पूरे देश में केरल के स्कूल सबसे बढिय़ा | संजीव मुखर्जी और एजेंसियां / September 30, 2019 | | | | |
नीति आयोग द्वारा जारी शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक के दूसरे संस्करण में हरियाणा, ओडिशा और असम में सबसे अच्छा सुधार दर्ज किया गया है। वहीं वित्त वर्ष 2015-16 से 2016-17 के बीच कर्नाटक और उत्तराखंड की रैंकिंग में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है। यह रैंकिंग कई मानकों पर आधारित है। इन मानकों में लड़कियों के लिए सर्वाधिक शौचालय वाले स्कूलों की संख्या, तीसरी, पांचवीं और आठवीं में गणि एवं भाषा में छात्रों के औसत अंक, प्राथमिक से उच्च प्राथमिक और उच्च प्राथमिक से माध्यमिक कक्षाओं में जाने वाले विद्यार्थियों की दर आदि शामिल हैं। इस रैंकिंग से यह भी पता चलता है कि बड़ी राज्यों की श्रेणी में केरल और तमिलनाडु शीर्ष स्थानों पर बने हुए हैं। वहीं तेलंगाना, बिहार और झारखंड सबसे नीचे हैं।
इस रैंकिंग को 'हमारे स्कूलों की सफलता : स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक (एसईक्यूआई) कहा जाता है। इसे नीति आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्व बैंक और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों ने मिलकर जारी किया है। यह रैंकिंग स्कूल जाने वाले बच्चों के शिक्षण नतीजे पर राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के सूचकांक पर आधारित है। एसईएक्यूआई में 2016-17 को संदर्भ वर्ष और वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इसे स्कूल शिक्षा क्षेत्र में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मूल्यांकन के लिए विकसित किया गया है। केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली और चंडीगढ़ ने वर्ष 2015-16 और 2016-17 के बीच अपना प्रदर्शन एवं रैंक बरकरार रखी है।
छोटे 8 राज्यों की श्रेणी में रैंकिंग से पता चलता है कि पांच में सुधार दर्ज किया गया है, जिनमें से तीन- मेघालय में 14.1 फीसदी, नगालैंड में 13.5 फीसदी और गोवा में 8.2 फीसदी सुधार दर्ज किया गया है। वहीं अरुणाचल और मिजोरम के प्रदर्शन में गिरावट आई है। बड़े राज्यों के समग्र प्रदर्शन स्कोर में 76.6 फीसदी के साथ केरल सबसे ऊपर है। यह सूचकांक 30 संकेतकों के आधार पर तैयार किया गया है। इस सूचकांक को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया। एक श्रेणी में शिक्षण, उपलब्धता, बुनियादी ढांचा एवं सुविधाएं और दूसरी श्रेणी में प्रशासनिक प्रक्रियाओं से मदद के नतीजे शामिल हैं।
नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने नई दिल्ली में रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इससे राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी ताकत एवं कमजोरी पहचानने और आवश्यक सुधार या नीतिगत दखल के लिए एक मंच मिलता है। कांत ने कहा, 'नीति आयोग का उद्देश्य प्रतिस्पर्धी एवं सहकारी संघवाद की भावना को बढ़ाना है और इसी तर्ज पर यह सूचकांक सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में ज्ञान एवं बेहतर चीजों को साझा करने में मदद करता है।' रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षण नतीजों को सुधारने की चुनौतियों के बीच राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को शिक्षा तक पहुंच एवं बुनियादी ढांचे पर ज्यादा ध्यान देने और निवेश करने की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इस सूचकांक में ऐसे सूचकांक शामिल हैं, जो राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की गुणवत्तायुक्त शिक्षा मुहैया कराने की कोशिशों में मददगार साबित होंगे। उम्मीद है कि सूचकांक उन्हें और गैर-सरकारी सेवा प्रदाताओं को अहम सुधार लाने और किफायती नीति में नवोन्मेष के लिए निर्देशात्मक फीडबैक देगा।'
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि जहां तक स्कूली शिक्षा की बात है, अब न केवल शिक्षा की पहुंच बल्कि गुणवत्ता पर भी ध्यान देने का समय आ गया है। कुमार ने कहा, 'अब हमारे स्कूलों में पहले की तुलना में ज्यादा बच्चे हैं। लेकिन वे कितना सीख रहे हैं, यह अहम बात है क्योंकि स्कूल शिक्षा भविष्य की पीढिय़ों को तैयार करने का आधार है।' छोटे राज्यों के प्रदर्शन में काफी विभिन्नता रही। जहां मणिपुर का स्कोर 68.8 फीसदी रहा, वहीं अरुणाचल प्रदेश का स्कोर महज 24.6 फीसदी रहा। केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ का प्रदर्शन स्कोर 82.9 फीसदी जबकि लक्षद्वीप का 31.9 फीसदी रहा। देश के 20 बड़े राज्यों में 18 का प्रदर्शन 2015-16 और 2016-17 के बीच सुधरा है। इन राज्यों में पांच- हरियाणा, असम, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और गुजरात में सबसे ज्यादा सुधार रहा है, जिनमें क्रमश: 18.5 फीसदी, 16.8 फीसदी, 13.7 फीसदी, 12.4 फीसदी और 10.6 फीसदी सुधार हुआ है।
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