जब वह एसएमएस में 'ढल गया दिन' लिखकर भेजती हैं तो फिल्म हमजोली की लीना चंद्रावरकर की उस आवाज की याद दिला देती है। आधुनिक समय में एसएमएस यहां तक पहुंच गया है कि इससे वैसी आवाज भी निकलती है जब शटल का बैडमिंटन रैकेट से संपर्क होने के बाद निकलता है। हो गई शाम..., जाना है... ऐसी टाइमपास स्कीम में वोडाफोन 10 पैसे प्रति पॉप की दर पर एसएमएस की सुविधा मुहैया करा रहा है, ऐसे में अगर पूरे गाने सुनने हों तो यह काफी महंगा साबित हो सकता है। इस कॉलम के जरिए हमने नए दूरसंचार नियामक की चयन प्रक्रिया की बाबत चर्चा की थी (जिसकी अभी शुरुआत ही हुई है) क्योंकि ट्राई के चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा अवकाश प्राप्त करने ही वाले हैं? नए नियामक का मुख्य काम (चाहे जो भी इस पद पर चुना जाए) बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए सब कुछ करना होगा ताकि ग्राहकों को बेहतर सेवा के साथ-साथ अच्छी सहूलियत मिल सके। वहां भी जहां ढल गया दिन आता है। पूरी दुनिया में दूरसंचार कंपनियां नेक्स्ट जेनरेशन नेटवर्क (एनजीएन) का रुख कर रही हैं जो इंटरनेट प्रोटोकॉल टेक्नोलॉजी पर आधारित है। दूसरे शब्दों में कम्युनिकेशन पाइप के जरिए मिलने वाले आंकड़ों के लिए ही आपको भुगतान करना होगा (प्रति माह की तय रकम पर चाहे आप फोन का इस्तेमाल करें या नहीं, टीवी देखने की कीमत)। आपको एक निश्चित शब्द वाले एसएमएस (160 अक्षर) के लिए भुगतान नहीं करना होगा या फोन पर दस सेकंड तक बात करने का भुगतान नहीं करना होगा। एनजीएन 10 पैसे प्रति एसएमएस को न सिर्फ बेकार कर देगा बल्कि यह इस सेक्टर के कई खिलाड़ियों की कारोबारी योजना को धराशायी कर देगा (नए खिलाड़ियों को यह सांस लेना दूभर कर देगा)। ऐसे में नए नियामक क्या यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि लाइसेंस के कायदे एक बार फिर से लिखे जाएं ताकि इसकी अनुमति दी जा सके? (सेक्शन 11(1)(ए)(॥) के तहत ट्राई को ऐसा करने का अधिकार है। ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि क्या सरकार ऐसी सिफारिशों को स्वीकार कर लेगी? उदाहरण के तौर पर सरकार ट्राई की उस सिफारिश पर गौर कर रही है जिसके तहत इंटरनेट टेलीफोनी की अनुमति दी जाएगी और फिर लंबी दूरी के कॉल रेट आज के मुकाबले काफी कम हो जाएंगे। आवश्यक रूप से आईएएस कहेंगे कि वे नियामक के तौर पर नामांकित होने के ज्यादा काबिल हैं (कई आईएएस इस दौड़ में है जिनमें दूरसंचार सचिव एस. बेहुरा भी शामिल हैं)। कुल मिलाकर सरकार के बातचीत और सौदेबाजी करने में वे ज्यादा कारगर होंगे क्योंकि वे जानते हैं कि सरकारी महकमा किस तरह काम करता है। हो सकता है कि यह उनकी अतिरिक्त काबिलियत हो, लेकिन इस पद के लिए जरा सरकारी विज्ञापन पर नजर डाल लीजिए। जब से चार पेज का विज्ञापन सरकारी वेबसाइट पर दिया गया है, तब से हमने इसे लोकप्रिय अखबार या पत्रिका में नहीं देखा है। आपको लग रहा होगा कि विज्ञापन के जरिए सरकार को प्रतिस्पर्धा बढ़ानी होगी, ताकि नई तकनीक को गले लगाया जा सके। लेकिन नोटिस में लिखा गया है - चेयरपर्सन ट्राई का मुखिया होगा, उन्हें (महिला नहीं) इस अथॉरिटी के निरीक्षण और निर्देश का अधिकार होगा ताकि इसका कामकाज