केंद्र सरकार निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में अदलाबदली करने की अनुमति देने के प्रस्ताव की समीक्षा कर रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा हाल में कर्मचारियों व नियोक्ताओं के प्रतिनिधियों के साथ सलाह मशविरे के लिए हुई बैठक के बाद पुनर्विचार का फैसला किया गया है। अगस्त महीने में सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम 1952 में संशोधन का प्रस्ताव किया था। इसमें यह सुझाव था कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को एनपीएस और ईपीएस में अपनी सुविधा मुताबिक फेरबदल की अनुमति दी जाए। एनपीएस में सेवानिवृत्ति योजना के तहत परिभाषित अंशदान होता है, जिसका प्रबंधन पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) द्वारा किया जाता है। वहीं ईपीएस का प्रबंधन कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा किया जाता है, जिसमें कर्मचारी की 58 साल की उम्र से निर्धारित पेंशन दिया जाना शामिल है जो कर्मचारी की मृत्यु तक मिलती है। अरुण जेटली ने वित्त मंत्री रहते केंद्रीय बजट 2015-16 के बजट भाषण में इस कदम की घोषणा की थी, जो अब दिवंगत हो चुके हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) सहित नियोक्ताओं के कुछ प्रतिनिधियों ने कहा कि इस कदम से कंपनियों का प्रशासनिक बोझ बढ़ सकता है, जिसमें कर्मचारियों का पेंशन खाता एनपीएस को भेजा जाएगा, जबकि कर्मचारी भविष्य निधि खाते का प्रशासन ईपीएफओ द्वारा जारी रखा जाएगा। कर्मचारी अपने वेतन (मूल वेतन और महंगाई भत्ते) का 12 प्रतिशत अंशदान करते हैं, जिससे जुड़ी योजनाएं ईपीएफओ देखता है। इसमें 12 प्रतिशत अंशदान नियोक्ताओं का होता है। इस राशि में से नियोक्ताओं का 8.33 प्रतिशत मासिक अंशदान, जिनका मासिक वेतन 15,000 रुपये तक होता है, ईपीएस में जाता है और सरकार इसमें वेतन का 1.16 प्रतिशत अंशदान कर्मचारियों के पेंशन खाते में करती है। श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार की अध्यक्षता में 24 सितंबर को हुई बैठक के दौरान कुछ उद्योग संगठनों ने कहा था कि इस कदम से कंपनियों के अनुपालन लागत बढऩे के साथ प्रशासनिक कठिनाइयां आ सकती हैं। नियोक्ताओं के कुछ प्रतिनिधियों ने मांग की कि श्रम मंत्रालय एक श्वेत पत्र जारी करे, जिसमें ईपीएस और एनपीएस के लाभों का विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन हो। नियोक्ताओं ने कर्मचारियों के ईपीएस फंड की स्थिति को लेकर भी संदेह जताया था, जो वर्षों से एकत्र हो रहा है और वे इसे एनपीएस में डालने का फैसला कर सकते हैं। आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ सहित श्रमिक संगठनों ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। बीएमएस ने कहा था, 'एनपीएस जोखिम भरा है क्योंकि यह बाजार से जुड़ा हुआ है। ईपीएफओ के एक अध्ययन के मुताबिक एनपीएस की तुलना में ईपीएस में रिटर्न कहीं ज्यादा है। ईपीएस में ज्यादा लाभ हंैं जिसमें परिवार के सदस्यों, बीमा, विधवा पेंशन आदि को शामिल किया गया है। वहीं धन निकासी के मामले में एनपीए की लॉक इन अवधि 15 साल है।' ईपीएफओ ने 2013 में एक अध्ययन कराया था, जिसमें यह सामने आया कि ईपीएस का सालाना रिटर्न र्म 2009 से मई 2013 के बीच 10.47 प्रतिशत रहा है, जो एनपीएस द्वारा घोषित रिटर्न की तुलना में ज्यादा है। सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन, इंडियन नैशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस सहित अन्य मजदूर संगठनों ने कहा कि कर्मचारियों से अंशदान परिभाषित पेंशन योजना में शामिल होने को कहने का आशय यह है कि सरकार कर्मचारियों को बाजार से वृद्धावस्था पेंशन खरीदने को लेकर दबाव डाल रही है, जहां उनकी पेंशन के लिए जीवन भर की बचत अनिश्चितता में डाल दिया जाएगा। श्रम मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक कर्मचारी अगर चाहेंगे तो वे फिर से ईपीएस का विकल्प अपना सकेंगे। नैशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विसेज कंपनीज (नैस्कॉम) ने अपनी प्रस्तुति में कहा था, 'ईपीएफ बिल 2019 में कर्मचारियों को किसी भी समय ईपीएस से एनपीएस और एनपीएस से ईपीएस अपनाने का विकल्प अपनाने का अधिकार दिया गया है। इसकी वजह से नियोक्ताओं पर प्रशासनिक बोझ हर उस समय पड़ेगा जब कर्मचारी यह विकल्प अपनाएंगे और नियोक्ता से पूरी धनराशि स्थानांतरित करने की उम्मीद की जाएगी।' ईपीएस से मुनाफा सिथर होता है और इसका भुगतान कर्मचारी के 58 साल के होने के बाद से मासिक आधार पर किया जाता है। वहीं एनपीएस से मुनाफे की पेशकश बाजार से जुड़ी है। सेवानिवृत्ति पर एनपीएस की 60 प्रतिशत राशि आयकर से मुक्त होती है और शेष 40 प्रतिशत का निवेश सालाना आधार पर होता है। वहीं ईपीएस को मासिक पेंशन आधारित पेंशन वाली आय के रूप में परिभाषित किया गया है, जो कर मुक्त है।
