बैंकों को ऋण जोखिम को अच्छी तरह से समझना चाहिए | जयदीप घोष / September 25, 2019 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा खुदरा और एमएसएमई ऋणों को 1 अक्टूबर से बाह्य उधारी मानकों से जोडऩे से बैंकों पर दबाव पडऩे की आशंका है। आरीआई की पूर्व डिप्टी गवर्नर और फाइनैंशियल बेंचमार्क इंडिया (एफबीआईएल) की अध्यक्ष उषा थोराट ने जयदीप घोष के साथ साक्षात्कार में कहा कि वित्तीय स्थायित्व के लिए यह जरूरी है कि एनपीए खतरनाक स्तर पर न पहुंचे। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
बैंकों के लिए आरबीआई के निर्णय को आप किस तरह से देखते हैं?
बैंकों के लिए खुदरा और एमएसएमई ऋण बाह्य उधारी से जोडऩे का आरबीआई का निर्देश मुख्य तौर पर छोटे कर्जदारों को ब्याज दर कटौती का लाभ मुहैया कराने की जरूरत से जुड़ा हुआ है। ऋण लेने वाले बड़े ग्राहकों के पास सीपी और बॉन्ड जैसी बैंक उधारी के अलावा कोष का स्रोत उपलब्ध होता है। उनके लिए ब्याज दर लाभ की प्रक्रिया तेजी से काम करती है। खुदरा और एमएसएमई ऋणों के मामले में, जहां ब्याज दर वृद्घि का असर बेहद जल्द दिखता है, वहीं दर कटौती का लाभ मिलने में लंबा समय लगता है। बाह्य मानक बाजार योजनाओं की कीमत पर आधारित हैं जो नीतिगत दरों में बदलाव के साथ बदलते हैं।
ऋणों में बदलाव का मूल्य निर्धारण कैसे होगा?
मौजूदा समय में, बैंक ऋणों का मूल्य निर्धारण काफी हद तक अपनी जमाओं की लागत के आधार पर करते हैं। चालू खाता, बचत खाता (सीएएसए) का उनकी देनदारियों में लगभग 40 प्रतिशत योगदान है और वे ब्याज दर संवेदी नहीं हैं। वहीं सावधि जमाओं का लगभग 50-70 प्रतिशत योगदान है। इन जमाओं की औसत परिपक्वता एक वर्ष और 18 महीने के बीच की होती है। इसलिए अपने परिसंपत्ति देनदारी प्रबंधन (एएलएम) के लिए बैंक अपना शुद्घ ब्याज मार्जिन मजबूत बनाए रखने के लिए ऋण दरों को सावधि जमाओं के आधार पर जमा दरों से जोडऩा पसंद करते हैं। हालांकि यह पाया गया है कि बैंकों की एक वर्षीय जमा दरें 364-दिन टी-बिल या 1 वर्षीय जी-सेक प्रतिफल, या एक वर्षीय ओआईएस (ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप) दर जैसे एफबीआईएल मानकों से संबंधित होती हैं। इसलिए बैंक एएलएम का प्रबंधन करने के लिए अपने फ्लोटिंग ऋणों को एक वर्षीय मानक से जोड़ सकते हैं।
फ्लोटिंग से संबंधित जमा दरों के अभाव में बैंक दरों को किस तरह से प्रबंधित करेंगे?
भारत में जमाकर्ता अपनी सावधि जमाएं फ्लोटिंग रेट्स से जोडऩा नहीं चाहेंगे, भले ही इन्हें मुद्रास्फीति दर से जोड़ जाए। लेकिन बैंकों को यह देखने को जरूरत होगी कि वे अपने एएलएम में लचीलापन लाने के लिए फ्लोटिंग दर जमाओं को किस तरह से प्रोत्साहित करेंगे। इसे लेकर चुनौतियां हैं, लेकिन इसकी शुरुआत करनी होगी।
वित्त क्षेत्र एनपीए और अन्य समस्याओं की वजह से पहले ही दबाव से जूझ रहा है। क्या आप मानते हैं कि इससे उनके मार्जिन पर दबाव बढ़ जाएगा?
मेरा मानना है कि बैंक अपने ऋण जोखिम का उचित तरीके से आकलन कर इस समस्या के प्रबंधन में सफल होंगे। व्यक्तिगत कर्जदारों के संबंध में ऋण जोखिम के अलावा, व्यवस्था में ऋण जोखिम अनिश्चित वृहद आर्थिक हालात की वजह से बढ़ा है। बैंकों द्वारा ऋण मूल्यांकन में इन पहलुओं को पारदर्शी तरीके से शामिल किया जा सकता है।
राष्ट्रीय बचत योजना की दरें काफी ऊंची हैं। यह तर्क पेश किया जा रहा है कि एनएसएस दरों में गिरावट के बगैर, बैंकों को जमा दरों में ज्यादा कटौती करने में समस्या आएगी। इस समस्या को किस तरह से सुलझाया जा सकेगा?
यह तर्क नया नहीं है। एनएसएस के तहत देनदारियां निर्धारित वाणिज्यिक बैंकों की कुल जमा देनदारियों का लगभग 10 प्रतिशत है। मौजूदा समय में, सरकार ने विभिन्न छोटी बचत योजनाओं को जी-सेक दर से जोड़कर छोटी बचत और बैंक जमाओं के बीच खामियों को दूर करने की कोशिश की है।
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