सरकार की कर राजस्व चिंता का नहीं कोई अंत | दिल्ली डायरी | | ए के भट्टाचार्य / September 11, 2019 | | | | |
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि संभावना काफी डरावनी लग रही है। अप्रैल-जून 2019 तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वास्तविक रूप से महज पांच फीसदी की दर से ही बढ़ी है जो छह साल का सबसे निचला स्तर है। यह उससे पहले की तिमाही में दर्ज 5.8 फीसदी की दर से भी कम है। एक शिथिल अर्थव्यवस्था ने सरकार के समक्ष कई चुनौतियां पैदा कर दी हैं। इनमें से एक चुनौती सरकार के कर राजस्व से संबंधित है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को निम्न वृद्धि स्तर से उबारने के लिए नए पैकेज घोषित किए हैं लेकिन उसे अपने कर राजस्व के मुद्दे पर भी चिंता करने की जरूरत है।
सरकार के कर राजस्व की चुनौती कितनी गंभीर है? पहला, गत जुलाई में पेश आम बजट में राजस्व संग्रह वृद्धि को लेकर जताए गए अनुमानों के बारे में हमें अपना भ्रम दूर कर लेना चाहिए। ये आंकड़े चालू वित्त वर्ष के संभावित आंकड़ों की गत वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों से तुलना के आधार पर जारी किए गए थे। अब हमें मालूम हो चुका है कि संशोधित अनुमानों और अस्थायी आंकड़ों के बीच बड़ा फासला था। वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमानों की तुलना में वास्तविक कर राजस्व 1.67 लाख करोड़ रुपये कम रहा था।
इस तरह वर्ष 2019-20 में 24.61 लाख करोड़ रुपये का सकल कर राजस्व लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार को अपना कर राजस्व 18 फीसदी तक बढ़ाना पड़ेगा जबकि बजट में नौ फीसदी वृद्धि ही दिखाई गई थी। अपेक्षाकृत कम वृद्धि की वजह यह है कि बजट ने राजस्व वृद्धि आंकड़े तक पहुंचने के लिए भ्रामक ढंग से 2018-19 के संशोधित अनुमानों का इस्तेमाल किया। कर राजस्व में 18 फीसदी वृद्धि का लक्ष्य हासिल कर पाना अर्थव्यवस्था के सुनहरे दिनों में भी खासा मुश्किल है। पिछली बार सरकार ने 18 फीसदी से अधिक कर राजस्व वृद्धि वर्ष 2010-11 में हासिल की थी। यह नौ साल पहले हुआ था। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने शुरुआत में 11 फीसदी की नॉमिनल वृद्धि दर का अनुमान जताया था लेकिन पहली तिमाही में नॉमिनल वृद्धि महज आठ फीसदी ही रही है जो 17 वर्षों का निम्न स्तर है। ऐसे में 18 फीसदी सकल कर राजस्व वृद्धि के लिए कर उछाल में बहुत सुधार की जरूरत होगी लेकिन ऐसा हो पाने की संभावना नहीं है।
इस साल के पहले चार महीनों में सकल कर राजस्व संग्रह महज 6.6 फीसदी ही बढ़ा है जो 18 फीसदी की वांछनीय वृद्धि की तिहाई ही है। इस दौरान कॉर्पोरेट कर, आयकर और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) का संग्रह 5.46 से लेकर 5.96 फीसदी बढ़ा है। केंद्रीय उत्पाद कर संग्रह में 10 फीसदी की कमी आना अपने आप में एक पहेली है। इस अवधि में पेट्रोलियम उत्पादों का उपभोग गिरा नहीं है फिर भी कर संग्रह दो फीसदी से भी कम बढ़ा है। इसके बावजूद उत्पाद कर संग्रह में इतनी तीव्र गिरावट नहीं आनी चाहिए। जीएसटी आने के बाद भी केंद्रीय उत्पाद शुल्क की सकल कर संग्रह में हिस्सेदारी 12 फीसदी है। इस तरह की गिरावट आने से सरकार के भीतर खतरे की घंटी बज जानी चाहिए।
दिलचस्प ढंग से सीमा शुल्क संग्रह 20 फीसदी से अधिक बढ़ा है जो 18 फीसदी की लक्षित दर से भी अधिक है। लेकिन कुल सकल कर संग्रह में सीमा शुल्क की हिस्सेदारी छह फीसदी से भी कम है। लिहाजा पहले चार महीनों में सीमा शुल्क संग्रह में बहुत बड़ी वृद्धि होने की संभावना कम ही है। अगर सरकार को कर राजस्व वृद्धि का लक्ष्य हासिल करना है तो वित्त वर्ष के बाकी आठ महीनों में कर संग्रह को 22 फीसदी की दर से बढऩा होगा। आर्थिक सुस्ती वाले साल में यह एक विशाल लक्ष्य है। इससे भी बड़ी चिंता कर राजस्व में होने वाली गिरावट को लेकर है। अगर कर राजस्व वृद्धि 6.6 फीसदी के उत्साहहीन स्तर पर रहती है तो राजस्व में 2.44 लाख करोड़ रुपये की कमी हो सकती है जो जीडीपी के एक फीसदी से अधिक होगा। अगर सरकार वित्त वर्ष का समापन 10 फीसदी कर वृद्धि के साथ करने में सफल रहती है तो भी कर राजस्व की कमी बनी रहेगी। ये दोनों स्थितियां सरकार के लिए खासी चिंताजनक हैं।
राज्यों के वित्त पर राजस्व ह्रास के प्रतिकूल प्रभाव को कम करके नहीं आंकना चाहिए। राज्यों को कर राजस्व का हस्तांतरण इस साल कम हुआ है। वर्ष 2019-20 में राज्यों को कर हस्तांतरण केवल सात फीसदी वृद्धि के साथ 8.09 लाख करोड़ रुपये ही रहेगा। इस साल लगाए गए नए शुल्कों में उपकर एवं अधिभार की हिस्सेदारी बढ़ी है और इनमें राज्यों की साझेदारी नहीं होने से राज्यों का शुद्ध अंतरण कम दर से बढ़ा है। लेकिन अगर कुल विभाज्य कर आधार सिकुड़ जाता है तो राज्यों को सात फीसदी बढ़ी दर से भी राजस्व अंतरण और भी कम हो जाएगा। अपने राजस्व लक्ष्यों और घाटा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पहले से संघर्ष कर रहे राज्यों के लिए यह एक और आघात होगा।
निश्चित रूप से सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक के आकस्मिक कोष से बड़ी राशि मिलने से राहत मिलेगी। लेकिन करीब 58,000 करोड़ रुपये की यह राशि राजस्व गिरावट को कम भले करेगी लेकिन उसकी भरपाई नहीं कर पाएगी। अगर सरकार अपने व्यय में कोई खास बचत नहीं कर पाती है तो उसके लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 फीसदी तक सीमित रख पाना मुश्किल होगा।
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