लोन मेले में नहीं उमड़ी ग्राहकों की भीड़ | |
सोमेश झा और अभिषेक रक्षित / नई दिल्ली/कोलकाता/बेंगलूरु 10 03, 2019 | | | | |
► सार्वजनिक बैंकों के साथ निजी बैंक और एनबीएफसी ने भी दर्ज कराई उपस्थिति
► बैंकों का दावा सैकड़ों लोगों को दिए गए कर्ज लेकिन अधिकांश के आवेदन पहले से प्रक्रिया में थे
► नए ग्राहकों को आकर्षित करने में बैंकों को हो रही मुश्किल
अगर आप यह मानकर लोन मेले में जाने की सोच रहे हैं कि आपके आवेदन पर तत्काल ऋण मंजूर कर रकम का आवंटन कर दिया जाएगा, तो आपको निराशा का सामना करना पड़ सकता है। गुरुवार को देश भर में शुरू हुए लोन मेले में बैंक ग्राहकों को यह दिखाना चाह रहे हैं कि वे कर्ज देने के लिए तैयार हैं लेकिन कर्ज के आवेदन को तत्काल मंजूरी नहीं दी जा रही है। कॉर्पोरेशन बैंक के महाप्रबंधक विजय वालिया ने कहा, 'यह लोगों तक पहुंच बढ़ाने का अभियान है, जिसके जरिये यह दर्शाना है कि बैंक कर्ज देने में पीछे नहीं है। कुछ लोगों के मन में यह धारणा है कि बैंक कर्ज मंजूर नहीं कर रहे हैं और लोन मेले का मकसद इसी मिथक को तोड़ना है।'
हालांकि कुछ ग्राहकों को कर्ज मंजूरी के पत्र दिए गए लेकिन उनमें से अधिकांश के ऋण आवेदन पर पिछले कुछ हफ्तों से बैंक की शाखा में काम चल रहा था या कुछ दिनों पहले उन्हें सैद्घांतिक मंजूरी दी जा चुकी थी। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ऋण के लिए आवेदन करने वाले ऐसे ग्राहकों को कॉल करके बताया था कि वे इन शिविरों में आकर अपने ऋण मंजूरी का पत्र ले लें। बैंकों से ऋण मंजूरी का पत्र पाने वाले ग्राहकों से जब बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बताया की तो उन्होंने कहा कि कुछ दिनों या हफ्तों पहले उन्होंने ऋण के लिए बैंक की शाखा में आवेदन किया था। दिल्ली में केनरा बैंक द्वारा आयोजित ऋण शिविर एक समारोह की तरह है जहां संबंधित ग्रााहकों को मंच पर बुलाकर उन्हें ऋण मंजूरी के पत्र दिए गए।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अंतर्गत बैंक ऑफ बड़ौदा से डेढ़ लाख रुपये का कर्ज पाने वाले शैलेंद्र कुमार मिश्रा ने कहा कि उन्होंने एक महीने पहले कर्ज के लिए आवेदन किया था। उन्होंने बताया, 'बैंक के अधिकारी की ओर से आज सुबह फोन आया था जिसमें शिविर में आकर मंजूरी पत्र लेने को कहा गया था।'
कुछ शिविर टेंट में लगाए गए, वहीं अन्य जगहों पर सामुदायिक हॉल या स्थानीय क्लबों में लगाए गए हैं। बेंगलूरु के सेंट्रल कॉलेज परिसर में कर्नाटक के लोकनृत्य 'डोलू कुनीता' से ग्राहकों का स्वागत किया गया। ग्राहकों ने भी इसका पूरा आनंद लिया। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के शाखा प्रबंधक के अनुरोध पर एक ग्राहक ने बॉलीवुड फिल्म का चर्चित गाना 'गुलाबी आंखें...' गाकर सुनाया।इस आयोजन को सफल बनाने के लिए बैंकों के शाखा प्रमुखों से पांच ग्राहकों को लाने और उन्हें कर्ज देने को कहा गया था। हालांकि नए ग्राहकों की मौजूदगी कम दिखी।
इस बारे में एक सार्वजनिक बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक ने कहा कि इसकी दो वजह रही : कुछ शिविर सामुदायिक हॉल में लगाए गए हैं, वहीं बैंकों को इसके प्रचार-प्रसार का अवसर नहीं मिला। उन्होंने कहा कि बैंकों को जिन जिलों में शिविर लगाने हैं, उनकी अंतिम सूची सोमवार को ही दी गई थी। बैंक अधिकारियों ने कहा कि इसका व्यापक प्रचार तो नहीं किया जा सका लेकिन ग्राहकों को ईमेल और एसएमएस से इसकी जानकारी दी गई।भारतीय स्टेट बैंक के दिल्ली के मुख्य महाप्रबंधक विजय रंजन ने कहा कि अगर आवेदक सभी जरूरी दस्तावेजों के साथ आता है तो उसे एमएसएमई 59 मिनट पोर्टल के माध्यम से 59 मिनट के अंदर सैद्धांतिक मंजूरी दी जा सकती है। लेकिन अंतिम मंजूरी या कर्ज का आवंटन अन्य आवेदकों की तरह सामान्य प्रक्रिया के तहत किया जाएगा।
वालिया ने कहा, 'लोग सोचते हैं कि वे हमसे संपर्क करेंगे और कर्ज हासिल कर लेंगे। लेकिन हम जनता के पैसों से कारोबार करते हैं और जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा जरूरी है। इसलिए हम कर्ज देने में सतर्कता बरतते हैं।' रंजन ने कहा कि बैंकों को इन शिविरों पर खर्च करना पड़ रहा है। एसबीआई दिल्ली में प्रत्येक शिविर पर 3 से 4 लाख करोड़ खर्च कर रहा है। उन्होंने कहा कि बैंक लोगों के बीच यह संदेश देना चाहते हैं कि वे अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए बैंकों के पास आएं, साथ ही यह दिखाना चाहते हैं कि बैंकों की वित्तीय स्थिति खराब नहीं है। एसबीआई ने दिल्ली के नेहरू प्लेस में भी शिविर लगाया है, जहां एनबीएफ पैसालो डिजिटल, सैजा फाइनैंस और आधार हाउसिंग फाइनैंस भी मौजूद है। लेकिन पहले दिन शिविर में ग्राहकों से ज्यादा बैंक के कर्मचारी ही नजर आए।
सुभाष घोष नाम के एक शख्स अपने खाद्य प्रसंस्करण स्टार्टअप के विस्तार के लिए 1 करोड़ रुपये के कर्ज की चाहत में शिविर में सभी ऋणदाताओं के पास गए। लेकिन बाद में वे अपनी वित्तीय टीम के साथ बेहतर विकल्प की तलाश में वहां से चले गए। 32 वर्षीय प्रमोद कुमार को भी निराशा हाथ लगी। उन्होंने कहा कि मैं कपड़े बनाने के कारोबार से जुड़ा हूं और बैंकों से कर्ज की मांग की। लेकिन बैंकों ने काफी सख्त शर्तें बताईं।
(साथ में देवाशिष महापात्र)
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