सुचारू रूप से चल सके। उन्हें इसकी बैठक की अध्यक्षता का अधिकार होगा और वैसे सभी अधिकार होंगे जिसे अथॉरिटी चलाने के लिए निर्धारित किया गया है। दूसरे शब्दों में हम बताएंगे कि आप क्या कर सकते हैं। इसमें आश्चर्य नहीं है कि न तो इस नियामक के लिए या और देश में मौजूद दूसरे नियामक के लिए प्राइवेट सेक्टर से बुध्दिजीवियों को आकर्षित किया जा रहा है। नियामक के वेतन में अच्छी खासी बढ़ोतरी के बावजूद नौकरशाह की चाह ही ऐसी नौकरी की तरफ ज्यादा बढ़ी है। इसे निजी रूप से नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन पूर्व सचिव जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ सरकारी बोली लगाने का काम किया है (टेलीकॉम लाइसेंस की खातिर) उनसे कैसे अपेक्षा की जाएगी कि अब उनकी नौकरी कुछ अलग तरह की है? कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कितने नियामक ऐसे हैं जिन्होंने प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए उम्दा काम किए हैं। अगर आप यह मान भी लें कि ट्राई के अगले मुखिया ऐसे सभी काम नहीं करना चाहते तो फिर इस बात को दिमाग में जरूर रखें कि नियामक आयोग के सदस्य सामान्य तौर पर पूर्व नौकरशाह या पीएसयू के एक्जीक्यूटिव होते हैं जो अपने नियोक्ताओं से राजभक्ति जारी रखे रहते हैं। निचले स्तर पर यानी स्टाफ के स्तर पर देखें तो कितने नियामक आयोग में अर्थशास्त्रियों, वकीलों, चार्टर्ड अकाउंटेंट और दूसरे प्रोफेशनल को जगह मिलती है। लेकिन सेल्युलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महा निदेशक टी. वी. रामचंद्रन जब इस आलेख को पढ़ेंगे तो यह सवाल जरूर पूछेंगे कि हमारे लाइसेंस का क्या हुआ, और उस रकम का भी जो हमने इसके लिए भुगतान किया था। (सीओएआई फिलहाल रिलायंस टाटा द्वारा पेश किए गए थ्रीजी वायरलेस ब्रॉडबैंड के संबंध में लड़ाई लड़ रही है, उनका कहना है कि टू-जी लाइसेंस पर उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए)। निश्चित रूप से वे सही हैं, लेकिन यही जगह है जब ट्राई के नए नियामक की काबिलियत सामने आएगी। उन्हें यह महसूस करने में कि अगर अधिकार में बदलाव होते हैं तो दूरसंचार कंपनियों को मुआवजा दिया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा उन्हें करना होगा। (1999 की नई दूरसंचार नीति के माइग्रेशन पैकेज ऐसे मुआवजे के सबसे बड़े उदाहरण हैं) साथ ही अपने मामलों को मजबूती से पेश करना होगा। एक हद तक प्रदीप बैजल ने टेक्नोलॉजी में मौलिक परिवर्तन को पहचाना था जब वह एक ही लाइसेंस की बात लेकर सामने आए थे। लेकिन इसमें दो समस्याएं थीं। पहला, इसने रिलायंस को ध्यान में रखते हुए इसे लागू किया था और दूसरा उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि अगर लाइसेंस की शर्तों में परिवर्तन होता है तो फिर बाजार के दूसरे ऑपरेटरों को मुआवजा मिलना चाहिए। कार्यकाल की समाप्ति पर मुद्दा ये नहीं है कि नियामक प्रमुख की नौकरी के लिए कई आईएएस दौड़ में हैं बल्कि मुद्दा यह है कि क्या वे अपनी नई भूमिका को समझ रहे हैं। यह उनके लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है जो ऐसे नियामक के चयन प्रक्रिया में जुटे हैं और उन्हें क्या देखना चाहिए।
