प्रमुख निजी इक्विटी कंपनी टीपीजी और टेमासेक भारत के ऐक्टिव फार्मास्युटिकल्स इनग्रेडिएंट्ïस (एपीआई) विनिर्माताओं में निवेश करने की योजना बना रही हैं ताकि चीन से आपूर्ति बाधित होने पर उसे भुनाया जा सके। निवेश में उनकी दिलचस्पी इसलिए दिख रही है क्योंकि भारतीय औषधि कंपनियां विशेषीकृत दवाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं जबकि बुनियादी सामग्रियों और दवा में इस्तेमाल होने वाले अन्य कच्चे माल के लिए वे काफी हद तक चीन से आयात पर निर्भर हैं। लेकिन प्रदूषण के मोर्चे पर चीन के विनिर्माताओं को झटका लगने से वैश्विक बाजार में इन सामग्रियों की आपूर्ति बाधित हुई है और कच्चे माल की कीमतों में तेजी आई है। निजी इक्विटी कंपनियां इसी अवसर को भुनाना चाहती हैं। टीपीजी कैपिटल एशिया के प्रबंध निदेशक मितेश डाग ने कहा, 'इससे पहले हमने सोलारा ऐक्टिव फार्मा (एपीआई विनिर्माता) में एक छोटा निवेश किया था और अब हम इस क्षेत्र में कई निवेश करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।' भारत में टीपीजी का पहला निवेश 2004 में एपीआई विनिर्माता मैट्रिक्स लैबोरेटरीज में हुआ था। लेकिन उसके दो साल बाद टीपीजी ने अपना निवेश समेट लिया था। पिछले साल टीपीजी ने साईं लाइफ साइंसेज में अल्पांश हिस्सेदारी खरीदी थी। यह कंपनी नवाचार को बढ़ावा देने वाली औषधि कंपनियों के लिए दवा अनुसंधान एवं विनिर्माण सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। डाग ने कहा कि चीन में उत्पादन संकट से भारतीय एपीआई विनिर्माताओं के लिए अवसर पैदा हुआ है। जबकि उच्च गुणवत्ता वाले विनिर्माण के लिए प्रीमियम जैसे अन्य कारकों से इस श्रेणी में निवेश कहीं अधिक आकर्षक बनेगा। उन्होंने कहा कि विदेशी औषधि कंपनियां भी अपनी एपीआई आपूर्ति पर जोखिम घटाना चाहती हैं और उनमें से कई कंपनियां अगले कुछ वर्षों में भारत की ओर रुख कर सकती हैं। सिंगापुर की निवेश कंपनी टेमासेक का भी मानना है कि यह भारत की एपीआई कंपनियों में निवेश करने के लिए उपयुक्त समय है। टेमासेक होल्डिंग्स के निदेशक निशांत चंद्रा ने कहा कि वे बल्क ड्रग कंपनियों में निवेश की संभावनाएं तलाश रहे हैं। उन्होंने कहा, 'हम भारत में एपीआई विनिर्माताओं और अनुबंध पर विकास एवं विनिर्माण करने वाली कंपनियों (सीडीएमओ) में निवेश करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। चीन से एपीआई की आपूर्ति बाधित होने से वैश्विक बाजार में संभावनाएं पैदा हुई हैं और कीमतों में भी इजाफा हुआ है। हम इस क्षेत्र में किसी भी उपयुक्त कंपनी में नियंत्रण योग्य हिस्सेदारी खरीदने के लिए तैयार हैं।' चंद्रा ने यह भी कहा कि उन्हें लगता है कि यह वृद्धि बरकरार रहेगी और यह कोई लघु अवधि का अवसर नहीं है। वास्तव में वर्ष 2018-19 के दौरान प्रमुख भारतीय फॉर्मूलेशन विनिर्माताओं ने अपने एपीआई कारोबार में दो अंकों में वृद्धि दर्ज की है क्योंकि उन्होंने चीन से आपूर्ति बाधित होने के कारण पैदा हुए अवसरों का फायदा उठाया। विश्लेषकों का मानना है कि तमाम वैश्विक फॉर्मूलेशन विनिर्माता अब कच्चे माल की सोर्सिंग को विविध बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं ताकि चीन से आपूर्ति बाधित होने पर उनके उत्पादन पर जोखिम को घटाया जा सके। उद्योग के आंतरिक लोगों का मानना है कि एपीआई बनाने वाली भारतीय कंपनियां दशकों से मूल्यवद्र्धित एपीआई पर ध्यान केंद्रित करती रही हैं लेकिन अब उन्होंने मूल्य शृंखला की ओर रुख किया है। वे प्रमुख नवोन्मेषी कंपनियों के साथ-साथ दुनिया भर में जेनेरिक दवा विनिर्माताओं को आपूर्ति करती हैं। भारत करीब 3.6 अरब डॉलर की बल्क दवाओं का आयात करता है जिसमें चीन से आयात की हिस्सेदारी करीब 67 फीसदी है।
