'मैट क्रेडिट छोडऩे का कोई मतलब नहीं' | सुदीप्त दे / October 08, 2019 | | | | |
सरकार ने जीडीपी वृद्धि और अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए एक प्रमुख कदम उठाते हुए पिछले महीने नई कॉरपोरेट कर प्रणाली की घोषणा की है। प्रमुख धातु सह खनन कंपनी वेदांत लिमिटेड की समूह प्रमुख (कराधान) पल्लवी जोशी बखरू ने सुदीप्त दे से बातचीत में बताया कि कुछ बड़े समूहों को कर दरों में कटौती का तत्काल फायदा क्यों नहीं मिल सकता है। पेश हैं मुख्य अंश:
सीबीडीटी ने स्पष्टï किया है कि 22 फीसदी कॉरपोरेट कर का लाभ लेने वाली कंपनियों को मैट क्रेडिट का फायदा नहीं मिलेगा। बड़े उद्योग समूहों के लिए इसका मतलब है?
हमारे जैसे बड़े उद्योग समूहों के लिए टैक्स हॉलिडे और अतिरिक्त अवमूल्यन लाभ के साथ पुरानी कर प्रणाली में बरकरार रहना ही आकर्षक दिख रहा है क्योंकि काफी पूंजीगत खर्च किया है। अच्छी बात यह है कि नई कर प्रणाली में जाने के लिए हमारे पास हमेशा विकल्प है और अधिकांश कर लाभ एवं मैट क्रेडिट का इस्तेमाल करने के बाद भी हम उस ओर रुख कर सकते हैं।
क्या अच्छे खासे मैट क्रेडिट वाली कंपनियों को हालिया अध्यादेश के तहत की गई कर कटौती का लाभ मिलेगा?
जहां तक कर का सवाल है तो वह कभी पर्याप्त नहीं होता! विशेषकर संसाधन वाली कंपनियों के लिए। भारतीय खनन उद्योग संघ यानी फिमी ने यह बताने के लिए कुछ आंकड़े दिए हैं कि रॉयल्टी, उपकर आदि के कारण खनन कंपनियों के लिए कर की प्रभावी दर 58 फीसदी तक पहुंच गई है। हालांकि मैट दरों में कटौती किए जाने से मैट क्रेडिट में तेजी से कमी आएगी और इस प्रकार तत्काल नकदी की बचत होगी जो स्वागतयोग्य है।
क्या बड़ी कंपनियों को नई कर प्रणाली में जाने से पहले मैट क्रेडिट का फायदा उठाना बेहतर रहेगा?
मैट क्रेडिट पूर्व में किए गए अधिक नकद भुगतान को दर्शाता है। इसलिए पहली नजर में लगता है कि उसे छोडऩे का किसी कंपनी के लिए कोई मायने नहीं है। लेकिन कंपनियों को खुद अपनी लागत और लाभ का विश्लेषण करना चाहिए और उस आधार पर निर्णय लेना चाहिए कि कौन सी कर प्रणाली उनके लिए बेहतर रहेगी।
नई कर प्रणाली में जाने के लिए कंपनियां कब तक निर्णय ले सकती हैं?
यह परिपत्र काफी लचीला है और कंपनियों को 1 अप्रैल 2020 से शुरू होने वाले आकलन वर्ष अथवा उसके बाद किसी अन्य आकलन वर्ष से नई कर प्रणाली में जाने की अनुमति देता है। इसलिए कंपनियां अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर इस वित्त वर्ष से अथवा किसी अन्य वित्त वर्ष से रिटर्न दाखिल करने से पहले नई कर प्रणाली को अपनाने के संबंध में निर्णय ले सकती हैं। जाहिर तौर पर इस 22 फीसदी कर प्रणाली को चुनते ही कंपनियां टैक्स हॉलिडे और मैट क्रेडिट का लाभ लेने के लिए पुरानी व्यवस्था में लौट नहीं सकेगी। इसलिए सभी कंपनियों के पास अगले साल रिटर्न भरने तक का समय है और वे अपने लागत लाभ के विश्लेषण के आधार पर यह निर्णय ले सकती हैं कि उनके लिए तत्काल नई कर प्रणाली को अपनाना बेहतर रहेगा अथवा उन्हें टैक्ट हॉलिडे के लाभ और मैट क्रेडिट के इस्तेमाल के बाद उस ओर रुख करना चाहिए। आप वर्तमान में कभी भी अथवा भविष्य में इस नई योजना को अपना सकते हैं लेकिन इसे अपनाने के बाद पुरानी प्रणाली में लौटना संभव नहीं होगा।
वित्तीय नतीजों पर कर दरों में बदलाव के प्रभाव का आकलन आप कैसे करेंगे?
इसके लिए नई कर प्रणाली में जाने वाली कंपनियों को अपनी बची हुई कर परिसंपत्तियों एवं दायित्वों का नए सिरे से खुलासा करना होगा। उन्हें बताना होगा कि उपकर एवं अधिभार सहित 30 फीसदी कर के मुकाबले 22 फीसदी दर वाली नई प्रणाली का क्या प्रभाव होगा। जाहिर तौर पर कर की प्रभावी दर (ईटीआर) में भी गिरावट आएगी और इस प्रकार प्रति शेयर आय (ईपीएस) में बढ़ोतरी होगी।
वेदांत समूह ने हाल में वित्त वर्ष 2019 के लिए 'कर पारदर्शिता रिपोर्ट' जारी की है। इस साल की रिपोर्ट पहले के मुकाबले किस प्रकार अलग होगी?
वास्तव में हम जो आंकड़े देते हैं उससे कोई बदलाव नहीं होता है। यह महज एक संदेश है। पिछले साल हमने सरकारी खजाने में महज योगदान के बजाय उसके प्रभाव के बारे में बताने के लिए आर्थिक मूल्य सृजन एवं आर्थिक मूल्य वितरण की अवधारणा को शामिल किया था। इस साल अब तक का सर्वाधिक योगदान रहा है। साथ ही हमने पिछले छह वर्षों के दौरान सरकारी खजाने में कुल योगदान का भी आकलन किया है जो 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक है और यह इस अवधि के दौरान हमरे कुल कारोबार का औसतन 44 फीसदी को दर्शाता है।
क्या इससे कर मुकदमेबाजी के मोर्चे पर कोई राहत मिलेगी?
अप्रत्यक्ष करों के लिए एमनेस्टी स्कीम, विभिन्न अपीलीय स्तर पर अपील के लिए विभागों की मौद्रिक सीमाओं में विस्तार और ई-आकलन जैसे तमाम उपायों की घोषणा की है लेकिन जमीनी स्तर पर उल्लेखनीय बदलाव दिखना अभी बाकी है। मुझे लगता है कि इसमें थोड़ा वक्त लगेगा।
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