सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का विचार टला | सोमेश झा / नई दिल्ली September 26, 2019 | | | | |
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने देश में सभी कामगारों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर देने के अपने प्रस्ताव को हल्का कर दिया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक सरकार के इस निर्णय की वजह धीमी पड़ती आर्थिक वृद्घि दर है। सामाजिक सुरक्षा विधेयक, 2019 पर संहिता के नए मसौदे में सरकार ने निर्णय लिया है कि वह उद्योग द्वारा कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ मुहैया करने के लिए जो मौजूदा सीमा रेखा निर्धारित है उसे बरकरार रखेगी। सामाजिक सुरक्षा विधेयक पर संहिता के तीसरे मसौदे को कर्मचारी संघों और उद्योग जगत के साथ विचार विमर्श के लिए साझा किया गया है। प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक, कम से कम 20 कर्मचारियों वाले कंपनियों को कर्मचारी भविष्य निधि योजना और कम से कम 10 कर्मचारियों वाले कंपनियों को कर्मचारी राज्य बीमा योजना के तहत कर्मचारी के वेतन से उनका योगदान काटना जरूरी होगा। यह प्रस्ताव वही है जो फिलहाल देश भर में लागू है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने पहचान जाहिर नहीं करने के अनुरोध के साथ कहा, 'ऐसी स्थिति में जब हम आर्थिक वृद्घि में सुस्ती देख रहें है सरकार के लिए देश में सभी कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवरेज का एक तार्किक प्रस्ताव लाना मुश्किल है। हम छोटे उद्योगों के लिए किसी भी तरह की असुविधा खड़ी करना नहीं चाहते।' 2019-20 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्घि दर छह वर्ष से अधिक के निचले स्तर पर पहुंच कर 5 फीसदी रह गई है। सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर से उन छोटी कंपनियों पर वित्तीय दबाव बढ़ जाता जो किसी सामाजिक सुरक्षा कानून का हिस्सा नहीं हैं।
अप्रैल 2017 में जारी किए गए पहले मसौदे में सभी कामगारों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर के दायरे में लाने का प्रस्ताव था। इसमें संगठित या असंगठित, औपचारिक या अनौपचारिक, नियमित वेतनभोगी या स्व नियोजित कर्मचारियों को शामिल करने का प्रस्ताव था। इसके लिए स्व-योगदान या आंशिक योगदान का प्रस्ताव था जिसकी व्यवस्था नियोक्ता या सरकार को करनी थी। कर्मचारी संघों ने विशेष तौर पर इस बात को लेकर इस मसौदे का विरोध किया कि इसमें एक विकेंद्रीकृत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने की बात कही गई थी जिसमें मौजूदा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) और कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) को सम्मिलित किया जाना था।
बहरहाल, कई दौर की चर्चाओं के बाद एक दूसरा मसौदा मार्च 2018 में जारी किया गया। इसमें प्रस्तावित कानूनों को चरणबद्घ रूप से लागू करने का प्रस्ताव था। इसके साथ ही इसमें कर्मचारियों के भविष्य निधि (पीएफ) और बीमा खातों का प्रबंधन सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के जरिये किया जाना प्रस्तावित था। दूसरे मसौदे में स्वनियोजित कर्मचारियों को प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा कानून के दायरे से बाहर रखा गया था। ईपीएफओ और ईएसआईसी को अलग अलग संस्था के तौर बने रहने देने का प्रस्ताव था।
कर्मचारी संघों ने कर्मचारियों के भविष्य निधि और बीमा खातों के प्रबंधन के लिए पीपीपी मॉडल लाने के विचार का भी विरोध किया था और इसीलिए इस प्रस्ताव को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। मौजूदा सामाजिक सुरक्षा कानून के दायरे से करीब 90 फीसदी श्रमबल बाहर है जो मुख्य तौर पर असंगठित क्षेत्र के हैं। प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा कानून के पहले मसौदे में देश में मौजूदा करीब 4.5 करोड़ श्रमबल के स्थान पर 45 करोड़ श्रमबल को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की बात थी।
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