धातु कंपनियों को सता रहा आरसीईपी से आयात का डर | जयजित दास / भुवनेश्वर October 11, 2019 | | | | |
देश के धातु उत्पादक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से भारत में आयात और बढ़ जाएगा तथा स्थानीय उत्पादकों की जगह भागीदार देश समृद्ध होंगे। भारतीय धातु उत्पादक, खास तौर पर तांबा और एल्युमीनियम वाले उत्पादक पहले ही दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से किए जाने वाले आयात की बाढ़ से घिरे हुए हैं। घरेलू उत्पादकों को मुश्किल में धकेलते हुए ये देश विशेष रूप से मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) जैसी संधियों का लाभ उठा रहे हैं। व्यापार की असमान रियायतों के नतीजतन अब घरेलू खपत में तांबा आयात की हिस्सेदारी एक-तिहाई हो चुकी है, जबकि एल्युमीनियम आयात का हिस्सा आश्चर्यजनक रूप से 60 प्रतिशत है।
भारतीय प्राथमिक तांबा उत्पादक संघ (आईपीसीपीए) के महासचिव संजय कर्ण ने कहा कि अगर आरसीईपी पर हस्ताक्षर किए जाते हैं तो यह घरेलू तांबा उद्योग के लिए नुकसानदेह होने जा रहा है। आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ) भारत के लिए खराब साबित हुआ है। व्यापार घाटा बढ़ा है। अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो तांबा विनिर्माताओं की हिस्सेदारी अगले दो से तीन वर्षों में कम होकर 50 तक पहुंचने का अनुमान है। आरसीईपी 16 देशों का आर्थिक समूह है जिसमें चीन भी शामिल है। आरसीईपी देशों के साथ भारत का व्यापार 100 अरब डॉलर आंका जाता है जिसमें केवल चीन के साथ ही 50 अरब डॉलर मूल्य का द्विपक्षीय व्यापार होता है, जबकि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता रखनेवाले आसियान देशों का व्यापार 13 अरब डॉलर रहता है।
तांबा उत्पादन में देश की क्षमता 10 लाख टन है। पांच साल में यह उत्पादन दोगुने से भी ज्यादा होकर 24 लाख टन होने जा रहा है क्योंकि घरेलू कंपनियों ने 14,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। लेकिन अगर देश कंपनियों के हितों की रक्षा किए बिना जल्दबाजी में आरसीईपी समूह में शामिल होता है तो यह निवेश खतरे में पड़ जाएगा। आईपीसीपीए ने वाणिज्य मंत्रालय के सामने अपनी मांगों की सूची रखी है। 2019-20 के बजट में शुल्कों के संबंध में मौन रहने से आईपीसीपीए चिंतित था। देश द्वारा आरसीईपी में शामिल होने से पहले एसोसिएशन ने अपनी कुछ पुरानी मांगों को फिर से ताजा किया है। कर्ण ने कहा कि हमने कच्चे माल के आयात पर शून्य शुल्क की मांग की है क्योंकि 95 प्रतिशत कॉपर कॉन्सन्ट्रेट का आयात किया जाता है। इसके अलावा हमने कॉपर कैथोड और छड़ों को आरसीईपी के दायरे से बाहर रखने की मांग की है। इसके अलावा हमने मूल स्थान के नियमों में भी बदलाव का सुझाव दिया है।
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