समुचित कदम | संपादकीय / October 06, 2019 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने शुक्रवार को नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंक की कमी कर दी। यह काफी हद तक अनुमानों के अनुरूप ही था। हालांकि कुछ प्रतिभागियों को ज्यादा बड़ी कटौती की उम्मीद थी। एमपीसी ने बड़ी कटौती न करके आर्थिक मंदी के दौर में सही कदम उठाया है। केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्घि दर के अनुमान को भी 6.9 फीसदी से कम करके 6.1 फीसदी कर दिया। यह कहा जा सकता है कि वृद्घि के अनुमानों में कमी के चलते दरों में बड़ी कटौती की आवश्यकता थी, खासतौर पर इसलिए क्योंकि मुद्रास्फीति के 4 फीसदी के दायरे के भीतर रहने का अनुमान है। अपनी पिछली बैठक में जीडीपी वृद्घि अनुमान में कमी न होने पर भी समिति ने नीतिगत दर 35 आधार अंक कम की थी।
बहरहाल, 25 आधार अंक की कटौती की उचित वजह थी। गत सप्ताह के नीतिगत कदम के पहले एमपीसी ने चालू चक्र में नीतिगत दर में 110 आधार अंक की कमी की है। यह पूरी तरह पारेषित नहीं हुआ। फरवरी-अगस्त के बीच वाणिज्यिक बैंकों के नए ऋण की औसत ऋण दर में केवल 29 आधार अंक की कमी आई जबकि मौजूदा ऋण की दर में सात आधार अंक का इजाफा हुआ। चूंकि पारेषण अत्यंत कम है इसलिए कुछ नीतिगत गुंजाइश बनाकर व्यवस्था को समायोजन की मोहलत देना उचित है। ऋण दर को बाहरी मानकों से जोडऩे से पारेषण में सुधार होना चाहिए। हालांकि इससे बैंकिंग तंत्र के सामने अलग तरह की चुनौती आ सकती है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर बढ़ती अनिश्चितता के बीच कुछ नीतिगत गुंजाइश बचाकर रखना समझदारी होगी। शुक्रवार को ही जारी मौद्रिक नीति रिपोर्ट दर्शाती है कि वैश्विक वृद्घि दर में 50 आधार अंक की कमी हमारे देश की वृद्घि दर में 20 आधार अंक तक की कमी ला सकती है।
हालांकि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि केंद्रीय बैंक के पास ऐसी कोई वजह नहीं है कि वह राजकोषीय घाटे को तय सीमा में रखने के प्रति सरकार की प्रतिबद्घता पर शुबहा करे। परंतु यह संभव है कि एमपीसी के सदस्यों ने राजकोषीय विचलन की संभावना पर विचार किया हो। एमपीसी के सदस्यों ने अतीत में भी राजकोषीय प्रबंधन को लेकर चिंता प्रकट की है। उदाहरण के लिए अगस्त की बैठक में चेतन घाटे ने कहा था, 'मुझे लगातार चिंता हो रही है कि हमारे सरकारी क्षेत्र की भारी-भरकम उधारी आवश्यकता (जीडीपी के 8-9 फीसदी के बराबर) राजकोषीय असंतुलन अर्थव्यवस्था को गहरे तक प्रभावित करेगी।'
उन्होंने कहा कि राजकोषीय फिसलन के पथ को सीमा के रूप में देखा जाना चाहिए लेकिन सीमा का अभिसरण भी होता है और एक तरह का 'रचनात्मक लेखा' देखने को मिलता है। जाहिर है राजकोषीय फिसलन मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान और मौद्रिक नीति के चयन को प्रभावित कर सकती है। हालांकि दरों संबंधी निर्णय के बाद शेयर कीमतों और बॉन्ड कीमतों में गिरावट आई। इसके लिए आंशिक रूप से धीमी वृद्घि के पूर्वानुमान से जुड़ी चिंता और ज्यादा कटौती की उम्मीद जिम्मेदार थी। हालांकि एमपीसी ने कहा है कि वह वृद्घि को गति देने की आवश्यकता होने पर अपने रुख में समायोजन जारी रखेगी। परंतु बाजार अब जानना चाहेंगे कि नीतिगत दरों में कितनी कमी की जा सकती है। स्पष्टï है कि समायोजन वाले रुख का यह मतलब नहीं है कि एमपीसी हर दो महीने में दरों में कटौती करेगी ही। यह स्पष्टï नहीं है कि केंद्रीय बैंक वृद्घि को सहायता देने के लिए वास्तविक दरों में कितनी कमी करने को तैयार होगा। समिति को इस विषय को स्पष्टï करना होगा। ज्यादा स्पष्टï होने से पारेषण में सुधार होगा और लंबी अवधि की मुद्रास्फीति के अनुमान भी संभलेंगे। आधुनिक केंद्रीय बैंकों के पास संचार के रूप में एक अहम उपाय है जिसका प्रभावी इस्तेमाल होना चाहिए।
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