मोदी-शी के लिए सजा महाबलीपुरम | टी ई नरसिम्हन / October 10, 2019 | | | | |
तमिलनाडु का ऐतिहासिक तटीय शहर मामल्लापुरम (महाबलीपुरम) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच दो दिवसीय 'अनौपचारिक' शिखर सम्मेलन के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका है। यह बैठक शुक्रवार से शुरू होगी। दोनों पड़ोसी देशों के बीच यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब हाल में चीन ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के भारत के फैसले की आलोचना की थी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मुद्दा उठाया था। इसके जवाब में भारत ने कहा था कि उसे अपने आंतरिक मामलों में किसी का दखल बर्दाश्त नहीं है। भारत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपैक) के भी खिलाफ रहा है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से गुजरता है।
भारत में चीन के राजदूत सुन वेइडोंग ने कहा, 'हमें क्षेत्रीय विवादों का समाधान बातचीत के जरिये शांतिपूर्ण ढंग से करना चाहिए और मिलकर क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता बनाए रखनी चाहिए।' बैठक के दौरान मोदी और चिनफिंग अकेले में भी बातचीत करेंगे। दोनों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाने पर भी चर्चा होने की उम्मीद है। मोदी ने दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद जून में शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के बिश्केक सम्मेलन में चिनफिंग को भारत आने का न्योता दिया था, जिसे चीनी राष्ट्रपति ने स्वीकार किया था। यह दोनों नेताओं के बीच दूसरी अनौपचारिक शिखर बैठक है। पहली बैठक चीन के वुहान में अप्रैल 2018 में हुई थी। गौरतलब है कि अब चीन भारत से चावल और चीनी का आयात कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछली अनौपचारिक शिखर बैठक में शी से भारत से चावल और चीनी का आयात करने का आग्रह किया था।
इस बीच, चेन्नई शहर और इसे महाबलीपुरम से जोडऩे वाली सड़क को सजाया-संवारा गया है। महाबलीपुरम यूनेस्को की वैश्विक धरोहर सूची में शामिल है। यह पल्लव राजवंश के शासनकाल में पत्थर की नक्काशी और चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। चेन्नई से शिखर वार्ता स्थल तक के 60 किलोमीटर के रास्ते को सजाने के लिए विभिन्न विभागों के सैकड़ों कामगार दिनरात जुटे रहे। इसी मार्ग से दोनों नेता सम्मेलन स्थल तक पहुंचेंगे। इस सड़क को चमकाया गया है, गड्ढों को भरा गया है और रिफ्लेक्टर लगाए रहे हैं। स्कूली बच्चों ने दीवारों को सुंदर पेंटिंगों से सजाया है। इसके अलावा इस रास्ते को हरा-भरा बनाने के लिए भी प्रयास किए गए हैं।
एयर चाइना का मालवाहक विमान मंगलवार शाम को चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरा था, जिसमें चार कार आई हैं। ये कार चीनी राष्ट्रपति के वाहनों के काफिले का हिस्सा होंगी। चीनी राष्ट्रपति के शुक्रवार दोपहर चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरने की संभावना है। यहां से वह आईटीसी ग्रैंड चोला जाएंगे और फिर महाबलीपुरम पहुंचेंगे। वह उसी शाम चेन्नई लौट आएंगे। वहीं प्रधानमंत्री मोदी चेन्नई हवाई अड्डे से हेलीकॉप्टर से तिरुबंदाई पहुंचेंगे और फिर कार से ताज फिशरमैन्स कोव जाएंगे, जहां वह रात को रुकेंगे।
चीनी राष्ट्रपति अपनी 18 फुट लंबी और 6.5 फुट चौड़ी और पांच फुट ऊंची कार से जाएंगे। इस कार का वजन 3,152 किलोग्राम है। यह महज 8 सेकंड में शून्य से 100 किलोमीटर की रफ्तार पकड़ सकती है। चीनी राष्ट्रपति चेन्नई के होटल से महाबलीपुरम इसी कार से जाएंगे। अति विशिष्ट व्यक्तियों के दौरे को सुरक्षित और आसान बनाने के लिए इस रास्ते पर यातायात पूरी तरह बंद रहेगा। इस रास्ते पर आईटी कंपनियों के सैकड़ों कार्यालय, करीब 50 स्कूल और 20 कॉलेज हैं। कई जगहों पर स्कूली बच्चों के खड़े होने और चीनी राष्ट्रपति का अभिवादन करने के लिए आवश्यक इंतजाम किए गए हैं। कलाकार 34 स्थानों पर देश की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन करेंगे।
चीनी राष्ट्रपति के दौरे के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। चेन्नई से महाबलीपुरम के मार्ग, सम्मेलन स्थल और होटलों में करीब 15 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। इसके अलावा उन स्मारकों पर भी कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं, जहां दोनों नेता जाएंगे। तिब्बतियों की विरोध-प्रदर्शन की चेतावनी से सुरक्षा और बढ़ाई जा सकती है। दोनों नेता सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद शनिवार शाम चेन्नई से रवाना होंगे। सूूत्रों के मुताबिक इस सम्मेलन के लिए महाबलीपुरम के चयन की वजह केवल इसकी सांस्कृतिक विरासत या चीन के साथ ऐतिहासिक संबंध नहीं हैं। चीनी राष्ट्रपति और उनके शीर्ष अधिकारियों को लाने वाले विमान को बड़े रनवे की जरूरत थी। लेकिन ऐसा रनवे उन शहरों में उपलब्ध नहीं था, जहां सम्मेलन आयोजित करने के लिए विचार किया गया। ऐसा रनवे मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी उपलब्ध नहीं है। चेन्नई में ऐसे बड़े विमान के उतरने के लिए बुनियादी ढांचा है।
रिपोर्टों के मुताबिक उपलब्ध साहित्य से पता चलता है कि पल्लव राजाओं के चीन के साथ कारोबारी एवं रक्षा संबंध थे। पल्लव राजाओं ने चीन से वादा किया था कि वे तिब्बत को एक ताकत के रूप में उभरने से रोकने में मदद करेंगे। माना जाता है कि चीन के प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुओं में से एक बोधिधर्म पल्लव नरेश का तीसरा बेटा था। बोधिधर्म कांचीपुरम से महाबलीपुरम होते हुए 527 ईस्वी में चीन गया था।
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