल के दौरान छोटे आकार के व्यक्तिगत ऋणों की मांग में तेजी देखने को मिली है। सिंघल का कहना है कि हालांकि 90 दिन के बाद बकाया में ज्यादा दबाव नहीं देखा गया है, लेकिन भुगतान 30 दिन और बढ़ गए हैं। यह ऋण अदायगी में समस्या शुरू होने का संकेत है।
हालांकि कर्ज का जाल अभी इतना भी गंभीर नहीं है, लेकिन लंबी मंदी और रोजगार संकट से स्थिति बदतर हो सकती है। उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायियों को ज्यादा उधारी देने के लिए सरकार द्वारा बैंकों को प्रोत्साहित किया गया है। लेकिन ये प्रयास बैंकों को कर्ज के जाल में फंसाएंगे या नहीं, यह देखने की जरूरत होगी।
क्या निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जीत पाएंगे भरोसा?
निजी और सरकारी बैंकों के बीच अंतर स्पष्टï करने वाला एक प्रमुख कारक पूंजी होता है। जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को सरकार का समर्थन लगातार मिला रहा है, वहीं निजी बैंकों को अपनी मजबूत ब्रांड इक्विटी से पूंजी जुटाने में मदद मिल रही है। अब तक, और वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2018 के बीच के कठिन दौर में भी, कई निजी बैंकों को पूंजी बाजारों में अवसर तलाशने में चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा था। इसकी वजह उनमें अपने प्रतिस्पर्धियों सरकारी बैंकों की तुलना में तेजी से बढऩे की उनकी क्षमता थी।
वित्त वर्ष 2020 में भी यह चुनौती देखी जा सकती है। ऐक्सिस बैंक का हाल में संपन्न हुआ पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) इस बात का साफ संकेत है कि बैंकों के लिए पूंजी आसानी से उपलब्ध नहीं भी हो सकती है। इस क्यूआईपी में 661.5 रुपये (यह कीमत 826 रुपये के अधिकतम स्तर से 20 फीसदी कम है)पर निर्धारित कीमत के मुकाबले लगभग पांच प्रतिशत की रियायत दी गई थी। येस बैंक की एक अरब डॉलर की धन जुटाने की योजना है। मगर अभी यह योजना सिरे नहीं चढ़ पाई है। हालांकि बैंक ने अगस्त में करीब 2,000 करोड़ रुपये जुटाए, लेकिन तब से उसकी शेयर कीमत गिरकर लगभग आधी रह गई है। निष्कर्ष यह है कि बैंकों को निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा। कई निजी बैंकों का मूल्यांकन पहले ही 15-50 प्रतिशत तक घट चुका है। अब बैंकों को पिछली वृद्घि दोहरानी होगी और परिसंपत्ति गुणवत्ता में भी सुधार करना होगा। अर्थात, सभी बैंकों को परिसंपत्ति गुणवत्ता का एक और झटका फिर सहन करना पड़ सकता है।
अपनी वित्तीय स्थिति, मजबूत परिचालन वृद्घि (खासकर पिछली 3 से लेकर 5 तिमाहियों में दर्ज की गई गैर-ब्याज आय से) पर ज्यादा प्रभाव डाले बगैर इन झटकों को सहन करने में सक्षम होना मूल्यांकन बचाए रखने के लिए जरूरी है। आने वाले महीनों में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की पूंजी निजी और सार्वजनिक बैंकों द्वारा जुटाई जानी है। इस कोशिश में वे किस तरह से सफल रहते हैं, इस पर नजर रखे जाने की जरूरत होगी।
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