सफलता के सफर में मील के नए पत्थर | परमेश्वरन अय्यर / October 01, 2019 | | | | |
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता से यह उम्मीद बंधी है कि देश जल आपूर्ति हासिल करने और प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाने में भी कामयाब होगा। बता रहे हैं परमेश्वरन अय्यर
अहमदाबाद में सुप्रसिद्घ साबरमती नदी के तट पर करीब 20,000 ऐसे सरपंच और स्वच्छाग्रही आज एकत्रित हो रहे हैं जो जमीनी स्तर पर स्वच्छता के लिए काम करते हैं। ये तमाम लोग ऐसे ऐतिहासिक अवसर पर एकत्रित हो रहे हैं जब देश महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है। हम उन्हें एक स्वच्छ भारत की सौगात देने जा रहे हैं जो शायद उन्हें समर्पित की जाने वाली सबसे उपयुक्त श्रद्घांजलि होगी। जमीनी स्तर पर स्वच्छता के काम से जुड़े लाखों लोग इस आयोजन को अपने गांवों में लाइव देख सकेंगे। देश की स्वच्छता क्रांति के वास्तुशिल्पी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अवसर पर एकत्रित जनसमूह के साथ-साथ देश को संबोधित करेंगे और उन यादों को ताजा करेंगे जब पांच साल पहले उन्होंने लाल किले के प्राचीर से लोगों के व्यवहार में तब्दीली लाने वाले सबसे बड़े अभियान की शुरुआत की थी।
इस अवधि में देश ने खुले में शौच वाले दुनिया के सबसे बड़े देश से स्वच्छता अभियान का प्रेरक बनने तक का सफर तय किया है। भारत का यह सफर कई देशों के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है और वे भी इस व्यापक सामाजिक, स्वास्थ्य संबंधी, आर्थिक और पर्यावरण संबंधी प्रभाव वाली चुनौती से निपटने की दिशा में पहल कर रहे हैं। जब स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत हुई थी तब भारत में स्वच्छता का कवरेज केवल 39 फीसदी था। महज पांच वर्ष में देश के ग्रामीण इलाकों में 10 करोड़ से अधिक शौचालय बने हैं और करीब 60 करोड़ लोगों ने खुले में शौच करना बंद कर दिया है। देश के सभी राज्यों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया है। यह केवल इसलिए संभव हो सका क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व साथ था। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे निजी तौर पर एक चुनौती के रूप में लिया। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान की गई। इससे देश के नौ करोड़ से अधिक सामाजिक और आर्थिक रूप से गरीब परिवारों को शौचालय निर्माण में सहायता मिली। इस बीच सरकार, निजी क्षेत्र और विकास संबंधी क्षेत्रों के बीच जबरदस्त साझेदारी देखने को मिली। सबसे अहम बात यह थी कि यह कार्यक्रम सरकारी योजना से अधिक एक जनांदोलन में तब्दील हो गया।
स्वच्छ भारत मिशन इस बात की मिसाल है कि कैसे एक व्यापक कार्यक्रम का तेज गति से क्रियान्वयन किया जाए। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से इसकी अत्यंत आवश्यकता को महसूस किया गया और देश के विभिन्न राज्यों, जिलों और यहां तक कि गांवों के बीच प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न हुई। राजनीतिक नेतृत्व एकदम निचले स्तर तक शामिल नजर आया। इस कार्यक्रम ने शौचालयों से जुड़े पूर्वग्रह को समाप्त किया। