क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के नियमन के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के जांच दायरे में आई है। सतर्कता आयोग ने बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की भूमिका और इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) वित्तीय धोखाधड़ी मामले की जांच की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी है। सूत्रों के अनुसार सतर्कता कार्यालय रेटिंग प्रक्रिया में प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में पता लगाने का प्रयास कर रहा है। साथ ही आयोग यह भी जानना चाहता है कि आईएलऐंडएफएस मामला उजागर होने से पहले नियामक को रेटिंग एजेंसी और कंपनी के पूर्व प्रबंधन के बीच सांठगांठ का कोई संकेत मिला था या नहीं। समझा जाता है कि सीवीसी मामले की तहत तक जाना चाहता है और यह भी समझना चाहता है कि आईएलऐंडएफएस का मूल्यांकन करते समय रेटिंग फर्मों को वित्तीय संकट का संकेत क्यों नहीं लगा। सूत्रों ने बताया कि सतर्कता आयोग ने हाल ही में सेबी से रेटिंग फर्मों के नियमन और उनकी निगरानी के तरीके का पूरा ब्योरा मांंगा है। साथ ही उसने सेबी से यह भी पूछा है कि रेटिंग प्रक्रिया और रेटिंग की पद्घति में निगरानी के पूरे उपाय शामिल होते हैं या नहीं। किसी तरह की गड़बड़ी के मामले में नियामक किस स्तर पर हस्तक्षेप करता है, उसकी भी जानकारी मांगी गई है। उसने कुछ ऐसी जानकारी भी मांगी है, जिससे पता लग सके कि रेटिंग फर्में जोखिम का पता देर से क्यों लगा पाईं। सूत्रों ने कहा कि नियामक ने सतर्कता कार्यालय द्वारा मांगी गई सूचनाएं मुहैया करा दी हैं। नियामक के जानकार सूत्र ने कहा कि बयान दर्ज किए जा रहे हैं और उसके अनुसार दोषी के खिलाफ जुर्माना लगाया जाएगा। हम कुछ ऑडिट रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं और रेटिंग फर्मों द्वारा बाह्य जांच कराई जा रही है। बाजार नियामक फिलहाल तीन रेटिंग फर्मों - इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च, इक्रा और क्रेडिट एनालिसिस ऐंड रिसर्च (केयर) की जांच कर रहा है। इन फर्मों पर आईएलऐंडएफएस को अच्छी रेटिंग सुनिश्चित करने के लिए काम करने का आरोप है। सितंबर 2018 में आईएलऐंडएफएस द्वारा चूक होने और अचानक उसकी रेटिंग घटाए जाने के बाद सेबी ने इन फर्मों के खिलाफ जांच शुरू की थी। इन फर्मों ने आईएलऐंडएफएस को सर्वोच्च एएए रेटिंग दी थी, जबकि सहायक इकाई आईएलऐंडएफएस ट्रांसपोर्ट नेटवक्र्स जून में ही चूक कर चुकी थी। सितंबर में बॉन्ड भुगतान में चूक के बाद इसकी रेटिंग उच्च निवेश ग्रेड से घटाकर डिफॉल्ट या जंक की श्रेणी में डाल दी थी। सेबी की जांच अभी पूरी नहीं हुई है लेकिन इक्रा ने अपने प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी नरेश टक्कर को निलंबित कर दिया है। केयर ने भी अपने मुख्य कार्याधिकारी राजेश मोकाशी को जांच पूरी होने तक छुट्टी पर भेज दिया है। सतर्कता कार्यालय का इस तरह के मामले में हस्तक्षेप करना कोई नया नहीं है। इससे पहले सीवीसी ने सेबी को समयबद्घ तरीके से अपनी जांच पूरी करने का निर्देश दिया था। इसमें देरी होने पर सेबी को उसकी वजह बताने को कहा गया था। एक दिशानिर्देश जारी कर कहा गया था कि अंतरिम आदेश पारित करने के एक साल के अंदर अंतिम आदेश आना चाहिए। इसमें देरी होने पर बोर्ड को इसकी जानकारी देनी होगी। इस निर्देश के बाद नियामक मामले की प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना शुरू किया और पहले पुराने मामलों का निपटारा करना शुरू किया। रेटिंग फर्मों में निवेशकों का भरोसा बना रहे, इसके लिए सेबी नियमों को सख्त बना रहा है। रेटिंग फर्मों को कंपनी की नकदी की स्थिति का आकलन कर उसके चूक करने की आशंका का एक साल पहले खुलासा करना अनिवार्य किया है।
