सोयाबीन उत्पादन में 17 फीसदी की गिरावट | दिलीप कुमार झा / मुंबई October 11, 2019 | | | | |
इस साल भारत के सोयाबीन उत्पादन में 17 फीसदी की गिरावट आ सकती है। इसकी वजह है कि बाढ़ के कारण पानी भर जाने से सोयाबीन का उत्पादन करने वाले बड़े क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फसल को नुकसान पहुंचा है। इंदौर स्थित शीर्ष औद्योगिक निकाय सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) की ओर से जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि चालू कटाई सीजन में भारत का कुल सोयाबीन उत्पादन 90 लाख टन है जबकि पिछले वर्ष यह 109 लाख टन रहा था। पिछले वर्ष का यह आंकड़ा संशोधित कर घटाया गया था। सोपा ने पहले खरीफ कटाई सीजन 2018 के लिए भारत का कुल सोयाबीन उत्पादन 114.8 लाख टन अनुमानित किया था।
सोपा के चेयरमैन दविश जैन ने कहा, 'किसानों ने 25 जून से 15 जुलाई के बीच इन राज्यों में आक्रामक तौर पर सोयाबीन की बुआई की थी। हालांकि महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में बुआई जुलाई के अंतिम हफ्ते तक जारी रही। लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के निचले इलाकों में पानी भर जाने से सोयाबीन की फसल को व्यापक नुकसान पहुंचा और यह 30 फीसदी तक प्रभावित हुआ। इससे औसत उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है।' मॉनसून के आगमन में तीन हफ्तों की देरी के बावजूद सोयाबीन की बुआई पर कोई असर नहीं पड़ा था क्योंकि किसानों ने मौसमी बारिश से पहले ही जमीन तैयार कर ली थी। सोपा ने सोयाबीन उगाने वाले सभी बड़े क्षेत्रों में अलग अलग टीमें भेजकर एक व्यापक सर्वेक्षण कराया था। टीम ने पाया कि महाराष्ट्र के लातूर, बीड और उस्मानाबाद जिलों में बीज अंकुरण के समय 30 से 35 दिनों तक सूखा पडऩे से उत्पादन पर असर पड़ा है।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच और रतलाम जिलों में भारी बारिश के कारण खेतों में पानी जमा हो जाने से बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान पहुंचने की बात सामने आई थी। जैन ने कहा कि राजस्थान के बारां, प्रतापगढ़ और झालावाड़ जिलों में सोयाबीन के फसलों को भारी बारिश से नुकसान पहुंचे की खबर थी। सोपा के अनुसार सोयाबीन के कुल रकबे में भी भारी कमी आई है। 2019 में इसका रकबा 1.076 करोड़ हेक्टेयर है जबकि पिछले वर्ष इसका रकबा 1.084 करोड़ हेक्टेयर रहा था। पौधों में फूल आने के समय बाढ़ आने से पैदावार में भारी गिरावट आई है। इस साल मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन आश्यर्चजनक रूप से 31 फीसदी घटकर 40 लाख टन रहने का अनुमान है जबकि पिछले वर्ष यह 58 लाख टन रहा था।
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