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने पहले भाषण में इसे प्रमुखता से शामिल किया और छह लाख प्रशिक्षित स्वच्छाग्रहियों के माध्यम से पंचायतों की बैठक, जन सभाओं में और घर-घर जाकर लोगों में व्यवहार के स्तर पर बदलाव को प्रेरित किया गया। दोहरे पिट वाले स्वउपचारित शौचालयों को देश भर में बढ़ावा दिया गया। देश भर के लोगों ने शौचालय के शुष्क अवशिष्टï को खाली कर शौच से जुड़े कलंक को दूर करने में अहम भूमिका निभाई। इस कार्यक्रम में लोगों के व्यवहार में बदलाव पर जोर दिए जाने का एक अर्थ यह भी था कि इस कार्यक्रम में निरंतरता आए। गांवों के लोगों ने प्रेरणा लेकर अपने यहां शौचालय बनवाए और समुदायों में इनके इस्तेमाल को लेकर भी चेतना का प्रचार प्रसार हुआ। ग्राम सभाओं में छह लाख गांवों ने अपने आप को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया। हाल ही में सर्वेक्षणों से पता चला है कि शौचालय तक पहुंच रखने वाले 95 फीसदी से अधिक लोग इनका नियमित इस्तेमाल करते हैं।
बहरहाल, अब जबकि इस दिशा में मील का पहला पत्थर हासिल हो चुका है, तो यह सफर जारी रहना चाहिए। हम सभी इस तथ्य से वाकिफ हैं कि व्यवहार में आए बदलाव पर टिके रहने और नए मानक तैयार करने में समय लगा है और इसके लिए मूलभूत संदेश पर बार-बार जोर देना जरूरी होता है। यही कारण है कि गत सप्ताह जारी की गई देश की अग्रसोची 10 वर्षीय स्वच्छता नीति में खुले में शौच मुक्ति को निरंतर जारी रखे जाने को प्राथमिकता दी गई है। यह नीति इस बात को रेखांकित करती है कि कैसे देश आम जनता को व्यवहार में लगातार बदलाव की चर्चा और संवाद के सहारे खुले में शौच मुक्ति के लाभों से अवगत कराया जाएगा। इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस दौरान कोई पीछे न छूटने पाए।
राज्यों से भी यह कहा गया है कि वे यदि कोई घर या परिवार किसी तरह पीछे छूट गया है तो उसके यहां शौचालय निर्माण को प्राथमिकता प्रदान की जाए। यह नीति इस बात पर भी केंद्रित है कि हर स्तर पर क्षमता विस्तार हो, वित्तीय सहायता के नए माडल सामने आएं और देश के प्रत्येक गांव में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन को प्रोत्साहित किया जाए। इस दौरान प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन को भी तवज्जो दी जाए। स्वच्छ भारत मिशन सहभागिता वाले विकास की नजीर बन चुका है। यहां सरकार पहल करती है और लोग उस कार्यक्रम को पूरा करते हैं।
प्रधानमंत्री ने इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर जो आह्वान किया था उसके तहत देश भर से करोड़ों लोग स्वच्छता ही सेवा अभियान के तहत प्लास्टिक कचरे के संग्रह के लिए श्रमदान की पेशकश कर रहे हैं। इस प्रयास का लक्ष्य है प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करना। जो भी प्लास्टिक एकत्रित होगा उसे सड़क निर्माण आदि में इस्तेमाल करके सुरक्षित ढंग से निपटाया जाएगा। इसके माध्यम से अगले कुछ वर्ष के दौरान देश में एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल को समाप्त करने की दिशा में एक मजबूत पहल होगी। सरकार सन 2024 तक देश के सभी परिवारों को पाइप से पेयजल उपलब्ध कराने की तैयारी में है। इसके लिए न्यूनतम संभव स्तर पर एकीकृत प्रबंधन किया जाएगा। इस योजना में स्रोत की उपलब्धता से लेकर जलापूर्ति और उसके दोबारा उपयोग तक सारी बातें शामिल हैं।
जिस प्रकार देश स्वच्छता के मामले में नए मानक गढऩे में तैयार रहा, वैसे ही प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन और जलापूर्ति को भी जनांदोलन बनाने का लक्ष्य रहेगा। ऐसे आंदोलनों के पीछे 130 करोड़ लोगों की शक्ति है और इसमें दो राय नहीं कि इसे सफलता मिलेगी।
(लेखक पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय में सचिव हैं)
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