हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे में 2.5 अरब डॉलर का दीर्घावधि तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) सौदा अहम था। सरकार एलएनजी की मांग बढऩे की उम्मीद कर रही है, वहीं उद्योग से जुड़े लोग भारत के ऊर्जा बॉस्केट में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी को लेकर संशय में हैं। भारत में गैस पाइपलाइन की क्षमता का इस्तेमाल अभी भी बहुत कम, करीब 40 प्रतिशत है, जबकि मौजूदा एलएनजी टर्मिनल क्षमता के 58 प्रतिशत पर चल रहे हैं।
भारत ने अगले 10 साल में करीब 30,000 करोड़ रुपये निवेश कर रीगैसीफिकेशन की क्षमता मौजूदा 375 लाख टन से बढ़ाकर करीब 740 लाख टन सालाना करने की योजना बनाई है, जिसमें जेटी और पाइपलाइन की लागत शामिल नहीं है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'कोच्चि और दाभोल में क्षमता का इस्तेमाल 10 प्रतिशत से नीचेर रहने से कुल मिलाकर औसत बहुत कम हो गया है। क्षमता को बढ़ाकर दोगुना करने की योजना है, लेकिन बड़ी चिंता मांग को लेकर है। अगर हम क्षमता उपयोग के मौजूदा स्तर को बरकरार रखना चाहते हैं तो बिजली क्षेत्र से मांग को भी मूर्त रूप देना होगा।' इस समय भारत में 5 टर्मिनल दाहेज, हजीरा, दाभोल, कोच्चि और एन्नौर में हैं।
जहां पेट्रोनेट एलएनजी के दाहेज टर्मिनल का कुछ महीनों में क्षमता उपभोग 100 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है, रॉयल डच शेल के हजीरा में क्षमता उपभोग करीब 95 प्रतिशत है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) में साझेदार और निदेशक अनिर्वाण मुखर्जी ने कहा, 'भारत में प्राकृतिक गैस की मांग में वृद्धि को देखते हुए अगले 10 साल में भारत में आरएलएनजी की मांग बढ़कर करीब 30-35 एमटीपीए हो जाने की उम्मीद है। अगर आप वैश्विक रूप से स्थिरता की स्थिति पर गौर करें तो एलएनजी टर्मिनल की क्षमता का उपयोग 50-55 प्रतिशत है। ऐसे परिदृश्य में वैश्विक औसत के हिसाब स 35 एमटीपीए मांग के लिए हम 70 एमटीपीए की क्षमता देख रहे हैं।'
मुखर्जी ने कहा कि अगर बिजली क्षेत्र भी शामिल करें तो मांग आगे और बढ़ सकती है। अनुमान के मुताबिक 5 एमटीपीए फ्लोटिंग स्टोरेज रीगैसीफिकेशन यूनिट (एफएसआरयू) बनाने के लिए करीब 3,000-4,000 करोड़ रुपये निवेश की जरूरत है। 25,000 मेगावॉट (एमडब्ल्यू) क्षमता की दबाव वाले गैस आधारित बिजली संयंत्रों को बहाल करने की कवायद के तहत पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के साथ बिजली मंत्रालय ई-आरएलएनजी योजना पर काम कर रहे हैं। इसके आधार पर पूल्ड घरेलू और एलएनजी गैस की नीलामी बिजली क्षेत्र के लिए की जा सकती है, जबकि बिजली दरों पर सब्सिडी दी जाएगी। इसी तरह की योजना 2015 में पेश की गई थी, जिसे बाद में बंद कर दिया गया. उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक गैस आधारित ये बिजली संयंत्र 5 डॉलर प्रति मिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमएमबीटीयू) की हाजिर दर पर प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं, जिसमें परिवहन लागत का भी समायोजन होगा। बहरहाल इस कीमत पर गैस हासिल करने की भारत की क्षमता निरंतर आधार पर होनी चाहिए, जो बिजली क्षेत्र के लिए अहम होगा।
2018-19 के दौरान भारत ने 21.7 एमटी एलएनजी का आयात किया, जो देश में कुल खपत का करीब 46.4 प्रतिशत है। अप्रैल से अगस्त 2019 के दौरान यह 51 प्रतिशत बढ़कर करीब 10.18 एमटी हो गया।
सरकार के अनुमान के मुताबिक गैस की खपत में बड़ा बदलाव सिटी गैस वितरण क्षेत्र से आएगा, क्योंकि इसकी वजह से एलएनजी खपत 73 मिलियन मीट्रिक स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रति दिन (एमएमएससीएमडी) से बढ़कर 2025 तक करीब 227 एमएमएससीएमडी होने की संभावना है। नवें और दसवें दौर की सीजीडी बोली पूरी होने के बाद प्राकृतिक गैस देश की 70 प्रतिशत आबादी तक पहुंचने की संभावना है। मुखर्जी ने कहा, 'सीजीडी में बदलाव अहम नहीं है। मांग में बढ़ोतरी तब मूर्त रूप लेगी, जब बिजली क्षेत्र से भी मांग आएगी।'
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